सीबीआई की एक विशेष अदालत ने धोखाधड़ी के एक मामले में राणा कपूर को जमानत देते हुए कहा कि बिना मुकदमे उन्हें कारागार में रखना ‘सुनवाई से पहले सजा' के समान होगा। कपूर को शुक्रवार शाम को विशेष सीबीआई न्यायाधीश एम जी देशपांडे द्वारा उनके खिलाफ लंबित आखिरी मामले में जमानत दिए जाने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया।
मुंबई: मुंबई स्थित सीबीआई की एक विशेष अदालत (CBI Court) ने धोखाधड़ी के एक मामले में यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर (Rana Kapoor) को जमानत दे दी है और कहा है कि बिना मुकदमे उन्हें कारागार में रखना ‘सुनवाई से पहले सजा’ के समान होगा। कपूर को शुक्रवार शाम को विशेष सीबीआई न्यायाधीश एम जी देशपांडे द्वारा उनके खिलाफ लंबित आखिरी मामले में जमानत दिए जाने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया। कपूर को पहली बार मार्च 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने धनशोधन के मामले में गिरफ्तार किया था। ईडी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने यस बैंक में कथित धोखाधड़ी को लेकर राणा के खिलाफ कुल आठ मामले दर्ज किए हैं।
अदालत द्वारा मामले में दिए गए फैसले की विस्तृत प्रति शनिवार को उपलब्ध कराई गई जिसमें कहा गया है कि इसका कोई न्यायोचित तर्क नहीं है कि अन्य मामलों में पहले ही चार साल कारागार में बिता चुके आवेदक को और हिरासत में क्यों रखा जाना चाहिए कि खासकर जब उसे जमानत दी गई हो। न्यायाधीश ने कहा कि कपूर की निरंतर हिरासत ‘मुकदमे से पहले की सजा के समान होगी’। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ‘‘इस सीबीआई द्वारा दर्ज विशेष मामले और पीएमएलए विशेष मामले (उनके खिलाफ) के लिए एक साथ सुनवाई शुरू करने और समाप्त करने के संबंध में” अदालत को संतुष्ट करने में विफल रहा।
अदालत ने आगे कहा, ‘‘वह (विशेष लोक अभियोजक) यह नहीं बता सके कि जमानत आवेदन में उल्लिखित कई स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित 66 वर्षीय आवेदक को अनिश्चित काल तक जेल में क्यों रहना चाहिए।” न्यायधीश ने टिप्पणी की कि यहां तक कि अगर आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला है और अगर गवाहों या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या मुकदमे से भागने की कोई उचित आशंका नहीं है तो भी आरोपी मुकदमा लंबित रहने तक जमानत का हकदार है।
अदालत ने कहा, ‘‘यह गौर करना महत्वपूर्ण है कि आवेदक (कपूर) की समाज और मुंबई में गहरी पैठ है। उनके परिवार में एक अविवाहित बेटी और एक पत्नी है जो उन पर निर्भर हैं। वह अब यस बैंक से जुड़े नहीं हैं और रिकार्ड के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ की आशंका को लेकर उनकी बैंक तक कोई पहुंच भी नहीं है।” अदालत ने कहा कि इसलिए उनकी रिहाई के बाद अभियोजन पक्ष के गवाहों को धमकाने या उन पर दबाव डालने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का कोई सवाल ही नहीं है। इसके अतिरिक्त, अपनी अविवाहित बेटी और पत्नी के प्रति ज़िम्मेदारी को देखते हुए, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वह भारत छोड़ देंगे और उनके भागने का खतरा पैदा होगा। विशेष न्यायाधीश ने अपने आदेश में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के हालिया बयानों का भी हवाला दिया, जिसमें निचली अदालतों द्वारा जमानत देने में अनिच्छुक होने पर गहरी चिंता व्यक्त की गई थी।
(एजेंसी)