Chikungunya

  • सिटी के विस्तार में तेजी, सुविधाएं धीमी

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नागपुर. जिस रफ्तार से ऑरेंज सिटी का विस्तार हो रहा है, उस गति से लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही है. विस्तार और सुविधाओं के बीच नियोजन का अभाव होने का ही नतीजा है कि लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. वैसे भी प्रशासन के कार्य और जनप्रतिनिधियों के दावों की सही पहचान बारिश के दिनों में ही होती है. आज भी सिटी में कई बस्तियां ऐसी है जहां अच्छी सड़कों का अभाव है. पानी का कनेक्शन तक नहीं मिला है. इस हालत में नागरिक गटर और ड्रेनेज लाइन के बारे में तो लोग सोचते भी नहीं. दर्जनों शिकायतें और निवेदन के बाद भी नागरिकों के हिस्से में अव्यवस्था के सिवाय कुछ भी नहीं है. प्रभाग 2 के अंतर्गत आने वाली बस्तियों में इन दिनों डेंगू और मलेरिया के मरीजों की संख्या बढ़ने की मुख्य वजह जगह-जगह जमा पानी और गंदगी है.

सिटी में नई-नई बस्तियां तो बसाई जा रही है लेकिन सुविधाएं नहीं मिल रही है. लेआउट वाले प्लॉट बेचते हैं लेकिन सुविधाएं मुहैया नहीं कराते. मासिक किस्तों में प्लॉट खरीदकर लोगों ने मकान तो बनाया. अब बारिश के दिनों में होने वाली दिक्कतों ने परेशान कर दिया है. प्रभाग2 के अंतर्गत कडू लेआउट, नागराजनगर, सत्यशीला नगर, गायकवाड लेआउट, म्हाडा कॉलोनी, नारी, बाबादीपसिंह नगर, समता नगर आदि बस्तियों का समावेश है. पिछड़ा इलाका होने से जनप्रतिनिधि भी ध्यान नहीं देते. चुनावों के वक्त रैलियां जरूर निकलती हैं. 

सड़कों की हालत खराब 

हरीश सातपुते ने बताया कि प्रभाग की अनेक बस्तियों में सड़कों की हालत खस्ता है. कई जगह तो डामरीकरण तक नहीं है. गिट्टीकरण किया गया था लेकिन बारिश में गिट्टी बहने से अब गड्ढे हो गये हैं. लोगों का आवागमन दुभर हो गया है. कई जगह स्ट्रीट लाइट भी नहीं है. यही वजह है कि बारिश के दिनों में सांप-बिच्छुओं का डर बना रहता है. परिसर में पानी जमा होने से बच्चों का घर से बाहर खेलना तक मुश्किल हो गया है. 

गटर लाइन अब तक नहीं 

सागर सवालाखे ने बताया कि प्रभाग में कई बस्तियों में अब तक गटर लाइन नहीं आई है. दरअसल, अविकसित लेआउट होने से प्रशासन द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. एनआईटी से डिमांड आने की है. नल कनेक्शन भी नहीं है. कुओं के पानी से काम चलाना पड़ता है. हालांकि टैंकरों से जलापूर्ति की जाती है लेकिन बारिश के दिनों टैंकर भी नियमित रूप से नहीं आते. 

सुअर, कुत्तों का आतंक 

दिलीप उमाठे ने बताया कि प्रभाग में खुले प्लॉट होने से सुअर और आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ गया है. इससे गंदगी भी फैल रही है. अब भी कई बस्तियों में डेंगू और मलेरिया के मरीज है. स्वास्थ्य सेवा के नाम पर कुछ भी नहीं है. इन बस्तियों को बसे 10 से अधिक वर्ष होने के बाद भी अनाथ की छोड़ दिया गया है. न ही विकास की कोई योजना बनाई जाती है और न ही इस ओर गंभीरता बरती जाती है.

वोट का अधिकार, फिर सुविधाएं क्यों नहीं

मनोज बागड़े ने बताया कि महानगर पालिका और एनआईटी का ध्यान केवल सिटी के भीतर है. जबकि अंतिम छोर पर बसी बस्तियों के बारे में ध्यान नहीं दिया जाता. महानगर पालिका का हिस्सा होने के बाद भी सुविधाएं नहीं मिलना खेद का विषय है. जब नागरिक चुनाव में वोट करने का अधिकार रखते हैं तो फिर उन्हें साधन-सुविधाएं भी मिलना चाहिए. सिटी की कुल जनसंख्या में पिछड़ी बस्तियों के लोगों का भी तो समावेश है.