Kali Mata Temple in Railway Root in Bhandara District

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    • अंग्रेज भी होते थे नतमस्तक
    • सभी ट्रेन की गति हो जाती है धीमी

    तुमसर. मुंबई-हावड़ा रेलवे लाइन पर तहसील के देव्हाडी (तुमसर रोड) रेलवे जंक्शन पर 2 रेल पटरियों के बीच जागृत काली माता का एक प्राचीन मंदिर है. क्षेत्र में प्रसिद्ध किंवदंतियों के अनुसार अंग्रेजों ने देवी को झुकने के लिए मजबूर किया था. भारत की पहली यात्री ट्रेन 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से ठाणे के लिए चली थी. लेकिन उससे पहले भी देश की पहली औद्योगिक ट्रेन 1837 में रेड हिल्स से मद्रास के चित्रद्रिपेट तक चली थी. नागपुर से भंडारा के लिए पहली ट्रेन 12 मार्च 1881 को चली थी.

    ब्रिटिश अभिलेखों के अनुसार ट्रेन नागपुर से देव्हाडी (तुमसर रोड) तक जाती थी. इस मार्ग पर रेलवे लाइन बिछाते समय सूर नदी पर पुल बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण था. मई 1879 के दौरान क्षेत्र में बाढ़ आ गई थी. इसलिए रेलवे परियोजना में देरी हुई. वन विभाग को इस मार्ग पर पटरियों के नीचे लकड़ी के स्लीपर उपलब्ध कराने का काम सौंपा गया था. लेकिन वन विभाग द्वारा देरी के कारण इंग्लैंड से 25,000 पाइन स्लीपर बुलाए गए. रेलवे का काम पूरा होने के बाद स्टीम लोकोमोटिव इंग्लैंड से लाया गया था. तुमसर रोड रेलवे स्टेशन पर कोल डिपो, वाटर चार्जिंग, टेलीग्राफ की व्यवस्था पहले से ही की जा चुकी थी.

    रोचक एवं रहस्यमयी है माता की कहानी

    तुमसर रोड रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 3 व 4 पर रेलवे ट्रैक के बीच में काली माता मंदिर की कहानी बहुत ही रोचक और रहस्यमयी है. स्थानिक लोगों के मुख पर अभी भी बहोत किंवदंतिया आती है. कुछ पुराने जानकर बताते हैं कि उस समय बंगाल से बड़ी संख्या में मजदूर यहां रेलवे में काम करने आते थे.

    काली माता का मंदिर जिस कार्य योजना के अनुसार रेल की पटरी के बीच में आ रहा था. वहां रेल का काम शुरू हुआ था. लेकिन जब ब्रिटिश सरकार को ट्रैक का विस्तार करने की जरूरत पड़ी तो मंदिर बीच में आ रहा था. ब्रिटिश अधिकारियों ने मंदिर को स्थानांतरित करने के लिए कई प्रयास किए.  लेकिन वे सफल नहीं हुए. काली माता सपने में मुख्य अधिकारी के पास गई और उन्हें मंदिर को स्थानांतरित करने के प्रस्ताव को रद्द करने के बारे में बताया. जब भी उन्होंने कोशिश की उन्हें अपने काम में आपदा का सामना करना पड़ा. आखिरकार उन्होंने मंदिर को तोड़ने का विचार छोड़ दिया और इसे वहीं रखने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने रेलवे ट्रैक का समायोजन किया. आज भी मंदिर को दो रेलवे पटरियों के बीच भंडारा जिले के तुमसर रोड (देव्हाडी) स्टेशन पर देखा जा सकता है.

    नवरात्रि में उमड़ती है भक्तों की भीड़

    स्थानीय भक्तों ने बाद में इस स्थान पर देवी की पुरानी शिलाओं के पास एक सुंदर मूर्ति की स्थापना की. स्थानीय भक्त प्रतिदिन इस स्थान पर पूजा करते हैं.  स्थानीय लोगों के साथ-साथ रेलवे अधिकारी और कर्मचारी देवी की पूजा में शामिल होते हैं. काली माता दुर्गा माता का ही एक रूप है. इसलिए दुर्गा उत्सव के दौरान यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है.

    पटरियों के बीच देश का एकमात्र मंदिर

    दो रेलवे पटरियों के बीच में देवी काली के मंदिर को पूजने वर्तमान में बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं. यह पूरे भारत में रेलवे पटरियों के बीच एकमात्र मंदिर के रूप में जाना जाता है. चैत्र और शारदीय नवरात्रि के लिए भक्त बड़ी संख्या में यहां आते हैं. अष्टमी को हवन और नवमी पर महाप्रसाद का आयोजन ग्रामीणों द्वारा प्लेटफार्म नंबर 1 पर किया जाता है. पूरे वर्ष देवी काली की सुबह और शाम को आरती की जाती है.

    लाख कोशिश की फिर भी नहीं हिली माता

    पहले इस स्थान पर काली माता की कोई मूर्ति नहीं था. यहां संपूर्ण गांव द्वारा पूजी जाने वाली देवी मां की शिलाएं थी. जब रेलवे बंगाल के कार्यकर्ताओं ने अंग्रेजों के आदेश पर देवी की मूर्ति के पत्थर को हटाने की कोशिश की फिर भी वह नहीं हिली. फिर उन्होंने चट्टानों से लोहे की बड़ी-बड़ी जंजीरें बांध दीं और इंजनों के माध्यम से उन्हें खींचा गया. फिर भी अंग्रेज वहां से देवी मां को हटाने में असमर्थ रहे थे. उस समय उन्हें काली माता के सामने झुकना पड़ा था.

    दहीबड़ा बेचने वाले ने निर्माण करवाई थी मंदिर की छत 

    मुंबई-कलकत्ता रेलवे लाइन पर यात्री यातायात बहाल होने के बाद तुमसर रोड रेलवे स्टेशन पर दहीवाड़ा बेचने वाले रामदीन गयाप्रसाद गुप्ता ने देवी माता के पत्थर के पास देवी सगुणा की मूर्ति स्थापित की और मूर्ति की बारिश एवं धूप से रक्षा के लिए एक छोटी सी छत खड़ी की. अभी भी उनके वंशज शंकर गुप्ता और यश गुप्ता द्वारा काली माता की सेवा की जाती हैं. रेलवे के अधिकारी भी काली माता के दरबार में हाजरी लगाते है. दशहरे के दिन स्टेशन पर की जाने वाली पूजा अधिकारियों द्वारा की जाती है.

    उज्जैन के रेल यात्री की हुई थी मन्नत पूरी

    कुछ वर्ष पहले मध्य प्रदेश के उज्जैन से एक भक्त सीधे यहां आया था. उस समय उन्होंने देवी की पूजा की और मंदिर को घंटियां दान कीं. मंदिर में सेवा कर रहे गुप्ता महाराज ने जब उनसे पूछा कि वह इतनी दूर देवी की पूजा करने के लिए क्यों आए हैं तो उन्होंने कहा कि मैं एक बार ट्रेन से यात्रा कर रहा था. तब मैंने देवी काली का मंदिर देखा. मैंने ने हाथ जोड़े और देवी को प्रणाम किया.

    मैंने मन ही मन देवी माता से कहा कि मुझे लंबे समय से कोई बच्चा नहीं है. उसके दो वर्ष बाद मेरे घर मे नन्हे सदस्य का आगमन हुआ. तभी से मैं हर वर्ष ट्रेन से काली माता के दर्शन करने हेतु भंडारा जिले के तुमसर रोड स्टेशन पर आता हुं. उज्जैन के भक्तों के अलावा कई भक्त काली मां के दरबार में हाजरी लगाने आते हैं. तुमसर रोड रेलवे स्टेशन और उसके आसपास काम करने वाले पुराने रेलवे कर्मचारी भी वर्ष में कम से कम एक बार अपने मूल स्थान काली मां के दरबार में आते हैं.