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  • कोर के साथ बफर एरिया भी पैक

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नागपुर. इस बार न्यू-ईयर के लिए हर कोई जंगलों की दौड़ लगा रहा है. आलम यह है कि जंगल के कोर तो दूर बफर एरिया में भी स्लाट नहीं मिल रहा. पेंच, ताड़ोबा के साथ मध्यप्रदेश के कान्हा और बांधवगढ़ तक में कोर एरिया के लिए 3 जनवरी तक सफारी की बुकिंग फूल हो गई. कई गेट 5 जनवरी तक फूल है. बफर एरिया में भी कुछ ही स्लाट शेष रह गए. बताया जा रहा है कि कोर क्षेत्र के जंगलों में सफारी महीना भर पहले ही फूल हो गई थी. अब एन मौके पर सफारी का प्लान बनाने वालों को बफर में सफर के लिए भी हाथ-पैर मारने पड़ रहे है. जंगल में ज्यादातर लोग बाघ को देखना चाहते है.

इसके अलावा तेंदुआ, जंगली कुत्ता, सियार, बायसन को भी देखने की ललक ज्यादा होती है जो अक्सर कोर एरिया में ही दिखाई देते है. बफर में हिरण, सांभर, नीलगाय जैसे जीव ही ज्यादा दिखाई देते है. शहर में न्यू-ईयर पर हर तरह के आयोजनों की बंदिश के बाद अब लोग सिटी के बाहर घूमने की योजना बना रहे है.

ऐसे में जंगल सफारी से बढ़िया कोई ऑप्शन नहीं हो सकता. क्रिसमस की छुट्टियों के दौरान भी लोगों ने जंगल सफारी का जमकर लुत्फ उठाया. इसका दौर नए वर्ष के पहले 3-4 दिनों तक बना रहेगा. शहर से ताड़ोबा-अंधारी, पेंच, मध्यप्रदेश पेंच, कान्हा और बांधवगढ़ जाने वालों की संख्या काफी ज्यादा है. निकट होने के कारण पेंच और ताड़ोबा फर्स्ट च्वॉइस रहती है. यहां बाघ के दर्शन होने के चांस भी ज्यादा होते है.

फेवरेट गेट में नो एंट्री

ताड़ोबा में मोहर्ली, कोलारा, फुंटवंडा, कोलसा, नवेगाव, पेंच महाराष्ट्र का सिल्लारी, खुर्सापार और पेंच एमपी के टूरिया गेट में बुकिंग हाउसफूल हो गई है. बफर इलाकों में भी इन दिनों बाघों के दर्शन होने से देवाडा, अगरझरी, जुनोना, मदनापुर, अलिझंजा, नवेगांव रामदेगी, चिचखेड़ा व निमदेला में अच्छी बुकिंग मिली है. जिन्हें पेंच, ताड़ोबा में एंट्री नहीं मिल पाई उनके पास अब निकट के बोर, उमरेड करांडला, नवेगांव नागझीरा, टिपेश्वर का ऑप्शन है. इन अभ्यारण्यों के कुछ गेट में अभी भी कुछ स्लाट उपलब्ध है. शहर से बिल्कुल सटे गोरेवाड़ा में भी अच्छी बुकिंग मिल रही है. 29 और 30 दिसंबर की नाइट सफारी अभी से फूल हो गई. 

मिलने लगा रोजगार

लॉकडाउन के बाद जंगल सफारी बंद होने से आस-पास के गांवों के अनेक लोग बेरोजगार हो गए थे. उन्हें अब काम मिलने लगा है. जिप्सी चालक, गाइड के रुप में जंगलों के आसपास स्थित गांवों को लोगों को ही काम मिलता है. चाय-नाश्ते की होटलें भी पर्यटकों के भरोसे चलती है. आस-पास बने रिसार्ट्स में भी बड़ संख्या में गांव के लोग काम करते हैं.