heat wave
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    चंद्रपुर. महाशिवरात्रि पर्व के बाद से धीरे धीरे गरमी बढ रही रही थी और अब होली आने से पूर्व ही पारा 40 डिग्री को छूने को बेताब है. ऐसे में आज मंगलवार को काफी अरसे के बाद लोगों को ग्रीष्म ऋतु का अनुभव हुआ. आज सुबह से ही धूप की तेज किरणों और लू वाली गर्म हवाओं ने लोगों को परेशानी में डाल रखा. मात्र 24 घंटे में ही पारे में  1.6 डिसे का उछाल आकर पारा 39.6 डिसे पर पहुंच गया. 

    समूचे विदर्भ में गरमी अपना असर दिखाने लगी है. आज मंगलवार को अकोला का सर्वाधिक तापमान 41.1 डिसे आंका गया. वर्धा  40 डिसे रहा. तीसरे नंबर पर अमरावती का तापमान  39.8 डिसे रहा और इससे कदमताल करते हुए चंद्रपुर, ब्रम्हपुरी और नागपुर का तापमान  39.6 डिसे आंका गया. वाशिम 39.5 डिसे, गोंदिया  38.8 डिसे, बुलढाणा  38 और यवतमाल का अधिकमत तापमान 37.5 डिसे रहा. 

    विश्व के सबसे गर्म शहरों में चंद्रपुर का शुमार

    अक्सर होली जलने के बाद पारे में उछाल आता है और पारा 40 से 43 डिसे के आसपास पहुंच जाता है. जो कि आगे बढते हुए अप्रैल में 45 से 46 डिसे और मई का महीना आते ही 48 के करीब पहुंच जाता है. चंद्रपुर शहर को प्रतिवर्ष दुनिया के सबसे गर्म शहरों में शुमार किया जाता है. यहां पारा 48 डिसे से अधिक के उच्चांक को पहुंचने का सिलसिला कई वर्षों से जारी है.

    आज मंगलवार से ग्रीष्मकाल की सही मायनों में शुरूआत भर हुई है.  इसके बावजूद आज  सुबह से तेज धूप  महसूस हो रही थी. लू की लपटों ने सभी का हाल बेहाल कर दिया. सुबह 11 बजे के बाद से तेज आग उगलती गर्मी में लोग सिर और कान और मूंह को कपड़ों से ढंककर लू की तेज हवाओं से बचते हुए नजर आये.

    प्रतिवर्ष चंद्रपुर का रहता है सर्वाधिक तापमान

    हर वर्ष विदर्भ के अन्य जिलों की तुलना में चंद्रपुर में सर्वाधिक रूप से गर्मी पड़ती है क्योकि जिले में स्थापित 700 से अधिक छोटे बड़े कलकारखानों के अलावा कोयला खदानें, सीमेंट, कागज, लौह अयस्क उद्योगों के अलावा राज्य में सर्वाधिक बिजली उत्पादित करनेवाला बिजली तापघर सीटीपीएस इसी जिले में है. यहां पिछले एक दशक में बढते औद्योगिकीकरण की वजह से कुल जंगल में से 35 प्रतिशत जंगल ही शेष रह गया है, सीमेंट क्रांकिट का संजाल फैलता जारहा है जिसकी वजह से चंद्रपुर जिला आग की तरह तप रहा है.

    वैसे भी भीषण गर्मी चंद्रपुरवासियों के लिए नई नहीं है. यहां हर वर्ष अप्रैल और मई में आसमान से आग बरसती है. परंतु यहां मार्च के उत्तरार्ध में ही 40 डिग्री सेल्सिअस तापमान बढने से अप्रैल माह में पारा 45 डिग्री सेल्सिअस तक जाना स्वाभाविक है. यही कारण है कि लू के शिकार लोगों की तादाद भी इन दोनों महीनों में बढती है. यहां के लोग गर्मी के आदी हो चुके है परंतु लू का कहर लोगों की सहनशक्ति की हर वर्ष परीक्षा लेता है.

    लू की लहर बढने की संभावना

    आनेवाले कुछ ही दिनों में जिले में तेज धूप और पारा चढने से लू लगने की घटनाओं में बढोत्तरी संभव है इसलिए इससे बचना जरूरी है. लम्बे समय तक खेतों में काम करने, कारखानों के बायलर रूम तथा कांच कारखानों की भट्टी में काम करनेवाले, तंग और मोटे कपड़े पहननेवालों को उष्माघात होने की ज्यादा संभावना रहती है. उष्माघात का शिकार होने पर मरीज को थकान, बुखार और त्वचा सूख जाने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते है. पीड़ितों को भूख नहीं लगती है और चक्कर आने लगते है.

    कई मामलों में रक्तचाप बढ जाने से मरीज मूर्छित हो जाता है. उष्माघात से बचने के लिए गर्मियों के दिनों में अत्यंत मेहनत के काम ना करने, गर्मी सोखनेवाले कपड़ों का उपयोग न करते हुए सफेद रंग के कपड़े पहनने, भरपूर पानी पीने, धूप में काम करते समय थोडी थोडी देर में छांव में विश्राम करने, धूप से निकलते समय चश्मा, टोपी, गमछा आदि का उपयोग करने की सलाह जिला प्रशासन ने दी है.

    इसके अलावा उष्माघात का शिकार होने पर मरीज को तत्काल हवादार कमरे में पंखे तथा कूलर के पास रखने, बर्फ के पानी से नहलाने, मरीज के माथे पर ठंडे पानी की पट्टिया रखने जैसे उपाय की सलाह दी है. तेज धूप में निकलते समय अपने सिर, नाक और कान को कपड़े से ढंककर निकलने की सलाह जाती है.