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तिरोड़ा (त.सं). किसानों को 1 अप्रैल से 31 मार्च की समय का 1 वर्ष के लिए फसल कर्ज की योजना के लिए बगैर ब्याज के किसानों की ओर से स्थापित विविध कार्यकारी सेवा सहकारी संस्था के माध्यम से इस संस्था के सदस्य किसानों को इनकी जगह के अनुपात से कर्ज दिया जाता है. बगैर ब्याज के केवल सात बारा, 8 अ, आधारकार्ड को देखकर ही बगैर किसी झंझट व संस्था के चक्कर न काटते हुए सरलता से कर्ज मिलने की वजह से किसानों का रूख गांव की ही संस्था से कर्ज लेने की मानसिकता किसानों में पनप रही हैं. जबसे बगैर ब्याज का कर्ज मिलना प्रारंभ हुआ है. तबसे और भी कर्ज लेनेवालों की भीड़ बढने लगी हैं.

कर्ज की राशि संस्था द्वारा देकर उनके को-ऑप बैंक के खाते में जमा की जाती है. इन्हें नकद हाथ में नहीं मिलने से किसी भी प्रकार का गैरव्यवहार नहीं होता व किसी भी प्रकार की घुसखोरी की भी गुंजाइश नहीं रहती. महाराष्ट्र की सरकार ने अभी अभी निर्णय लेकर कर्ज की राशि पर 6 प्रश ब्याज लेकर वसूल करने का आदेश बैंकों को भेजा व बैंकों ने सभी कर्ज वितरण करने वाली सेवा सहकारी संस्थाओं को भेजा है.

इस आदेश में यह भी खुलासा किया है कि जो किसान ब्याज सहित कर्ज अदा नहीं करेगा व मुद्दल राशि ही देगा वह 31 मार्च को कर्जदार बकाया कहलाएगा व इन्हे 1 अप्रैल के बाद कर्ज नहीं दिया जाएगा. अगर कर्ज मंजूर किया भी गया तो मंजूर कर्ज की राशि में से पहले बकाया ब्याज की राशि काट ली जाएगी. जिन किसानों ने चालू कर्ज की राशि 4 मार्च के पहले तक जमा की है उस पर का ब्याज भी वसूल किया जाए. इस तरह का निर्णय लेकर किसानों को बगैर ब्याज का कर्ज देने की लालच दिखाई. अब ब्याज सहित वसूल करने की सख्ती लगाकर किसानों को फंसाया जा रहा हैं. 

कुछ किसान ही नियमित अदा करते हैं

संस्था के सदस्य किसानों में से ही 5 वर्ष के लिए 13 संचालकों का चुनाव होता है. जिसमें से अध्यक्ष, उपाध्यक्ष चुने जाते हैं. इनको कर्ज लेना अनिवार्य रहता है व 31 मार्च को क्लियर करना भी जरूरी होता है. अन्यथा इनका संचालक पद समाप्त होता हैं. इस डर से यह 13 संचालक किसान कर्ज लेते व समय पर अदा करते हैं. इनके जैसे ही कुछेक किसान जो उंगली पर गिनने लायक है जो कर्ज लेते हैं व समय पर अदायगी कर देते हैं. इन्हीं किसानों के भरोसे संस्थाएं चल रही हैं. बाकी अधिकांश किसान कर्ज जरूर उठाते हैं व कर्जमाफी होने की राह देखते हैं. चुनाव आते है तब सरकारे वोटों की राजनीति कर फसल काटने का ढोंग कर नाममात्र छुटपुट जो किसान कर्ज उठाते हैं व देते ही नहीं उनके ही कर्ज माफ करती हैं. अब इन किसानों को आदत सी बन गई है. कर्जमाफ हुए किसान कर्जमाफी के वर्ष नया कर्ज लेने लाइन लगाकर खड़े रहते हैं. सरकार की भी कितनी भी निंदा की जाय कम ही होगी. पिछले कर्जमाफी के वर्ष में कर्जमाफ किया व संस्थाओं को पत्र दिया की जिन किसानों का कर्जमाफ हुआ है. उनके घर जाकर उन्हें नया कर्ज लेने प्रोत्साहित करें. सरकार के लिए चोर को छोड़ सन्यासी को फांसी वाली कहावत चरितार्थ होती है.

सरकार की दोगली नीति

संस्थाओं से कर्ज लेने पर कर्ज की रक्कम के अनुपात व लघु व मध्यम वर्ग के किसानों को मंजूर कर्ज की राशि पर 2.5 प्रश व 5 प्रश शेअर्स संस्था कर्ज की राशि में से ही काट लेती हैं. अब दूसरी ओर 6 प्रश ब्याज भी देगा तब भला कौनसा किसान कर्ज लेने आगे आएगा. कर्ज में से 2 प्रकार की कटौती कैसे सहन करेगा. अब किसानों का रूख व्यापारी बैंकों की ओर बढ़ेगा. जहां पर शेअर्स नहीं कटते. 6 प्रश ब्याज में 3 प्रश. राज्य व 3 प्रश केंद्र सरकार देती है. किसानों की ओर से आवाज उठ रही है कि सरकार अपनी घोषणा पर कायम रहे. नहीं तो दोनों राज्य व केंद्र की सरकारों पर खाने के दांत अलग व दिखाने के दांत अलग वाली कहावत चरितार्थ होगी.