Gorakhpur University

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लखनऊ: बीते 21 जुलाई को गोरखपुर विश्वविद्यालय (Gorakhpur University) के प्रशासनिक भवन स्थित कुलपति कार्यालय पर हुए विवाद और मारपीट का मामला अब जमीन से निकल सोशल वार पर पहुँच गया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन और एबीवीपी के बीच चला आ रहा विवाद अब सोशल प्लेटफोर्म पर तेजी से दौड़ रहा है। जहाँ एबीवीपी के लोग विश्वविद्यालय में हुए विवाद के लिए कुलपति और प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे थे तो इसके बचाव में अब विश्वविद्यालय का स्टाफ सोशल प्लेटफोर्म पर सक्रिय हो गया है। 

फिलहाल दोनों तरफ से सोशल मीडिया के मौजूदा प्लेटफोर्म पर तर्कों की बाढ़ आ गयी है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्ट्राग्राम पर घटना की निंदा करते हुए जहाँ एबीवीपी के लोग पोस्ट करना शुरू कर दिए तो वहीँ विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने घटना की निंदा करते हुए दोषियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कुलपति कार्यालय में हुई घटना की निंदा की।

फिलहाल गोरखपुर विश्वविद्यालय का यह मामला थमता नजर नहीं आ रहा है। बुधवार को मिली जानकारी के मुताबिक़ गोरखपुर विश्वविद्यालय का यह जह्ग्दा अब बड़े आन्दोलन का रुप लेता जा रहा है। गोरखपुर विश्वविद्यालय कुलपति प्रो राजेश सिंह और छात्रों के बीच का यह विवाद सोशल मीडिया के अलावा एकबार फिर से धरने में बदल गया और बुधवार को छात्र धरने पर बैठ गए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छात्रसंघ गेट पर धरना दे रहा है और कुलपति पर भ्रष्टाचारी होने और पुलिस प्रशासन मुर्दाबाद के नारे के साथ “कुलपति यहां से जाएं” जैसी मांग छात्रों द्वारा की जा रही है।

बताते चलें कि गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो। राजेश सिंह से बीती 21 जुलाई को फीस वृद्धि एवं एबीवीपी कार्यकर्ताओं के निलंबन को वापस लेने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने मारपीट किया था और बचाव में आई पुलिस से भी उनकी झड़प हुई थी। जिसके बाद पुलिस ने एबीवीपी के 22 कार्यकर्ताओं पर केस दर्ज कर 08 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। जिसके बाद अब एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर कुलपति के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया और इसके जवाब में विश्वविद्यालय के शिक्षक भी अब मैदान में उतर गए हैं। 

एबीवीपी कार्यकर्ताओं एवं छात्र नेताओं ने कुलपति को हटाने को लेकर अभियान छेड़ रखा है। उनका कहना है कि छात्रों की समस्याओं की लगातार की जा रही अनदेखी ही इस हिंसात्मक घटना का मुख्य कारण है और लगातार छात्रहितों की अनदेखी करना विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए आम बात  है। छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन दूध का धुला नहीं है और जब किसी चीज की अति हो जाती है तभी ऐसी घटनाएं होती हैं।

– राजेश मिश्र