सुनील केदार
सुनील केदार

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मुंबई : कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सुनील केदार (Sunil Kedar) को महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया है। उन्हें नागपुर (Nagpur) जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (एनडीसीसीबी) में धन के गबन के लिए एक अदालत द्वारा हाल ही में दोषी ठहराया गया है। राज्य विधानसभा सचिवालय की ओर से शनिवार को एक गजट आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया, ‘केदार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ई) और जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा आठ के प्रावधानों के तहत 22 दिसंबर को उनकी दोषसिद्धि (Conviction) की तारीख से विधायक के रूप में अयोग्य ठहराया जाता है।’

खाली हुआ केदार का निर्वाचन क्षेत्र

आदेश में कहा गया है कि केदार का निर्वाचन क्षेत्र सावनेर (नागपुर जिले में स्थित) उनकी दोषसिद्धि की तारीख से खाली हो गया है। नागपुर की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने शुक्रवार को केदार और पांच अन्य को एनडीसीसीबी में धन के दुरुपयोग के लिए पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। मामला साल 2002 का है।

इन धाराओं के तहत दोषी ठहराया गए केदार

पांच बार विधायक रहे केदार को भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), 471 (जो कोई भी धोखाधड़ी या बेईमानी से किसी भी दस्तावेज को वास्तविक के रूप में इस्तेमाल करता है, जिसे वह जानता है), 120 (बी) (आपराधिक साजिश) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत दोषी ठहराया गया है। छह दोषियों पर 10-10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

क्या था पूरा मामला?

अभियोजन पक्ष के मुताबिक, एनडीसीसीबी को 2002 में सरकारी प्रतिभूतियों में 125 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, क्योंकि होम ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड के जरिए धन का निवेश करते समय नियमों का उल्लंघन किया गया था। केदार तब बैंक के चेयरमैन थे। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पेखले-पुरकर ने अपने फैसले में कहा कि केदार और एक अन्य आरोपी को बैंक की पूरी हिस्सेदारी सौंपी गई थी। अदालत ने कहा कि यह फंड लोगों और बैंक के सदस्यों की मेहनत की कमाई थी, जिनमें से अधिकांश नागपुर के गरीब किसान थे।

अदालत ने अपने आदेश में क्या कहा?

अदालत ने कहा कि सहकारी क्षेत्र का उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से हाशिए वाले वर्गों की स्थिति को बढ़ाना है। अदालत ने कहा कि उस समय अध्यक्ष रहे केदार और तत्कालीन महाप्रबंधक अशोक चौधरी को कानून द्वारा निर्धारित तरीके से धन का निवेश करने का काम सौंपा गया था, लेकिन उन्होंने विश्वासघात किया। न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि इस तरह का आपराधिक विश्वासघात एक गंभीर अपराध है। अदालत ने कहा कि इतनी बड़ी राशि का नुकसान बैंक की वित्तीय स्थिति को गिराने के लिए पर्याप्त है। यह बदले में इकाई के हजारों सदस्यों और कर्मचारियों को प्रभावित करेगा। अदालत के आदेश में कहा गया है कि उच्च पदों पर बैठे लोगों को यह सुनिश्चित करने के लिए अधिक जिम्मेदारियां दी जाती हैं कि किसी भी तरह से किसी सदस्य का एक रुपया भी बर्बाद न हो।

(एजेंसी)