Abdul Sattar

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    नागपुर. सुको के फैसले को दरकिनार कर गायरान की 37 एकड़ जमीन अवैध रूप से आवंटित किए जाने के बाद न केवल हाई कोर्ट की ओर से फटकार लगाई गई, बल्कि जमीन आवंटन के लिए विपक्ष की ओर से भी कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार के इस्तीफे की मांग की जाने लगी. विपक्ष की ओर से लगातार इस मसले को लेकर हमलावर है. बुधवार को टीईटी परीक्षा घोटाले को लेकर न्याय नहीं मिलने पर विपक्ष द्वारा सभात्याग किए जाने के बाद कृषि मंत्री सत्तार ने इस संदर्भ में सदन में स्पष्टीकरण दिया.

    उन्होंने कहा कि निजी स्वार्थ के लिए या किसी गैर हेतु से जमीन का आवंटन नहीं किया है. नियमों के अनुसार जमीन दी गई है. इसके बावजूद कोर्ट जो भी सजा देगी, वह मान्य होगी. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार गायरान जमीन वितरण पर पाबंदियां है. यह उचित है लेकिन अपवादात्मक स्थिति में आदिवासी, अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को जमीन वितरण किया जा सकता है. इस तरह से राज्य सरकार द्वारा पहले भी निर्णय लिए जा चुके हैं.

    दस्तावेजों के आधार पर आवंटन

    उन्होंने कहा कि योगेश खंडारे नामक इस व्यक्ति ने वर्ष 1946 से लेकर 1953 तक पिता और दादा के जमाने के दस्तावेज प्रस्तुत किए थे. उनके दादा के समय से ही यह जमीन उनके कब्जे में थी. इसके दस्तावेज भी पेश किए गए. जमीन पर लंबे समय से अधिकार होने के साथ ही बुआई भी करते रहे हैं. जिला न्यायालय में न्याय नहीं मिलने पर मेरे पास अपील दायर की गई थी. दस्तावेजों के सबूतों के आधार पर ही निर्णय लिया गया. 

    भूमिहीन, खेत मजदूरों को दें सकते जमीन

    उन्होंने कहा कि भूमिहीन खेत मजदूर, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपवादात्मक स्थिति में गायरान जमीन का वितरण किया जा सकता है. स्कूल, अस्पताल, सार्वजनिक हितों के निर्माण के लिए इसके पूर्व कई बार राज्य सरकार ने इस तरह के निर्णय लिए हैं. ऐसी जमीनों को अतिक्रमण की कार्रवाई से बाहर किया जा सकता है.

    यही कारण था कि योगेश खंडारे को आदिवासी और अनुसूचित जाति व जनजाति को न्याय देने के उद्देश्य से वितरण किया गया. इस फैसले के कारण सरकार का किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है. यहां तक कि सरकारी दस्तावेजों में भी अब तक नाम दर्ज नहीं किया गया. फिलहाल यह मामला हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में चल रहा है. अत: कोर्ट जो सजा देगा, वह स्वीकार्य होगा.