politics of Maharashtra

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नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले दो साल काफी उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। इसमें एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के इस्तीफे से लेकर राष्ट्रवादी के दो गुटों में बटने तक। इसके साथ ही मराठा आरक्षण के लिए मनोज जरांगे पाटिल का आमरण अनशन हो या ओबीसी के लिए छगन भुजबल का सभाएं। सभी ने राज्य की राजनीति को नई दिशा दी है। वहीं, नरेंद्र मोदी का पुणे दौरे के वजह से राज्य में नया द्वंद्व देखने को मिला। ऐसी कई घटनाएं है, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति साल भर चर्चा का विषय बनी रही। तो आइये जानते है महाराष्ट्र की राजनीति के कुछ घटनाक्रम… 

शरद पवार का इस्तीफा वापस 

सबसे पहले बात करेंगे हम राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार की। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार का इस्तीफा काफी चर्चाओं में रहा। उस घटना के कुछ ही महीनों बाद एनसीपी में फूट पड़ गई। इसके साथ ही महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद एनसीपी में भी दो गुट हो गए। इस साल 2 मई 2023 को शरद पवार की पुस्तक ‘लोक माझे सांगाती’ के दूसरा संस्करण मुंबई के यशवंतराव चव्हाण केंद्र में लॉन्च किया गया था। इस दौरान कार्यक्रम शरद पवार समेत उनकी पत्नी प्रतिभा पवार, अजित पवार, सुप्रिया सुले जैसे कई लोग मौजूद थे। पुस्तक विमोचन समारोह के बाद शरद पवार ने अचानक घोषणा की कि वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देंगे। इसके बाद कार्यक्रम में हंगामा मच गया।

उपस्थित सभी नेताओं ने शरद पवार को घेर लिया और उनसे अपना इस्तीफा वापस लेने का अनुरोध किया। इसके बाद वरिष्ठ नेताओं ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए शरद पवार से अपना इस्तीफा वापस लेने का अनुरोध किया। इस घटना से कई तरह की चर्चाएं छिड़ गईं। शरद पवार के बाद किसके हाथ जाएगी NCP? कौन होगा पार्टी अध्यक्ष पद का दावेदार? क्या शरद पवार लेंगे राजनीति से संन्यास? इस तरह के कई सवाल सामने आए। कार्यकर्ताओं और नेताओं के अनुरोध के अनुसार, शरद पवार ने घोषणा की कि वह विचार-विमर्श के बाद निर्णय लेंगे और बाद में अपना इस्तीफा वापस ले लिया। इसके चलते शरद पवार का इस्तीफा खूब चर्चा में रहा।

NCP में फूट- अजित पवार की बगावत

इसी साल 2 जुलाई को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में बगावत हो गई। अजित पवार ने राज्य में बीजेपी की शिंदे सरकार के साथ चले गए और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, जबकि उनके साथ 8 अन्य विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। उनमें दिलीप वलसे पाटिल, हसन मुश्रीफ, धनंजय मुंडे, अनिल पाटिल, छगन भुजबल जैसे नेता शामिल थे। बगावत के बाद एनसीपी का वैसा ही हाल हुआ जैसे शिवसेना का हुआ।

पार्टी के चुनाव चिह्न, नाम को लेकर कानूनी लड़ाई छिड़ गई। चुनाव आयोग के समक्ष सुनवाई शुरू हुई। इस दौरान शरद पवार और अजित पवार के बीच  आरोप प्रत्यारोप भी हुए। इतना होने के बावजूद शरद पवार ने कानूनी तौर पर यह स्वीकार नहीं किया है कि राष्ट्रवादी पार्टी में विभाजन हो गया है। चुनाव आयोग के सामने अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने बताया कि पार्टी में एक समूह ने अपना रुख बदल लिया है और सरकार में शामिल हो गया है। अब देखना दिलचस्प ये होगा NCP पार्टी का असली हक़दार कौन है।  

मराठा आरक्षण के लिए धरना, अनशन

महाराष्ट्र में बीते कई सालों से मराठा आरक्षण की मांग चल रही है। इस बीच बड़े पैमाने पर मराठा क्रांति मार्च निकल चुके थे, इसके बाद राज्य में मराठा आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ा। सितंबर महीने में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जालना जिले के अंतरवाली सराती में कुछ प्रदर्शनकारी अनशन पर थे। जिन पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज की घटना घटी। इस घटना के विरोध में प्रदर्शनकारी मनोज जारांगे पाटिल ने अनशन शुरू कर दिया और तब से राज्य में मराठा आरक्षण की मांग ने और जोर पकड़ लिया। 

मराठा आरक्षण को लेकर कई बैठकें हुईं, शृंखलाबद्ध भूख हड़ताल, आमरण अनशन, सड़क जाम, हिंसा और आगजनी जैसे कई घटनाक्रम देखे गए। इससे सरकार पर बहुत दबाव बना, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने जस्टिस शिंदे समिति का गठन किया और जिन लोगों के कुनबी रिकॉर्ड पाए गए, उन्हें कुणबी प्रमाणपत्र जारी करना शुरू कर दिया। यह भी देखा गया है कि गुणरत्न सदावर्ते ने मराठा आरक्षण का विरोध किया और छगन भुजबल ने ओबीसी से आरक्षण का विरोध किया। इस आंदोलन से मनोज जारांगे पाटिल के रूप में मराठा समुदाय का एक नया नेतृत्व उभरा है।

छगन भुजबल की ओबीसी बैठक

राज्य में जैसे ही मराठा आरक्षण की मांग ने जोर पकड़ा कि उन्हें तुरंत ओबीसी में शामिल किया जाए। वैसे ही ओबीसी नेता छगन भुजबल ने इस मांग का विरोध किया। इस दौरान उन्होंने कई सभाएं  की। जिनमें उन्होंने ओबीसी का आरक्षण बचाने के लिए ओबीसी एल्गर सभा का आयोजन किया। इन बैठकों में ओबीसी नेता शामिल हुए। उन्होंने मनोज जारांगे के मराठा आरक्षण के रुख का भी विरोध किया। इन सभाओं में आक्रामक भाषण देने को लेकर छगन भुजबल पर कई तरह के आरोप लगाए गए हैं।   

विधायक अयोग्यता मामला

विधायक अयोग्यता मामला इस साल महाराष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण घटना नहीं जबकि राज्य के राजनितिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। शिवसेना के अलग होने के बाद सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग में सुनवाई हुई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायक की अयोग्यता के मामले की सुनवाई करना विधानसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी है। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के पास विधायक अयोग्यता मामला आया। लेकिन समय में फैसला न देने को लेकर शिव सेना ठाकरे समूह ने भी उनकी आलोचना की। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई थी। यह सुनवाई राज्य के राजनीतिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।  इसमें शिवसेना जैसे क्षेत्रीय दलों के विधायक अयोग्य ठहराए जाएंगे। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सुप्रीम कोर्ट से अंतिम फैसला सुनाने के लिए 10 जनवरी तक की मोहलत मांगी है। जिसे सुप्रीम कोर्ट से एक्सटेंशन मिल चुका है। 

शासन आपके द्वार कार्यक्रम

महाराष्ट्र की शिंदे सरकार ने पिछले एक वर्ष में ‘शासन आपल्या दारी’ यह कार्यक्रम को राज्य के विभिन्न स्थानों पर चलाया। सरकार द्वारा इस पहल की शुरुआत सतारा जिले से की गई, जो मुख्यमंत्री का गृह जिला है। अब तक यह पहल बुलढाणा, परभणी, शिरडी, अहमदनगर, जेजुरी, नासिक, धुले, गढ़चिरौली, जलगांव, नांदेड़, पालघर, कोल्हापुर, सिंधुदुर्ग, छत्रपति संभाजीनगर, रत्नागिरी जिलों में लागू की गई है। इस पहल के तहत जिला कलेक्टर को कृषि, ग्रामीण विकास, सामाजिक न्याय, आदिवासी विकास, कौशल विकास, स्कूल शिक्षा सहित विभिन्न विभागों को शिविर लगाने के लिए दी गई धनराशि खर्च करने की अनुमति दी गई है। साथ ही कई जगहों पर इस कार्यक्रम का विरोध भी देखने को मिला। यवतमाल में कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम में खलल भी डाला था। कार्यक्रम को मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री और पालकमंत्री मंत्री संबोधित कर रहे हैं। इस कारण यह कार्यक्रम महत्वपूर्ण है।

पंकजा मुंडे की शिव शक्ति यात्रा

अगस्त से पहले पंकजा मुंडे दो महीने की छुट्टी पर चली गईं। उन्होंने कहा था कि वह छुट्टी पर जायेंगे क्योंकि वह राज्य में चल रही राजनीति से थक गये हैं। इसके बाद अगस्त महीने से वह फिर से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गईं। राजनीति में दोबारा सक्रिय होते हुए उन्होंने शिव शक्ति यात्रा निकाली। उन्होंने कहा कि इस यात्रा में वह महाराष्ट्र में ज्योतिर्लिंग और साढ़े तीन शक्तिपीठों के दर्शन करेंगे। इस दौरे की शुरुआत उन्होंने घृष्णेश्वर मंदिर के दर्शन से की। इसके बाद वह इस यात्रा पर नासिक, नगर, पुणे, सतारा, कोल्हापुर जैसे जिलों में गए और समर्थकों से मुलाकात की। इस वजह से यह यात्रा उनके राजनीतिक सफर के लिए अहम हो गई। इस यात्रा के जरिए महाराष्ट्र में उनकी लोकप्रियता देखने को मिली। यह यात्रा 11 दिनों तक चली। इससे पंकजा मुंडे राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गईं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुणे दौरा

देश में मणिपुर का मुद्दा गरमाया हुआ था। मणिपुर में हिंसा की घटनाएं बढ़ रही थीं। इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र दौरे पर आए थे। उनकी इस यात्रा को लेकर विपक्ष ने जमकर विरोध किया था। महाराष्ट्र  दौरे पर आए पीएम को पुणे में तिलक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि इस पुरस्कार के लिए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार भी मौजूद थे। वहीं, पुणे में विपक्षी दलों के नेताओं ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने काले कपड़े पहन और काले झंडे दिखाकर उनका (पीएम मोदी) विरोध किया था। 

बीआरएस का महाराष्ट्र में प्रवेश

तेलंगाना के गठन के बाद से ही चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (तेलंगाना राष्ट्र समिति) राज्य में सत्ता में थी। इसके बाद केसीआर ने महाराष्ट्र की राजनीति में एंट्री की थी। उनके महाराष्ट्र में प्रवेश से राज्य की राजनीति में हलचल मच गई थी। राज्य में आते ही केसीआर ने लोगों से तेलंगाना मॉडल के बारें में चर्चा की और महाराष्ट्र में किसान सरकार लाने का विश्वास दिलाया। उन्होंने नांदेड़, सोलापुर, छत्रपति संभाजीनगर जैसे मराठवाड़ा के कई जिलों में बैठकें की। इस साल केसीआर के कारों के बड़े बेड़े के साथ पंढरपुर आने की घटना भी खूब चर्चा में रही। कहा गया कि बीआरएस के महाराष्ट्र में प्रवेश से महाराष्ट्र की राजनीति बदल जाएगी। लेकिन तेलंगाना में बीआरएस की हार के बाद महाराष्ट्र में भी उनका दबदबा कम होता नजर आ रहा है।

युवा संघर्ष यात्रा

प्रदेश में पेपर लीक, भर्तियों में भ्रष्टाचार, सरकार भर्ती, स्पर्धा परीक्षाओं की अत्यधिक फीस, बेरोजगारी जैसे कई युवाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर एनसीपी के युवा नेता विधायक रोहित पवार ने युवा संघर्ष यात्रा निकाली थी। ये संघर्ष यात्रा पुणे से शुरू होकर पैदल मार्च करते हुए नागपुर विधान भवन तक पहुंची। इस यात्रा में रोहित पवार के साथ कई युवा चल रहे थे। उन्होंने इस दौरान राज्य के विभिन्न स्थानों पर बैठकें कीं। इस यात्रा के दौरान कई नेताओं ने उनकी आलोचना भी की। अजित पवार के गुट के विधायक अमोल मिटकारी ने भी सवाल उठाया कि उन्होंने कैसा संघर्ष किया?  यात्रा के अंतिम दिन समापन सभा जीरो माइल, नागपुर में आयोजित की गई। उस बैठक में शरद पवार, दिग्विजय सिंह, संजय राउत, अमोल कोल्हे जैसे नेता मौजूद थे।