GMCH

    Loading

    • 221 वेंटिलेटर 
    • 187 शुरू अवस्था में
    • 25 बेड का मेडिसिन आईसीयू
    • 2,500 से ज्यादा OPD 

    नागपुर. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल इस वर्ष अपनी स्थापना के 75वें वर्ष मना रहा है. इतने वर्षों में मेडिकल में काफी बदलाव आये. इसका लाभ मरीजों को भी मिला है लेकिन विदर्भ के अन्य जिलों सहित महानगर पालिका के अस्पतालों का अपग्रेडेशन नहीं होने का ही नतीजा है कि जब भी कोई मरीज गंभीर होता है या अंतिम क्षणों तक पहुंच जाता है, तब उसे मेडिकल रेफर किया जाता है. डॉक्टरों की एक स्टडी में पाया गया है कि रेफर होने या कैजुअल्टी में भर्ती होने कुल मरीजों में 50 फीसदी अंतिम क्षणों में पहुंचते हैं. इस हालत में मरीजों का इलाज डॉक्टरों के लिए बेहद चुनौती भरा होता है. समय पर साधन-सुविधाएं नहीं मिलने की वजह से कई बार मरीजों की मौत भी हो जाती है. उम्मीद थी कि एम्स बनने के बाद मेडिकल पर मरीजों का दबाव कम होगा लेकिन स्थिति विपरीत बनी हुई है. मेडिकल में हर दिन 2,500-3,000 तक ओपीडी पहुंच गई है. वहीं दूसरी ओर एम्स की ओपीडी भी 1,800-2,000 तक पहुंच गई है जबकि मैन पॉवर की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है.

    मैन पॉवर की कमी गंभीर समस्या

    जब भी कोई गंभीर मरीज भर्ती किया जाता है तो उसे तुरंत डॉक्टर की मदद के साथ ही ऑक्सीजन और वेंटिलेटर और आईसीयू की आवश्यकता होती है. जबकि मेडिकल में कुल 221 वेंटिलेटर हैं. इनमें 187 चालू स्थिति में है. जबकि 17 बिगड़े होने से सुधारने की प्रक्रिया जारी है. मेडिसिन की आईसीयू में 25 बेड है जो कि हमेशा भरे रहते हैं. यहां चौबीस घंटे वेटिंग लगी रहती है. इसके अलावा वार्ड 50 बच्चों का आईसीयू और वार्ड क्रमांक 51 सर्जरी विभाग की आईसीयू है. इसके बाद कोविड और सॉरी की भी ओपीडी है. सभी आईसीयू में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है. साथ ही वेंटिलेटर लगे मरीज की मॉनिटरिंग के लिए मैन पॉवर की भी जरूरत पड़ती है जो कि कम है.

    अन्य जिलों सहित राज्यों के भी पेशेंट 

    भडारा और चंद्रपुर को छोड़ दिया जाये तो विदर्भ के लगभग हर जिले में मेडिकल कॉलेज है. यवतमाल में तो सुपर स्पेशलिटी को भी मंजूरी मिल गई है. इसके अलावा गंभीर होने पर मेडिकल के लिए रेफर किया जाता है. वहीं छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बालाघाट, सिवनी, जबलपुर से भी आने वाले मरीजों की संख्या रहती है. मरीज गंभीर होने के साथ ही नागपुर पहुंचने में लगने वाले वक्त के बीच स्थिति और बिगड़ जाती है और मेडिकल पहुंचते-पहुंचते वह अंतिम क्षणों में आ जाता है. इस तरह के मरीजों की संख्या 50 फीसदी होती हैं. 

    मेडिकल में रेफर और गंभीर अवस्था में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इससे मौजूदा व्यवस्था पर अचानक दबाव बढ़ जाता है. जबकि मैन पॉवर 1,400 बेड के अनुसार ही उपलब्ध है. यही वजह है कि कई बार गंभीर मरीजों को भी तत्काल सुविधा मिलने में देरी हो जाती है. इस स्थिति में सुधार के लिए हर स्तर पर प्रयास जारी है. 

    -डॉ. सुधीर गुप्ता, अधिष्ठाता मेडिकल कॉलेज