Eknath Shinde, Bhujbal and rane

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    नागपुर. जब 1966 में कट्टर हिन्दुत्व और मराठी के अस्तित्व के आधार पर बालासाहब ठाकरे ने शिवसेना बनाई थी तब यह कहा जाता था कि कोई शिवसैनिक गद्दारी नहीं कर सकता लेकिन पहली बार 1991 में नागपुर में छगन भुजबल ने शीतसत्र के दौरान 9 विधायकों के साथ पार्टी से बगावत कर उस मिथक को तोड़ दिया था। उस समय शिवसैनिक भड़क उठे थे। भुजबल की खोज शुरू कर दी गई थी और उनके बंगले में आग लगा दी गई थी। ठीक वही इतिहास सोमवार की देर रात एक बार फिर दोहराया गया है। अब भुजबल की जगह एकनाथ शिंदे हैं। उनके पार्टी से बगावत पर एक बार फिर शिवसैनिकों में रोष दिख रहा है।

    भुजबल ने नागपुर से बगावत की थी। सवाल उठ रहे हैं कि क्या शिंदे की बगावत का भी नागपुरी कनेक्शन है। अपनी महात्वाकांक्षा के चलते भुजबल ने बगावत कर शिवसेना को पहला धक्का दिया था। उसके बाद कणकवली में राकां कार्यकर्ता सत्यविजय भिसे मर्डर केस के बाद नारायण राणे ने पार्टी छोड़ी। उन्हें लगा कि पार्टी का हाथ उनकी पीठ पर नहीं है। 2005 में 10 विधायकों के साथ वे कांग्रेस में चले गए। दोनों ही बागियों ने कांग्रेस में प्रवेश लिया था।

    राणे की बगावत का भी विदर्भ कनेक्शन

    राणे ने मुंबई में बगावत की थी लेकिन राज्य सरकार में तत्कालीन मंत्री विजय वडेट्टीवार और अमरावती जिले के दर्यापुर के विधायक प्रकाश भारसाकले का उन्हें समर्थन था। राणे की बगावत के बाद नागपुर में हुए शीतसत्र में काफी हंगामा भी हुआ था। राणे की बगावत का भी विदर्भ कनेक्शन रहा है। राणे को बालासाहब का दाहिना हाथ कहा जाता था। वे 1995 में मनोहर जोशी के मंत्रिमंडल राजस्व मंत्री थे। जब जोशी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो राणे को 6 महीने मुख्यमंत्री तक बनाया गया था। वे विरोधी पक्ष नेता भी रहे। जब बालासाहब ने उद्धव ठाकरे को उत्तराधिकारी बनाया तो वे दुखी हुए। उसके बाद 2002 में मर्डर केस में उन्हें लगा कि पार्टी उनके साथ नहीं तो वे 2005 में कांग्रेस चल गए। फिलहाल वे भाजपा में हैं। 

    25 वर्ष निष्ठावान रहे भुजबल

    जब भुजबल ने बगावत की थी तो किसी को विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि शिवसेना में 25 वर्ष निष्ठावान रहे भुजबल को मुंबई का महापौर बनाया गया था। 1990 विधानसभा चुनाव में 52 विधायक चुनकर आने के बाद उन्हें विरोधी पक्ष नेता पद होना था लेकिन मनोहर जोशी को पद दिया गया। तब भुजबल दुखी हुए। उस समय शरद पवार के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। 1991 में शीत सत्र में भुजबल ने पार्टी से बगावत कर कांग्रेस में प्रवेश ले लिया। उस समय शिवसैनिक आक्रामक हो गए थे। अब जब एकनाथ शिंदे बागी हुए हैं तो शिवसैनिक उनका पुतला जला रहे हैं। उनके घर तक शिवसैनिक पहुंच गए। चर्चा है कि विदर्भ से शिवसेना के सभी विधायक और सहयोगी सदस्य उनके समर्थन में खड़े हैं।