onion farmer
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    येवला : प्याज उत्पादकों के आंसू रोके नहीं रुक रहे हैं। पिछले वर्ष प्याज उत्पादकों को जिस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा था, कुछ वैसी ही स्थिति इस वर्ष भी देखने को मिल रही है। किसानों ने कई समस्याओं के बीच उत्पादित ग्रीष्मकालीन प्याज को सस्ते दाम पर मजबूर होना पड़ रहा है। उत्पादन शुल्क भी न निकल पाने से किसानों की आंखों से आंसू झलक रहे हैं। नकदी फसल के रूप में पहचानी जाने वाले टमाटर की फसल को भी किसानों को बहुत ही सस्ते दाम पर बेचना पड़ा था। उत्पादन शुल्क भी न मिल पाने से परेशान बहुत से किसानों ने खेती की जगह मजदूरी करने का मन बना लिया है। राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए प्याज-टमाटर उत्पादक किसानों ने कृषि क्षेत्र को ही पूरी तरह से छोड़ने का मन बना लिया है। 

    हजारों रुपए की दवा का छिड़काव करके और व्यापक देखरेख के बाद जब फसल तैयार होती है तो उसे बाजार में भाव नहीं मिलता तो किसानों को बहुत टीस होती है। भारी वर्षा के कारण बर्बाद हुई टमाटर की फसल से हुए नुकसान की भरपाई प्याज के रिकार्ड उत्पादन से किए जाने की आस किसानों के मन में जगी थी, लेकिन जब प्याज को भी भाव नहीं मिला तो किसान और ज्यादा मायूस हो गए। ज्ञात हो कि जितने भी टमाटर की फसल शेष बची थी उसको भी अच्छा भाव नहीं मिल रहा, इतना ही नहीं जो धनराशि किसानों को मिली थी, उनमें से 10 प्रतिशत धनराशि मजदूरों को देनी पड़ती है, इसके अलावा 10% बाड़ लगाने और कुछ धनराशि हमाली पर खर्च हो जाती है। शेष राशि में से कुछ उर्वरक, दवा, बीज और कुछ बैंक के कर्ज में चली जाती है, ऐसे में किसानों के पास कुछ भी शेष नहीं बचता। एक तरफ किसानों की प्याज की कोई कीमत नहीं मिल रही है और दूसरी तरफ उसे प्राकृतिक आपदा का भी शिकार होना पड़ रहा है, ऐसे में किसान दोहरी मार झेल रहे है। 

    भाव न मिलने से बढ़ी चिंता

    किसान इसलिए चिंतित हैं, क्योंकि किसानों को उनकी फसल का उनको कोई भाव नहीं मिल रहा है। येवला तहसील में विसापुर, आडगांव, रेपल, कंडी, गुजरखेड़े, तंदुलवाड़ी के किसान बहुत परेशानी में हैं। पिछले वर्ष मक्का की फसल को अच्छा भाव नहीं मिला था, इसलिए मक्का की फसल नुकसान वाली ही साबित हुई थी। इस वर्ष टमाटर की फसल का इंतजार कर रहे थे। इस फसल के लिए एक बड़ी राशि स्थानांतरित हो गई है। किसान निराशा व्यक्त कर रहे हैं कि अगर स्थिति बनी रही तो आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता है। -(अरुण ठोंबरे, प्रगतिशील किसान)।