Dindori Lok Sabha Seat
भारती पवार, डिंडोरी लोकसभा सीट(डिजाइन फोटो)

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नवभारत डेस्क : महाराष्ट्र (Maharashtra) का नासिक (Nashik) जिला क्षेत्रफल के हिसाब से काफी बड़ा जिला है। इसमें 15 विधानसभाएं और 3 लोकसभा क्षेत्र आते हैं। जिले में नासिक, धुले और डिंडोरी (Dindori) लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं। धुले लोकसभा में नासिक जिले की 3 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जबकि नासिक लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभाएं शामिल हैं। वहीं, डिंडोरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में नासिक जिले की 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। 

डिंडोरी लोकसभा क्षेत्र का गठन वर्ष 2008 में किया गया था। डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्र इसके पहले मालेगांव लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा था। नए परिसीमन में जब मालेगांव लोकसभा सीट खत्म हुयी तो नयी लोकसभा सीट के रूप में डिंडोरी का निर्माण हुआ। इस लोकसभा में मुख्य रूप से नंदगांव, चंदवाड, कलवन, निफाड, येवला और डिंडोरी विधानसभा क्षेत्र आते हैं।

मालेगांव लोकसभा का इतिहास

जानकारी के हिसाब से मालेगांव लोकसभा 1957 में अस्तित्व में आयी। इसके बाद 1957 में प्रजा समाज पार्टी के यादव जाधव निर्वाचित हुए। इसके बाद इस सीट पर 1962 से 1971 तक लगातार तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा। फिर 1977 में जनता पार्टी के हरि महाले यहां से जीते। इसके बाद अधिकांश चुनावों में यहां कांग्रेस का बोलबाला रहा। कांग्रेस के जाम्बरू काहंडोले मालेगांव निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस से 5 बार सांसद चुने गए। कांग्रेस को 1967, 1971, 1980, 1991, 1998 के लोकसभा चुनावों में जीत दिलायी। इस तरह से देखा जाए तो मालेगांव सीट 7 बार कांग्रेस का कब्जा रहा। 1984 इस सीट को कांग्रेस के सीताराम सायाजी भोये ने जीती थी। हरिबाहु शंकर महाले ने 1989 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतने में सफलता पायी और 1977 के बाद दोबारा सांसद बने। लेकिन 1991 के चुनाव में जाम्बरू काहंडोले ने फिर से जीत हासिल की। 

डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्र से पहले, इस निर्वाचन क्षेत्र का एक हिस्सा मालेगांव लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में था। चौदहवीं लोकसभा तक मालेगांव लोकसभा क्षेत्र में मौजूद था। 1980 में फिर जाम्बरू काहंडोले मालेगांव को कांग्रेस की झोली में ले आए। 

1996 में इस सीट से पहली बार भाजपा के सांसद के रूप में कचरू भाऊ राउत चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन 1998 में जाम्बरू काहंडोले फिर जीत गए। इसके बाद 1999 में जनता दल सेक्युलर के कंडीडेट के रूप में हरिबाहु शंकर महाले तीसरी बार सांसद बनने में सफल रहे। इसके अलावा 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हरिश्चंद्र देवराम चव्हाण ने बाजी पलट दी और भाजपा को जीत दिलायी।

Dindori Lok Sabha Seat
भारती पवार, डिंडोरी लोकसभा सीट(डिजाइन फोटो)

नाम बदला तो इतिहास बदला

इसके बाद साल 2009 में मालेगांव सीट का नाम डिंडोरी हुआ तो यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। तब से लेकर पिछले 3 चुनावों में भाजपा ने इसे अपने कब्जे में रखा है। यानी जब से डिंडौरी संसदीय क्षेत्र बना है तब से इस क्षेत्र में बीजेपी का दबदबा रहा है। बीजेपी अब इसे अपना गढ़ बना चुकी है। 

मालेगांव लोकसभा क्षेत्र से 2004 का लोकसभा चुनाव बीजेपी उम्मीदवार हरिश्चंद्र देवराम चव्हाण ने जीता था। उसके बाद डिंडौरी संसदीय क्षेत्र के गठन के बाद भी हरिश्चंद्र चव्हाण लगातार दो बार बीजेपी के सांसद निर्वाचित हुए हैं। यानी इस सीट से बीजेपी के हरिश्चंद्र चव्हाण ने जीत की हैट्रिक लगाई। वह 2004 से 2014 तक लगातार सांसद रहे। 

भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में यहां अपना उम्मीदवार बदल दिया और एनसीपी से भाजपा में आयीं डॉ. भारती पवार को उम्मीदवार बनाया। वह भी भाजपा के टिकट पर निर्वाचित हो गयीं। इतना ही नहीं, उन्हें 2021 में नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी दे दी।

डिंडोरी सीट गठन के बाद से ही बीजेपी के कब्जे में रही है, इसलिए इसे बीजेपी का गढ़ भी कहा जाता है। लेकिन यहां एनसीपी और अन्य पार्टियों की ताकत को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा। डॉ. भारती पवार ने 2019 में भारी अंतर से जीत हासिल की। इसीलिए भले ही यहां लगातार तीन बार से भाजपा का सांसद जीतकर आ रहा है, लेकिन पिछले चार सालों में बहुत कुछ बदल गया है। मुख्य रूप से राजनीतिक समीकरण काफी हद तक बदल गये हैं, जिससे इलाके में एनसीपी का ग्राफ बढ़ा है।

विधानसभा क्षेत्रों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां एनसीपी का दबदबा है। डिंडोरी, कलवन, निफाड और येवला में एनसीपी के ही विधायक चुनाव जीतकर आए हैं। एनसीपी में फूट के बाद ये चारों विधायक अजित पवार के गुट में हैं, जिससे भाजपा अबकी बार भी अपने आपको सेफ मान सकती है, लेकिन अगर एनसीपी के वोटरों ने बागियों को सबक सिखाने की सोची तो इसका नुकसान भाजपा को भी होगा।

शरद पवार गुट की नयी रणनीति

इसके चलते शरद पवार गुट इस संसदीय क्षेत्र में नई रणनीति बना रहा है। पिछली बार सीपीएम तीसरे नंबर पर आयी थी। उसके कंडीडेट शिवा पांडु गावित को 1 लाख से अधिक वोट मिले थे। इसलिए, अगर शरद पवार समूह, उद्धव ठाकरे समूह और सीपीआई (एम) विपक्ष में एकजुट होते हैं, तो वे भी इस निर्वाचन क्षेत्र में चुनौती पेश कर सकते हैं।

बदले राजनीतिक समीकरणों के कारण सभी दलों की चार साल की तैयारी फिलहाल बहुत काम आने की संभावना नहीं है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि किसानों के लिए अपना रुख अपनाने से शरद पवार को समर्थन मिलेगा। इसलिए, इस निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन एक महत्वपूर्ण मुद्दा हो सकता है। लेकिन इन सबके पहले गठबंधन और गठजोड़ की स्थिति और उनके बीच चल रही रस्साकशी को देखते हुए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह सीट किस गुट या पार्टी के खाते में जाएगी।

Dr. Bharti Pawar
भारती पवार (फाइल फोटो)

प्याज का मुद्दा अहम

इस बार के लोकसभा चुनाव में डिंडोरी सीट को देखते हुए किसान और उनके मुद्दे अहम मुद्दा हो सकते हैं। वहीं, इस निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासी सदस्यों की संख्या भी अच्छी खासी है। कुछ बुनियादी ढांचे के मुद्दों के साथ-साथ स्वास्थ्य का मुद्दा भी यहां चुनाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहने वाला है।

लेकिन सबका मुख्य मुद्दा प्याज हो सकता है। यह भी देखा गया है कि प्याज को लेकर सरकार के रुख को लेकर किसान अक्सर आक्रामक हो गये हैं। प्याज निर्यात प्रतिबंध और प्याज की कीमतों का असर चुनाव में दिख सकता है।

जीवा पांडु गावित को रोल अहम

इस चुनाव में सीपीएम के पूर्व विधायक जीवा पांडु गावित की भूमिका भी अहम हो सकती है। गावित में छह बार के विधायक, उन्हें आम आदिवासी मतदाताओं का अच्छा समर्थन प्राप्त है। तो ये भी एक अहम फैक्टर हो सकता है।

इस डिंडोरी निर्वाचन क्षेत्र में, जहां एनसीपी का दबदबा है, लेकिन दोनों तरफ से बीजेपी का कब्जा है, 2024 के चुनाव में क्या होगा, इस पर सबकी नजर होगी।