बच्चों को नदी पार कर जाना पड़ता है स्कूल, केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक किसी को परवाह नहीं

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    ठाणे : 21 सदी के इस अत्याधुनिक युग (Modern Age) में जब भारत आजादी का अपना 75 अमृत महोत्सव मना चुका है। वहीं ठाणे जिले के पलाटपाड़ा (Palatpara) के इस छोटे से गांव (Village) में के बच्चे (Children) आज भी नदी (River) को पार कर कश्ती अर्थात नाव (Boat) का सहारा लेकर स्कूल (School) तक पहुंचना पड़ता है। 

    देश में हर बच्‍चे को शिक्षा पाने का अधिकार है। केंद्र से लेकर राज्यों की सरकार तक हर बच्‍चे तक शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। मगर देश में अभी भी कुछ जगह हैं जहां पर लोगों को शिक्षा पाने के लिए काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ती है। देश में कुछ गांव ऐसे हैं जहां स्‍कूल तो हैं, लेकिन स्‍कूल तक पहुंचने के रास्‍ते नहीं है। कहीं स्कूल गांव से बहुत दूर हैं तो कहीं ऐसे दुर्गम जगह पर जहां पहुंचना मुश्किल है। ऐसे हालातों में कई बार बच्‍चे पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसी में से एक ठाणे जिले भिवंडी तहसील के अंतर्गत आने वाला पलाटपाड़ा गांव है। इस छोटे से गांव में मात्र 25 परिवार रहते हैं और वे कृषि और मछली पकड़ने पर निर्भर हैं। गांव में रहने वाले लोगों के पास कुछ खास सुविधाएं भी नहीं है और गांव में रास्‍ते भी ठीक नहीं हैं। गांव में स्‍कूल तो है, मगर गांव और स्‍कूल के बीच बहती नदी है, जिसे पार किए बगैर स्‍कूल पहुंचना मुमकिन नहीं है। 

    19 साल की कांता को खुद छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई, अब बच्चों पहुंचाती है स्कूल

    ठाणे शहर से करीब 50 किमी दूर इस गांव में बच्चों को शिक्षा अच्छी तरह प्राप्त हो सके, इसके लिए 19 वर्षीय कांता चिंतामन ने एक मुहिम शुरू की है। वह एक छोटी सी कश्‍ती में पलाटपाड़ा गांव से स्कूल के बच्चों को मुफ्त में स्कूल तक ले जाती हैं। कांता शिक्षा से वंचित रह गयी थीं क्योंकि उनके गांव से निकटतम स्कूल 80 मिनट से अधिक दूरी पर था और उन्हें 1 किमी लंबे तालाब को पार करके जाना पड़ता था। जब वह कक्षा 9 में थी तो उन्‍होंने स्कूल छोड़ दिया था। उस समय उन्‍हें स्कूल ले जाने के लिए नावें नहीं थीं और रास्तों के हालात भी ठीक नहीं थें। स्कूल छोड़ने के 5 साल बाद, कांता ने एक नाव खरीदी है और अपने गांव के सभी बच्चों के लिए मुफ्त सेवा शुरू की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी उनकी तरह शिक्षा से वंचित न हो।