लगातार हो रहे कंस्ट्रक्शन ने मुंबई में बढ़ाई गर्मी!

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    मुंबई : अगर आप अक्टूबर की गर्मी से बेहाल हैं तो केवल जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को दोष न दें। पर्यावरण (Environment) के लिए काम कर रही तीन संस्थानों के शोधकर्ताओं के एक समूह ने अपने अध्ययन में पाया है कि गायब होती जंगल और झाड़ियां और लगातार हो रहे कंस्ट्रक्शन (Construction) ने गर्मी (Heat) बढ़ाई हैं। इसने पाया है कि भूमि उपयोग के बदलते तरीकों और अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव से 1991 से 2018 के बीच औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। 

    अध्ययन में पाया गया है कि 1991 से 2018 के बीच मुंबई के 81% खुले क्षेत्र (बिना पेड़-पौधे वाले बंजर स्थान), इसका 40% हरित आवरण (जंगल और झाड़ियां) और इसके अपने जल स्रोतों (झीलों, तालाबों, बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों) का लगभग 30% हिस्सा खत्म हो गया। जबकि इसी अवधि के दौरान निर्मित क्षेत्र (विकसित किए गए क्षेत्र) में 66% की वृद्धि हुई है। अध्ययन के निष्कर्ष के मुताबिक, इन 27 वर्षों में महानगर के औसत तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।

    शहर के अंदर का तापमान और तेज बढ़ेगा

    जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के प्रकृति विज्ञान संकाय (फैकल्टी ऑफ़ नेचुरल साइंसेस) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि जिस तरह से शहरीकरण बढ़ रहा है और लैंड के यूज में परिवर्तन हो रहा है, उससे महानगरों में शहर के अंदर का तापमान और तेज बढ़ेगा। इसमें यह भी पाया गया है कि 1991-2018 के दौरान, मुंबई शहर ने जंगलों (घने वनस्पति वाले क्षेत्र) और स्क्रबलैंड (कम घने वनस्पति वाले क्षेत्र) सहित अपने हरित आवरण का लगभग 40% खो दिया। 1991 में मुंबई का हरित आवरण 287।76 वर्ग किमी था जो 2018 में कम होकर 193।35 वर्ग किमी रह गया।

    मुंबई का औसत तापमान 2.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ा

    खुले क्षेत्र का रकबा आधा से ज्यादा कम होकर 1991 के 80.57 वर्ग किलोमीटर से 2018 में 33.7 वर्ग किलोमीटर रह गया। इसी अवधि के दौरान मुंबई में जल स्रोतों का क्षेत्रफल 27.19 वर्ग किमी से घटकर 20.31 वर्ग किमी हो गया। इस बीच खुले क्षेत्र, हरित आवरण वाले क्षेत्र और जल स्रोतों पर पक्का निर्माण 1991 से 2018 के बीच बढ़कर लगभग दोगुना हो गया। 1991 में 173.09 वर्ग किमी क्षेत्र पर ऐसा निर्माण था, जो 2018 में 346.02 वर्ग किमी तक पहुंच गया। मुंबई का औसत तापमान 1991 में 34.08 डिग्री सेल्सियस था जो 2018 में 2.2 डिग्री सेल्सियस बढ़कर 36.28 डिग्री सेल्सियस हो गया। इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल आर्किटेक्चर एंड रिसर्च (आईईएआर) के अध्यक्ष डॉ. (आर्किटेक्ट) रोशनी उदयवर येहुदा ने बताया कि अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव इमारतों और सड़कों या खुली जगहों पर कंक्रीट, स्टील और कांच जैसे निर्माण सामग्री के इस्तेमाल में वृद्धि के कारण पैदा होता है।

    ओपन और ग्रीन स्पेस कम हो रहे

    रोशनी उदयवर येहुदा ने बताया कि हवा के प्रवाह में कमी, जो अक्सर शहरी क्षेत्रों में निर्मित पास-पास खड़ी संरचनाओं के कारण होती है, से भी तापमान बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि मुंबई में विकास मुख्य रूप से बिल्ट स्पेस और फ्लोर स्पेस इंडेक्स पर आधारित है। उन्होंने कहा कि शहर के अधिकांश निवासियों द्वारा सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के बावजूद सड़क किनारे चार-पहिया वाहनों के लिए पार्किंग और फ्लाईओवर जैसे बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता दी जाती है। स्वाभाविक रूप से इस कारण खुली जगहें, हरे भरे स्थान और सॉफ्टस्कैप (बगीचा, फूल, पौधे, झाड़ियां, पेड़ आदि) घट रहे हैं। शहर की विकास योजनाएं तैयार करते वक़्त अर्बन हीट आइलैंड की हकीकत पर भी विचार करना चाहिए।

    …तो क्या करें

    इस बारे में अपनी सिफारिश देते हुए डॉ. येहुदा ने कहा कि अर्बन हीट आइलैंड प्रभावों का मुकाबला करने के लिए पक्की संरचनाओं के अनुपात में खुली जगहों का प्रतिशत बढ़ाया जाना चाहिए। सड़कों के किनारे वृक्षारोपण, शहर को बगीचे और सॉफ्टस्केप से सजा कर, पार्किंग क्षेत्रों पर ग्रीन कवर शेडिंग की शुरुआत और जल स्रोत मुंबई में इस तरह के प्रभावों का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं। रूफटॉप गार्डन, ठंडी छतों या कूल रूफ़स (जिन पर उच्च परावर्तक पेंट लगाया जाता है) और शहरों में छतों पर खेती भी इसे (अर्बन हीट आइलैंड दुष्प्रभाव) कम करने में मदद मिलेगी। किसी भी निर्माण परियोजना में शहर के भीतर वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए न कि पेड़ों को काटने और इसके मुआवजे के तौर पर कहीं और प्रतिपूरक वनरोपण की इज़ाज़त दी जानी चाहिए।