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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे

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नागपुर. पिछले वर्ष दावोस में निवेश समझौते हुए थे। राज्य में 2.5 लाख करोड़ तो विदर्भ के लिए 60,000 करोड़ के प्रोजेक्ट की घोषणा की गई थी। 60,000 करोड़ विदर्भ में आने की बात सुनकर सभी के चेहरे खिल गए थे परंतु अब इस बात को एक वर्ष बीत गए हैं, जबकि एक भी कंपनी को जमीन तक मिलने की खबर नहीं आई है। यानी अब तक ये प्रस्ताव ‘फाइलों’ में कैद है। ये बड़े-बड़े प्रोजेक्ट कब फाइल से बाहर निकलेंगे इसका इंतजार सभी कर रहे हैं।

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे फिर एक बार दावोस दौरे पर हैं। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस बार 3.5 लाख करोड़ से अधिक का करार हो सकता है। यह राज्य की समृद्धि, विकास के लिए यह काफी उपयोगी होगा। निश्चित ही निवेश आने से राज्य संपन्न होता है और युवाओं के हाथों में नौकरी आती है। लेकिन पिछले अनुभव और वो भी खासकर विदर्भ के बारे में देखें तो अच्छे नहीं दिखाई दे रहे हैं। वाहवाही लूटने के लिए भले ही करार और घोषणाएं हो जाती हैं लेकिन आंकड़ों की वास्तविकता कुछ और कहानी कहती है।

न्यू ईरा टेक्नोलॉजी का 20,000 करोड़ का निवेश

पिछले वर्ष की बात करें तो प्रमुख करारों में भद्रावती में न्यू ईरा टेक्नोलॉजी का 20,000 करोड़ का कोल गेसिफ़िकेशन करार काफी प्रमुख था। बात में पता चला कि कंपनी के पास कार्यशील पूंजी ही नहीं है। 20,000 करोड़ रुपये का निवेश करने के लिए कंपनी सक्षम ही नहीं थी लेकिन दावोस में काफी वाहवाही लूटी गई। भद्रावती जैसे क्षेत्र के लिए काफी बड़ा निवेश था। करार के बाद कंपनी का अब तक कोई अतापता नहीं है।

गड़चिरोली में भी 20,000 करोड़ का करार

गड़चिरोली जैसे पिछड़े क्षेत्र के उत्थान के लिए भी बड़े-बड़े करार किए गए थे। इनमें 5,000 करोड़ का वरद फेरो एलॉयज़ का स्टील प्रकल्प चंद्रपुर में घोषित किया गया। इसी तरह से 500 करोड़ का राजौरी स्टील प्रकल्प भी शामिल था। गड़चिरोली में लगने वाले 20,000 करोड़ के स्टील प्लांट का भी अभी तक ज़मीन संपादन का काम पूरा नहीं हुआ है। कंपनी को जमीन ही नहीं मिली तो उत्पादन और रोजगार की बात करना ही बेमानी है। गड़चिरोली अब भी उसी तरह निवेश के लिए तरस रहा है जैसा की पहले। कंपनी माइनिंग कर रही है और मैंग्नीज दूसरे स्थान भेज रही है।

18,000 करोड़ का रिन्यू पावर से करार

दावोस के बाद मुंबई में सरकार ने नागपुर में 18,000 करोड़ निवेश की घोषणा की। जून 2023 में करार को अंतिम रूप दिया गया। इसके बाद से कंपनी के प्रतिनिधि एक-दो बार नागपुर के दौरे पर आए लेकिन ठोस कुछ भी नहीं हुआ। निवेश का कोई अतापता नहीं चल रहा है। निवेश से जहां माहौल अनुकूल बनता वहीं रोजगार के नये अवसर भी सृजित होते। निवेश की खबर पाकर युवाओं की आशा की किरण जागी थी लेकिन 6 माह हो गए हैं कंपनी जमीन से ‘गायब’ है। जानकारी के अनुसार कंपनी को अतिरिक्त बूटीबोरी में जगह दिखाई गई थी लेकिन बिजली दर को लेकर बात आगे नहीं बढ़ी और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। 

76 फीसदी करार कार्यान्वित होने का दावा

सलाहकार प्रदीप माहेश्वरी कहते हैं कि दावोस जाने के पहले मुख्यमंत्री ने दावा किया कि पिछले वर्ष हुए करार के 76 फीसदी प्रस्ताव कार्यान्वित हो चुके हैं। मुख्यमंत्री की इस घोषणा से सभी आश्चर्य में हैं क्योंकि विदर्भ का एक भी प्रोजेक्ट अब तक जमीन पर नहीं आया है। करार की ‘मुद्रा’ में ही हैं। कई कंपनियां तो हलचल ही नहीं कर रही हैं। ऐेसे में विदर्भ के लोग खुश हो तो कैसे। सरकार सारे प्रकल्पों को तेज़ी से कार्यान्वित करे और विदर्भ के सारे प्रोजेक्ट्स को कागजों से बाहर निकालकर वास्तविकता में बदलने की दिशा में गंभीरता से विचार करे।

पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स भी लटका

इसी तरह काफ़ी लंबे प्रयासों के बाद पेट्रोकेमिकल की फिजिबिलिटी की जवाबदारी एमआईडीसी और इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड को दी गई। रिपोर्ट सौंप दी गयी, इसके बाद मामला पुन: ठंडे बस्ते में चला गया है। प्रोजेक्ट कहां है और कौन निवेश करेगा इसकी जानकारी विदर्भवासियों को अब तक नहीं मिल पाई है।