Fire in Forest, Deori, Gondia
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    गोंदिया.  वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आने वाले जंगलों में 16 फरवरी से आग लगने की घटनाएं शुरू हो गई हैं. उपाय के तौर पर जंगल में नेट लाइन जलाने का काम 15 फरवरी को समाप्त हो गया है और अब जंगल को आग से बचाने के लिए वन अधिकारियों से लेकर मैदानी अमले को ‘सतर्क’ रहने के निर्देश दिए गए हैं. 15 जून तक रेड अलर्ट जारी है और नागरिकों के सहयोग से जंगल की आग बुझाने के लिए सावधानी बरतने के निर्देश संबंधितों को दिए गए हैं.

    जहां करोड़ों रुपए के पौधे रोपे जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हर साल गर्मियों में हजारों हेक्टेयर जंगल साफ हो जाते हैं. इसमें जंगली जानवर सहित जीव जंतू मारे जाते हैं. जबकि करोड़ों रुपये के वन संसाधन नष्ट होते है व पर्यावरण का सबसे अधिक नुकसान होता है. जंगल की आग मानव निर्मित और प्राकृतिक हैं. अब तक की जांच में यह स्पष्ट हो गया है कि आग मानव निर्मित है. आग से बचाव के लिए वन विभाग ने वन व्यवस्थापन समितियों व ग्रामीणों को गांवों में बैठक कर जन जागरूकता करने व ग्रामीणों का सहयोग लेने के निर्देश दिए हैं.

    15 फरवरी तक वनाग्नि के मौसम में जिला अंतरराज्यीय राजमार्गों से लेकर प्रत्येक वन प्रखंड की वन सीमाओं पर आग से बचाव के लिए जाली की लाईनों को काटने व जलाने का कार्य किया गया. प्रत्येक वन प्रखंड में 6 मीटर, अंतर्राज्यीय व जिला सीमाओं पर 12 मीटर तक आग लगाई गई. आग को और फैलने से रोकने के लिए, एक सड़क के आकार की कूड़े की पट्टी को बरकरार घास के एक क्षेत्र में जला दिया जाता है, जिसे ग्रिड लाइन कहा जाता है. वन अधिकारियों ने कहा कि यह काम अब खत्म हो गया है.

    सैटेलाइट से मिलेगी आग की जानकारी

    वन कर्मचारियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे जंगल में लगी आग का रिकॉर्ड उस जगह के साथ रखें जहां से आग लगी थी. वहीं सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से सैटेलाइट के माध्यम से संबंधित वन संरक्षक व वरिष्ठ अधिकारियों को सूचना भेजी जाती है. लेकिन यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में कुछ क्षेत्रों में वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि हुई है. इसे कम करने के लिए प्रकृति प्रेमियों को आगे आने की जरूरत है.