ईरई नदी में घुल रही है सीटीपीएस की राख, पाईप लाईन लिकेज से राख के नदी में मिलने का विडिओ वायरल

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    • पर्यावरणविदों ने जतायी चिंता

    चंद्रपुर. स्थानीय चंद्रपुर महाऔष्णिक विद्युत केन्द्र में बिजली निर्माण के लिए इस्तेमाल किए गए कोयले की राख को पाईप लाईन से सीटीपीएस के एश बैंड तक पहुंचाया जाता है जहां से यह राख सीमेंट उद्योगों को सप्लाई होती है. सीटीपीएस बिजली निर्माण केन्द्र की ईकाईयो से लेकर एश बैन्ड तक राख को सप्लाई करने के लिए इरई नदी के ऊपर से पाईनलाईन बिछाई गई.

    पाईपलाईन काफी पुरानी होने से कई जगहों से लीकेज होने के आर आये दिन इन लीकेजों से राख नदी में समाहित होती आ रही है. ऐसा ही एक विडिओ हाल ही में सोशल मीडिया पर जारी होने के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रदूषण नियंत्रण मंडल में शिकायत कर सीटीपीएस प्रबंधन पर कार्रवाईकरने की मांग की है.

    वही प्रबंधन का दावा है कि राख रिसाव निरंतर होता रहता है और जैसे ही सूचना मिलती है राख के रिसाव को रोक दिया जाता है. इससे किसी तरह की कोई हानि नहीं होती है. पर्यावरण रक्षा से जुडे विशेषज्ञों का कहना है कि राख के रिसाव का मानव जीवन पर काफी गहरा असर हो रहा है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

    मंगलवार की दोपहर के समय पाईप लाईन के लीकेज से राख रिसाव नजर आते ही कुछ लोगों ने इसकी विडिओ निकालकर सोशल मीडिया पर वायरल की. कुछ पर्यावरण प्रेमियों को नजर आने पर उन्होने तुरंत सीटीपीएस प्रबंधन को सूचित किया और प्रबंधन ने संबंधित ठेकेदार को सूचित करने के बाद पाईप लाईन में हुआ लीकेज तुरंत ठीक करलिया गया. परंतु दौरान काफी बड़े पैमाने पर राख नदी के पानी में समा चुकी थी.

    राख के निरंतर होनेवाले रिसाव को देखते हुए लीकेजों को दुरूस्त करने के लिए सीटीपीएस ने निजी ठेकेदारों को जिम्मेदारी सौपी है. जिन्हें कुछ किमी दूरी तक का ठेका दिया गया है. ठेकेदार के नियुक्त किए गए व्यक्ति इस रिसाव पर नजर रखे होते है. रिसाव होते ही तुरंत ही इसे ठीक कर दिया जाता है. बताया जाता है कि राख का रिसाव दोपहर 4 से 5 बजे शुरू होकर कई घंटे तक चला और जब सोशल मीडिया पर विडिओ वायरल होने के बाद और सूचना मिलने के बाद सीटीपीएस ने एक्शन लेते हुए तुरंत कार्रवाई की. 

    राख के रिसाव का जनजीवन पर काफी गहरा असर- प्रा.चोपणे

    पर्यावरण क्षेत्र से जुड़े  ग्रीन प्लेनेट सोसायटी के अध्यक्ष प्रा. सुरेश चोपणे ने बताया कि आज से 10-12 वर्ष पूर्व बड़े पैमाने पर राख इरई नदी में मिश्रित होती थी. उन्होने ही इस संदर्भ में आवाज उठाई और सीटीपीएस को उपाय करने के लिए विवश किया. पाईपलाईन में लीकेज की वजह से सप्ताह में एक दो बार ऐसी घटनाएं होना आम हो गया है.

    राख मिट्टी में मिलने के बाद बारिश में मिट्टी से होकर नदी में जा मिलती है. इस तरह बड़े पैमाने पर राख का नदी में मिलने का सिलसिला जारी है. उन्होने बताया कि राख में हेवी मेटल्स होते है जिसमें आर्रसेनिक, बेरियम, बोरन, सीसा, कैडनिमय, कोरनियम, मरक्यूरी, सिलिकॉ अल्यूमिनियम, कैलशियम आक्साईड, कार्बन आदि का समावेश है.

    यह हेवी मेटल्स नदी के पानी में मिलने से पेयजल जल के रूप में इस्तेमाल होने से लोगों को कैन्सर, मानसिक रोग, हदयरोग, किडनी विकार समेत कई अन्य बीमारियां होने का खतरा है. शहर वासियों को डैम का पानी सप्लाई होता है परंतु नदी का जल जो भी पेयजल के रूप में इस्तेमाल करते है उन्हें इसका असर होता है. जिस क्षेत्र में सीटीपीएस की राख सर्वाधिक रूप से नदी में मिश्रित हो रही है वहां का जलजीवन पूरी तरह से समाप्त हो चुका है. संबंधित क्षेत्र का जल पूरी तरह से प्रदूषित है.

    अधिक प्रमाण में राख मिश्रित होने से नदी का अस्तित्व खतरे में- वैद्य

    जलबिरादरी के संयोजक संजय वैद्य का कहना है कि पाईपलाईन लीकेज से राख का पानी में घुलना नियमित का अंग हो चुका है. राख पानी में जाकर घुल जाती है और कुछ अंश पात्र में जमा हो जाता है. परंतु ऐसा बड़े पैमाने पर और निरंतर होता रहा तो आगे जलकर नदी का पात्र पूरी तरह से समतल होकर नदी का अस्तित्व ही नहीं रहेगा. पिछले बार भी नदी सफाई के समय बड़े पैमाने पर राख का ओवरबर्डन पाया गया था.सीटीपीएस प्रबंधन को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

    संजय वैद्य