North India Trains in Diwali, Nagpur Station

Loading

नागपुर. दिवाली और छठ के समय रेलवे चाहे जितनी स्पेशल ट्रेनें चला ले, यात्रियों को अपनी जान पर खेलकर ही सफर करना पड़ता है. शनिवार को सूरत स्टेशन पर मची भगदड़ इसी की बानगी है. हालांकि जान पर खेलकर सफर करने का प्रत्यक्ष उदाहरण नागपुर स्टेशन पर भी दिखा. ट्रेन 12522 एर्नाकुलम-बरौनी राप्तीसागर एक्सप्रेस के जनरल और स्लीपर क्लास की कोच में पैर रखने तक की जगह नहीं थी. हाल ये रहे कि लंबे सफर के बावजूद कई यात्री कोच के दरवाजे पर लटककर सफर करते दिखे. ऐसा ही हाल संघमित्रा एक्सप्रेस समेत प्रयागराज, पटना, दानापुर जैसे स्टेशनों के लिए चलने वाली ट्रेनों में भी रहा.

मानवीय यातनायें भुगतते हैं यात्री

ज्ञात हो कि जहां दिवाली साल का अंतिम और सबसे बड़ा त्योहार है. वहीं बिहार में छठ पूजन को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. देश के किसी भी कोने में रहने वाला बिहारी नागरिक छठ पूजन के लिए हर हाल में अपने पैतृक घर जरूर जाता है. दोहरे त्योहार के चलते उत्तर भारत की ट्रेनों में क्षमता और संभावना से कहीं अधिक यात्री सफर करने पर मजबूर हो जाते हैं. इस लंबे सफर में उन्हें कई मानवीय यातनाओं से गुजरना पड़ता है. हाल ये रहते हैं कि 6 सीटों के कम्पार्टमेंट में 40 से भी ज्यादा यात्री होते हैं. इनमें महिलायें और बच्चे तक पिसते रहते हैं. यहां तक कि सांस भी लेना दूभर हो जाता है. उन्हें न तो पानी पीना संभव हो पाता है, न ठीक से खाना. हाल इतने बुरे होते हैं कि महिलाओं को शौच के लिए जाने तक को नहीं मिलता क्योंकि पूरा पैसेज यात्री और सामान से भरा होता है. जैसे-तैसे टॉयलेट तक पहुंचे भी तो यहां भी यात्रियों का जत्था कब्जा जमाये बैठा रहता है. 

हर साल यही हाल

हैरानी की बात है कि नई ट्रेनों की मांग से लेकर स्टापेज में कटौती तक के लिए भारी भरकम रिव्यू करने वाला रेलवे आज तक दिवाली और छठ के लिए ट्रेनों की संख्या का रिव्यू नहीं कर सका. स्पेशल ट्रेनें चलाये जाने के बाद भी यात्रियों को नर्क जैसी स्थिति में सफर करना पड़ता है, स्टेशनों भगदड़ में मरना पड़ता है. ऐसा एक या 2 बार नहीं होता बल्कि हर साल ही दिवाली और छठ समेत सभी महत्वपूर्ण त्योहारों पर यही हाल दिखता है. टिकटों की भारी बिक्री और बेटिकट नाम पर पेनल्टी के नाम पर रिकॉर्ड वसूली के बावजूद रेलवे अंदाजा नहीं लगा पाता है कि अपने भारतीय यात्रियों के लिए इस त्योहारी सीजन में कितनी स्पेशल ट्रेनों की जरूरत पड़ेगी.

कहां गया मिशन ‘जीवन रक्षा’

जानकारी के अनुसार, सूरत में हुए हादसे में एक बात सामने आई कि पिछले 2 दिनों से यहां इतनी ही भीड़ थी. बावजूद इसके हादसा टाला नहीं जा सका. ऐेसे में रेलवे सुरक्षा बल के मिशन ‘जीवन रक्षा’ पर सवाल उठना लाजिमी है. शनिवार को भी प्लेटफॉर्म 1 से रवाना हो रही राप्तीसागर एक्सप्रेस के जनरल कोच का गेट तक पर यात्री लटके हुए थे लेकिन आरपीएफ का कोई जवान यहां मौजूद नहीं था. ऐसे में यदि कोई यात्री गिरकर ट्रेन के पहियों में समा जाये तो सारा दोष उस यात्री पर ही मढ़ दिया जायेगा क्योंकि मिशन जीवन रक्षा शायद कम भीड़भाड वाले माहौल में लागू किया जाता है.