पिंपरी. मंगलवार से पिंपरी-चिंचवड व पुणे में लॉकडाउन लगाया गया है. इस दौरान शहर में कड़ा पुलिस बंदोबस्त देखा गया. बाजारों में सन्नाटा छाया हुआ है. लॉकडाउन के पहले दिन सुबह कामगारों को काम पर जाने से रोका गया, क्योंकि नियमानुसार उनके पास पहचान पत्र नहीं था. ये वे कामगार थे जो ठेके पर काम करते हैं. कोई किसी कंपनी में लेबर है, तो कोई सिक्यूरिटी गार्ड का काम करते है. इनके पास जरूरी कागजात नहीं था. मालिकों का कहना है कि लॉकडाउन की नियमावली केवल एक दिन पहले घोषित हुई, इतने कम समय में कागजपूर्ति, पहचान पत्र बनाना संभव नहीं. क्योंकि ये वो मजदूर कामगार होते है जो आते जाते रहते है. स्थायी नहीं होते.
मनपा में सिर्फ 10 प्रतिशत उपस्थिति
पिंपरी-चिंचवड मनपा भवन समेत 8 क्षेत्रीय कार्यालयों में केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी अधिकारी काम पर बुलाए गए, बाकी को घरों में रहने की सलाह दी गई. पालिका कार्यालयों में जहां रौनक, चहल-पहल रहती थी आज सूना-सूना रहा.
बाजार पेठ में सन्नाटा
पिंपरी कैम्प का सबसे बडा बाजारपेठ में सन्नाटा पसरा रहा. शगुन चौक से साईचौक औेर शगुन चौक से डिलक्स चौक, मेनबाजार, रिवर रोड में पूर्ण रूप से बाजारपेठ बंद रहा. यही आलम चिंचवड, थेरगांव, कालेवाडी, थरमॅक्स चौक से साने चौक और संपूर्ण चिखली परिसर, आकुर्डी, भोसरी, कासारवाडी आदि प्रमुख बाजारपेठ की दुकानों पर तालाबंदी देखी गई. चौक चौराहों, मुख्य मार्ग पर पुलिस ने बैरिकेट्स लगाकर आने जाने का रास्ता बंद रखा है. केवल अत्यावश्यक सेवा और नियमावली पूर्ति करने वाले कामगारों को ही जाने की अनुमति दी जा रही है. हालांकि इस काम में पुलिस कर्मचारी अच्छी खासी मेहनत कर रहे है. पहचानपत्र समेत आदि जरुरी कागजातों की जांच किसी टेडी खीर से कम नहीं है.
पुलिसवालों को भी संक्रमण का खतरा
कोरोना महामारी में पहले ही पुलिस वाले संक्रमित हो चुके हैं. पुलिस को भी चेकिंग के दौरान संक्रमण होने का खतरा मडंराता है. पिंपरी-चिंचवड में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 8 हजार के पार पहुंच चुकी है, लेकिन लोग आज भी लापरवाही करने से बाज नहीं आ रहे. बाजारों में भीड़ करना, चौक चौराहों पर बिना काम के युवाओं का रुकना, थूंकना मानो जन्मसिद्ध अधिकार बन गया हो. कोरोना की तेज रफ्तार की चेन तोड़ने के लिए 14 से 23 जूलाई तक 10 दिनों का कड़क लॉकडाउन पुणे जिला प्रशासन ने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के आदेशानुसार लिया है. लॉकडाउन की नियमावली बनाने में काफी माथामच्ची की गई. पालिका आयुक्त, पुलिस कमिश्नर, जिलाधिकारी इस बात को लेकर एकमत नहीं हो पा रहे थे कि उद्योग को शुरु किया जाए या बंद रखा जाए. पुलिस का अपना तर्क था कि उद्योग शुरू रखा गया तो एक एक कामगार की जांच करना असंभव होगा. पहले से पुलिस कर्मचारियों की कमतरता है. संपूर्ण लॉकडाउन हो ताकि पालन कराने में आसानी हो. लेकिन पालिका आयुक्त श्रावण हर्डीकर उद्योग शुरु करने के पक्ष में दिखे.
पुलिस ने की नियम तोड़ने वालों पर सख्त कार्रवाई
कुछ नियमों के साथ उद्योग को शुरु किया गया और पेचिदा व अनसुलझी, असमंजस भरी गाइडलाइन जारी की गई. जिसका नतीजा यह निकला कि कंपनी कम समय में अपने कामगारों को लेटरहेड, पहचानपत्र देने में असफल रही और आज पहले दिन कामगारों को भारी परेशानी झेलनी पडी. पुलिस ने शहर के विभिन्न ठिकानों पर नियम तोड़ने वालों पर कड़ी कार्रवाई भी की है. लाठियां भी भांजी है.