नागपुर. मनपा के आम चुनावों को लेकर अब प्रभाग रचना का प्रारूप जल्द ही उजागर होने से प्रत्येक प्रभागों में संभावित प्रत्याशियों को लेकर तमाम राजनीतिक दल जीत की संभावनाएं तलाशाने में जुट जाएगा. ऐसे में भले ही मनपा का आम चुनाव सिर पर हो, लेकिन राज्य की तर्ज पर महानगरपालिका के चुनाव में भी महाविकास आघाड़ी की तस्वीर देखने के इच्छुक कार्यकर्ताओं में फिलहाल मायूसी छाई है. मनपा चुनाव को लेकर आघाड़ी का भविष्य अधर में है. यहां तक कि न तो इसे लेकर किसी तरह की चर्चा हो रही है और न ही किसी तरह की बैठकों के संकेत ही उजागर हो रहे हैं. इसके विपरीत महाविकास आघाड़ी के घटक दलों में एकला चलो रे का नारा ही बुलंद होते दिखाई दे रहा है.
राजनीतिक जानकारों के अनुसार कांग्रेस और राकां को एकसूत्र में बांधने के लिए पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख की अनुपस्थिति सर्वाधिक खल रही है. हालांकि मनपा चुनावों में कई बार दोनों दल अलग-अलग लड़े हैं लेकिन हर समय चुनावी गठबंधन के प्रयास होते रहे हैं. किंतु इस चुनाव में इस तरह की कोई गतिविधियां नहीं है.
BJP में ‘फील गुड फैक्टर’
राजनीतिक जानकारों के अनुसार मनपा में गत 15 वर्षों से सत्ता भोग रही भाजपा के लिए वर्तमान में कठिन दौर है. केवल केंद्रीय नेता की उपलब्धि के भरोसे कई बार विकास के कामों को गिनाया जाता है. किंतु अब जनता होशियार हो गई है. मतदाता एक ही तरह की रट सुनना नहीं चाहती है चूंकि चुनाव के लिए यह मुद्दा कारगर दिखाई नहीं दे रहा है. अत: विरोधी दल में बिखराव तथा वोटों में बंटवारा बड़ी ताकत हो सकती है. यहीं कारण है कि महाविकास आघाड़ी के घटक दलों में अब तक कोई औपचारिक वार्ता भी नहीं होने से बीजपी में फील गुड फैक्टर माना जा रहा है. राजनीतिक जानकारों के अनुसार शहर विकास से जुड़े कई मुद्दों को लेकर सत्तापक्ष के खिलाफ रोष है. भले ही सत्तापक्ष विकास का डंका पीटे लेकिन मतदाताओं का मानना है कि यह सभी कागजों पर है.
सेना को आदेश का इंतजार
सूत्रों के अनुसार स्थानीय स्तर पर महाविकास आघाड़ी की तरह गठबंधन करने या इस दिशा में आगे बढ़ने को लेकर चर्चाओं का भी अधिकार शिवसेना के स्थानीय नेताओं के पास नहीं है. यहीं कारण है कि सेना की स्थानीय इकाई को मुंबई से आदेश का इंतजार है. माना जा रहा है कि मुंबई से आदेश मिलते ही उस दिशा में चुनाव की रूपरेखा तय की जाएगी. इसके अलावा प्राथमिक स्तर पर प्रत्येक प्रभाग में संभावनाएं भी तलाशी जा रही है. मनपा में राकां का एक पार्षद है. जबकि सेना के 2 पार्षद हैं. राकां पार्षद तो पार्टी के अध्यक्ष भी है. जिससे पार्टी के भीतर उनका निर्णायक वजन है. किंतु सेना के दोनों पार्षदों की संगठन में ही पूछ परख नहीं है. जिससे भाजपा के लिए पूरा विपक्ष बिखरा दिखाई दे रहा है.