जलस्तर बढ़ाने के लिए जन जागृति की आवश्यकता

    Loading

    गोंदिया. पानी पर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी और आर्थिक विकास निर्भर है. इस समय देश में कुल 1123 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) जल उपलब्ध है जिसमें 690 बीसीएम सतही जल और शेष भू-जल है. जलाशयों की भंडारण क्षमता सीमित है. इसके साथ-साथ हमारे देश में पानी की एक स्थानीय भिन्नता है यानी अर्ध-शुष्क क्षेत्र को मानसून में कम पानी मिलता है तो पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों को अधिक. साल के लगभग 4 महीनों में मानसून का पानी मिल पाता है. मौसम में बदलाव के साथ पर्यावरण का बिगड़ता संतुलन अनेक आपदाओं को जन्म दे रहा है.

    पानी की बढ़ती मांग के बीच दिनोंदिन  बोरवेल खोदकर भूगर्भ के पानी का दोहन किया जा रहा है लेकिन भूमिगत जल स्तर बढ़ाने की  दिशा में उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है.  जिससे जलस्तर  नीचे जा रहा है. गर्मी के मौसम में बोर व कुएं सूखने लगते है.  घटते जलस्तर को बढ़ाने तथा पानी के उचित उपयोग के लिए जनजागृति की आवश्यकता प्रतिपादित की जा रही है. सरकार की ओर से भी घटते जलस्तर को बढ़ाने के लिए सभी आवश्यक उपाय योजनाओं पर जोर दिया जा रहा है. बावजूद उसका कोई विशेष फायदा होता नजर नहीं आ रहा है.

    हर साल मानसून की बारिश भी कभी कम तो कभी अधिक होती है. बारिश के पानी को रोकने को लेकर समुचित संसाधन नहीं होने के कारण बारिश का पानी हर साल बेकार बहकर चला जाता है. अगर इसे रोका जाए तो संभव है कि हर साल ग्रामीण इलाकों में पैदा होने वाले जल संकट से बचा जा सकता है.  जलस्तर बढ़ाने के लिए पौधारोपण, बांध, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए. हालांकि इन योजनाओं पर सरकार की ओर से प्रति वर्ष भारी खर्च होता. यह योजनाएं भी जमीनी स्तर पर साकार नहीं होती हैं.  खर्च की अपेक्षा  फलश्रुति नगण्य रहती है. 

    स्थानीय स्तर पर पहल जरूरी 

    जल विशेषज्ञों के अनुसार जल संरक्षण के प्रयास या वर्षा जल संचयन के प्रयास स्थानीय स्तर पर होने चाहिए और स्थानीय प्रयासों के बिना जल संरक्षण के प्रयास व्यापक अभियान का रूप नहीं ले सकेंगे. वर्ष 1997 में देश में जलस्तर 550 क्यूबिक किलोमीटर था. लेकिन ताजा अनुमान के मुताबिक,  यही नहीं, वर्ष 2050 तक यह जलस्तर और गिरकर महज 100 क्यूबिक किलोमीटर से भी कम हो जाएगा. फिलहाल गर्मी का मौसम शुरू है.

    सभी लोग परेशान हैं लेकिन बारिश के मौसम में गिरने वाले पानी का नियोजन अभी से करने को लेकर आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है. इसके लिए मानसून के दस्तक देने से पहले ही व्यापक जनजागृति की जरूरत है. जमीन में पानी की कमी के चलते अनेक जगहों पर 300 से 400 फुट तक बोर खोदने के बावजूद पानी नहीं लग रहा है. 

    बोरवेल खोदने पर जोर 

    नई प्लॉटिंग, सोसाइटी, निवासी बस्तियों का विस्तार हो रहा है और ऐसे स्थानों पर  पानी की  व्यवस्था नहीं होने के कारण प्रत्येक सोसाइटी, निवासी बस्तियों में  बोरवेल खोदने पर जोर दिया जाता है. जिसके कारण जितने प्लॉट उतने बोरवेल हो रहे हैं लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग पर ध्यान नहीं दिया जाता. इस तरह के समीकरण होने के कारण शहर व ग्रामीण इलाकों में पानी के लिए जमीन की छलनी हो रही हैं. जमीन में पानी नहीं होने के कारण अनेक स्थानों पर 300 से 400 फुट तक बोरवेल खोदने के बावजूद पानी नहीं लगता.