दिल्ली : रैन बसेरों में जगह की कमी से हजारों लोग फुटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर

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    नयी दिल्ली: ओडिशा का मूल निवासी 40 वर्षीय रिक्शा चालक मुकेश साहू दिल्ली की भीषण ठंड में फतेहपुरी और चांदनी चौक के बाजारों के गलियारों में रात गुजारने को मजबूर है।  वह सर्दी से राहत पाने के लिए अक्सर अलाव सेंकता है, लेकिन वह जगह की कमी के चलते पास के रैन बसेरे में नहीं रह सकता।

    साहू ने कहा, ‘‘पहले, मैं चांदनी चौक स्थित रैन बसेरे में ही सोता था, लेकिन बीती सर्दी से सामाजिक दूरी के नियमों के पालन की अनिवार्यता के चलते मुझे वहां जगह ही नहीं मिलती।”

    साहू की तरह दिल्ली में हजारों अन्य बेघर भीषण सर्दी से जूझते हुए पुल के नीचे बने फुटपाथ, बस अड्डों और उपमार्गों पर सर्द रातें काटने को मजबूर हैं। बिहार के समस्तीपुर का रहने वाला दिहाड़ी मजदूर अहमद अली कहता है, ‘‘मुझे ठंडी हवाओं के चलते फुटपाथ पर सोने से डर लगता है। रैनबसेरों में या तो जगह की कमी है या उनकी हालत खस्ता है, इसलिए मैं कश्मीरी गेट पर एक पुल के नीचे रात गुजारता हूं।”

    2014 में हुए एक सरकारी सर्वेक्षण के मुताबिक, दिल्ली में 16 हजार से अधिक बेघर लोग हैं, लेकिन बेघरों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों का दावा है कि यह संख्या एक लाख के करीब हो सकती है।

    सरकारी प्राधिकारियों का कहना है कि बेघरों के रहने के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं। दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के एक अधिकारी ने अपनी पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में 209 स्थायी और 216 अस्थायी आश्रय गृह हैं ,जिनमें 21,000 बेघर लोगों को रखा जा सकता है, लेकिन कोविड-19 के कारण लोगों की रहने की क्षमता को संशोधित करके करीब 10,500 किया गया है।

    सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार अलेदिया ने कहा कि आश्रय गृहों में जगह और सुविधाओं की कमी के कारण हजारों लोग सड़कों पर रात बिताने को मजबूर हैं।(एजेंसी)