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    पिंपरी: कोरोना महामारी, ओबीसी समुदाय के राजनीतिक आरक्षण और राज्य की राजनीति ने स्थानीय निकायों के चुनाव को प्रभावित किया है। तत्कालीन महाविकास अघाड़ी सरकार (Mahavikas Aghadi Government) द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार तीन सदस्यीय प्रणाली के अनुसार वार्डों का विभाजन, आरक्षण का ड्रा सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गई। मगर नई सरकार (New Government) ने जनसंख्या और वार्डों के विभाजन के अनुसार नगरसेवकों की बढ़ी हुई संख्या को रद्द कर दिया। अब नए से चार सदस्यीय प्रणाली से चुनावी प्रक्रिया (Electoral Process) शुरू करनी होगी। 

    पिंपरी-चिंचवड महानगरपालिका का चुनाव कब होगा, यह कोई निश्चित तौर पर नहीं कह सकता। चुनाव को लेकर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। इस बीच चुनाव रद्द होने से पिंपरी-चिंचवड़ महानगरपालिका के कर्मचारियों की मेहनत और 30 लाख रुपए का खर्च व्यर्थ हो गया है। साथ ही साल भर से लोगों तक पहुंच बनाने में लाखों रुपए खर्च करने वाले आकांक्षियों की तैयारी और मेहनत पर भी पानी फिर गया है। राजनीतिक घमासान से महानगरपालिका चुनाव को लेकर कार्यकर्ताओं और नागरिकों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।

    1986 में महानगरपालिका के पहले आम चुनाव हुए

    अक्टूबर 1982 में, पिंपरी-चिंचवड नगरपालिका को महानगरपालिका में बदल दिया गया था। हरनाम सिंह ने 1982 से 1986 तक चार साल तक प्रशासक के रूप में काम किया। 1986 में महानगरपालिका के पहले आम चुनाव हुए। इसके बाद हर पांच साल में नियमित रूप से चुनाव होते रहे।अब तक छह चुनाव हो चुके हैं। इस साल सातवां चुनाव है। हालांकि इस बार कोरोना महामारी और ओबीसी समुदाय के राजनीतिक आरक्षण को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही। इसलिए अभी तक चुनाव नहीं हो पाया है। 

     13 मार्च 2022 को ही खत्म हो गया नगरसेवकों का कार्यकाल 

    नगरसेवकों का कार्यकाल 13 मार्च 2022 को समाप्त होते ही महानगरपालिका की स्थापना के बाद दूसरी बार प्रशासनिक शासन शुरू हुआ। मौजूदा आयुक्त राजेश पाटिल पिछले 6 महीने से पूरे शहर के प्रशासक हैं। महानगरपालिका चुनाव की तैयारी एक साल से चल रही है। तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार ने पहले बहुसदस्यीय वार्ड प्रणाली के बजाय एकल वार्ड प्रणाली लागू किया था। 25 अगस्त 2021 को महानगरपालिका को एकल सदस्यीय आधार पर वार्ड बनाने का आदेश दिया गया था। इसी के तहत प्रक्रिया शुरू हुई। उसके बाद 30 सितंबर 2021 को तीन सदस्यीय पैनल पद्धति से नगर निगम चुनाव कराने का निर्णय लिया गया। इसलिए पूरी प्रक्रिया दोबारा करनी पड़ी।  

    नगरसेवकों की संख्या में किया गया इजाफा

    27 अक्टूबर 2021 को तेजी से बढ़ती जनसंख्या और शहरी विकास योजनाओं को गति देने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए महानगरपालिका में नगरसेवकों की संख्या में 11 की वृद्धि की गई। राज्य चुनाव आयोग ने तीन सदस्यीय पैनल के अनुसार चुनाव प्रक्रिया पूरी करने के आदेश दिए। इसके अनुसार ड्राफ्ट वार्ड संरचना, अंतिम वार्ड संरचना, मतदाता सूची और आरक्षण की भी घोषणा की गई। 

    नई सरकार ने जारी किया नया आदेश

    जैसे ही ओबीसी आरक्षण का मुद्दा समाप्त हुआ और ओबीसी आरक्षण लागू हुआ, किसी भी समय चुनाव की घोषणा की संभावना थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दो सप्ताह में चुनाव की घोषणा करने का भी निर्देश दिया था। इसलिए तय माना गया कि महानगरपालिका चुनाव सितंबर या अक्टूबर में होंगे। इस बीच, नई राज्य सरकार ने बुधवार को 11 के नगरसेवकों की संख्या और तीन सदस्यीय वार्ड संरचना को रद्द कर दिया। अब महानगरपालिका के चुनाव चार सदस्यीय प्रणाली में होगा। यानी अब सारी प्रक्रिया फिर से शुरू करनी होगी। इससे उम्मीदवारों, राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं के लिए चिंता बढ़ गई है, उनका एक साल का खर्च, व्यर्थ हो गया।  

    लंबे समय तक प्रशासनिक शासन की संभावना बनी हुई 

    कुल मिलाकर राज्य की मौजूदा राजनीति ने महानगरपालिका चुनाव को प्रभावित किया है। इससे वातावरण अस्थिर हो गया है। महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान यह आरोप लगाया गया था कि वार्डों को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)की सहूलियत के अनुसार डिजाइन किया गया था। चूंकि तीन सदस्यीय व्यवस्था एनसीपी के लिए सुविधाजनक थी, इसलिए कई नगरसेवक एनसीपी की राह पर थे। बीजेपी के पदाधिकारियों ने वार्ड गठन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसके बाद राज्य में समीकरण बदल गए हैं। अब वार्ड की संरचना भी बदलेगी। इससे बीजेपी का पलड़ा एक बार फिर भारी हो गया है। अब जब वार्ड चार सदस्यों का हो गया है। तब महाविकास आघाड़ी के लोगों के दोबारा अदालत में जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए चुनाव को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और लंबे समय तक प्रशासनिक शासन की संभावना बनी हुई है। 

     कर्मचारियों के श्रम और व्यय की बर्बादी हो गई

    बहरहाल महानगरपालिका के अधिकारी और कर्मचारी पिछले एक साल से चुनाव की तैयारी कर रहे थे। वार्ड परिसीमन, आपत्ति, सुनवाई, मतदाता सूचियों के लिए स्थल निरीक्षण, पुनरीक्षण का कार्य पूरा कर लिया गया है। महानगरपालिका कर्मचारियों ने दिन-रात काम किया। मतदाता सूची को अंतिम रूप दिया। इसके लिए करीब 800 कर्मचारियों ने श्रम लगाया। एक साल में चुनाव प्रक्रिया पर 30 लाख रुपए खर्च किए गए। चुनाव के लिए 10 करोड़ का प्रावधान किया गया है जिसमें से 27 लाख रुपए मतदाता सूची के मुद्रण पर, 2 लाख रुपए आरक्षण सुनवाई पर और 1 लाख 60 हजार रुपए मतदाता सूची पर कलेक्टर कार्यालय से खर्च किए गए हैं। तीन सदस्यीय वार्ड संरचना को समाप्त करने से कर्मचारियों के श्रम और व्यय की बर्बादी हो गई है।