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    नागपुर. आश्वासित करिअर प्रगति योजना के अनुसार लाभ नहीं मिलने का हवाला देते हुए मनपा के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत श्यामबिहारी मिश्रा की ओर से हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई. इस पर दोनों ओर से दी गई लंबी दलीलों के बाद न्यायाधीश अतुल चांदुरकर और न्यायाधीश उर्मिला जोशी ने याचिकाकर्ता को परिणामी लाभ का हकदार नहीं होने का हवाला देते हुए मनपा द्वारा निर्धारित सेवाकाल पर मुहर लगा दी. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. एम.डी. रामटेके और मनपा की ओर से अधि. एस.एन. भट्टड ने पैरवी की. मनपा के स्वास्थ्य विभाग की ओर से 15 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता को पत्र भेजा गया. जिसमें 12 वर्ष की सेवा पूरी किए जाने के कारण याचिकाकर्ता पहली आश्वासित करिअर प्रगति योजना का लाभार्थी होने की जानकारी दी गई. इस पत्राचार को चुनौती देते हुए ही याचिका दायर की गई.

    1985 में दैनिक भुगतान पर शुरू हुई सेवा

    अदालत ने फैसले में कहा कि 12 फरवरी 1985 को दैनिक भुगतान की तर्ज पर याचिकाकर्ता को कंपाउंडर के पद पर नियुक्त किया गया. उसकी सेवाओं को नियमित नहीं किए जाने के कारण याचिकाकर्ता ने औद्योगिक न्यायालय में दावा पेश किया था. औद्योगिक न्यायालय ने उसे नियमितीकरण पर मुहर लगा दी थी. जिसे चुनौती देते हुए मनपा ने वर्ष 2003 में रिट याचिका दायर की. इस रिट याचिका को स्वीकृत करते हुए हाई कोर्ट ने कुछ आदेश दिए थे. जिसमें सामान्य वरीयता सूची के अनुसार याचिकाकर्ता की 240 दिनों की सेवाओं का काल निश्चित करने को कहा था. इसी तारीख के बाद सेपेंशन और ग्रेच्युटी निर्धारित करने के आदेश दिए थे. यहां तक कि इसी आदेश में याचिकाकर्ता परिणाली लाभ का हकदार नहीं होने का स्पष्ट उल्लेख किया था. इन आदेशों का पालन नहीं होने का हवाला देकर याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दायर की थी. 2 फरवरी 2012 को अदालत ने अवमानना याचिका खारिज कर दी.

    मनपा ने किया गलत निर्धारण

    याचिकाकर्ता का मानना था कि उसे 29 अप्रैल 1991 से सेवाओं में दिखाया गया. जिसके अनुसार 12 वर्ष की सेवाओं के लिए दूसरे आश्वासित करिअर प्रगति योजना के लाभ का हकदार है. लेकिन उसकी सेवाएं निर्धारित करने के लिए तय की गई तारीख का मनपा ने गलत निर्धारण किया. मनपा की ओर से इस दलील का विरोध करते हुए कहा गया कि 2003 के हाई कोर्ट के आदेश में स्पष्ट रूप से वरीयता सूची में नाम शामिल होने के बाद परिणामी लाभ का हकदार नहीं होने का उल्लेख है. अत: इसी आधार पर निर्णय लिया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किया.