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    नागपुर. नियमों के विपरीत तालाब की नीलामी किए जाने का हवाला देते हुए अधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर वरड ग्राम पंचायत के सरपंच और उपसरपंच को अयोग्य घोषित कर नए सदस्यों के लिए चुनाव घोषित किया गया. प्रशासन की ओर से नियमों के विपरीत कार्रवाई किए जाने का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई.

    याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल पानसरे ने जैसे थे के आदेश जारी किए. जिससे घोषित ग्राम पंचायत सदस्यों के चुनाव भी नहीं हो सकेंगे. याचिकाकर्ता उपसरपंच की ओर से अधि. महेश धात्रक ने पैरवी की. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधि. धात्रक ने कहा कि वरड ग्राम पंचायत में अनुसूचित जनजाति की संख्या अधिक होने के कारण ग्राम पंचायत में 1996 का पेसा एक्ट लागू होता है.

    तालाब पर ग्राम पंचायत का अधिकार

    याचिकाकर्ता के अनुसार केंद्र सरकार की ओर से पेसा एक्ट तैयार किया गया है. कानून के अनुसार इस ग्राम पंचायत के अंतर्गत आनेवाली सरकारी जमीन और तालाब पर ग्राम पंचायत का नियंत्रण होता है. अधिकारों के तहत ही तालाब के नीलामी का निर्णय लिया गया. किंतु सरपंच और उपसरपंच द्वारा सचिव के साथ सांठगांठ कर ग्रामपंचायत की मासिक सभा में प्रस्ताव लेकर नीलामी करने का आरोप लगाया गया. शिकायत के अनुसार जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने जांच कर विभागीय आयुक्त को रिपोर्ट सौंपी. जिसमें उपसरपंच पर कार्रवाई करने की सिफारिश की गई. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि कार्रवाई के पूर्व सरपंच को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया, किंतु उपसरपंच को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया. 

    अपील पर 3 माह में निर्णय करें सरकार

    अधि. धात्रक ने कहा कि विभागीय आयुक्त के आदेशों पर सरपंच और उपसरपंच को पद से निरस्त कर दिया गया. जिसके खिलाफ 29 सितंबर को राज्य सरकार के पास अपील दायर की गई थी. अपील में विभागीय आयुक्त के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध राज्य सरकार से किया गया था. किंतु राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया. जबकि तहसीलदार की ओर से अब ग्राम पंचायत में सदस्य पद के लिए चुनाव घोषित कर दिया गया. अधि. धात्रक ने कहा कि पेसा एक्ट के अनुसार तालाब की नीलामी करने का अधिकार ग्राम सभा नहीं बल्कि ग्राम पंचायत को है. जिससे सरपंच और उपसरपंच को पद से निरस्त नहीं किया जा सकता है. सुनवाई के बाद अदालत ने जहां जैसे थे के आदेश दिए, वहीं राज्य मंत्री को 3 माह के भीतर अपील पर निर्णय लेने के आदेश भी दिए.