सनकी ट्रम्प के खिलाफ उनकी रिपब्लिकन पार्टी के भी लोग

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अमेरिकी लोकतंत्र पर कलंक का गहरा धब्बा लगाने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प (Donald trump)को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा. 1776 से लेकर आज तक अमेरिका की जो छवि रही, वह अब दरक गई है. कौन सोच सकता था कि एक ऐसा भी राष्ट्रपति होगा जो झूठ को ओढ़ेगा-बिछाएगा और अपनी मगरूरी में राष्ट्र का मस्तक गर्व से ऊंचा करने वाली लोकतांत्रिक परंपराओं व सम्मानित संस्थाओं को इतनी अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा. जब से चुनाव नतीजे आए, ट्रम्प ने अपनी हार स्वीकार करने की बजाय ओछा आरोप लगाया कि उनकी जीत चुरा ली गई है. उन्होंने हिटलर, मुसोलिनी और जनरल फ्रैंको जैसे तानाशाहों की राह चुनी. चुनाव परिणामों को विभिन्न अदालतों में चुनौती दी. चुनाव में व्यापक धोखाधड़ी का बेबुनियाद आरोप लगाते हुए उन्होंने अपने अनुदार दक्षिणपंथी उग्र समर्थकों को इतनी बुरी तरह भड़काया कि उसका नतीजा कैपिटॉल (संसद भवन) पर हिंसक हमले के रूप में सामने आया.

पहली बार सत्ता हस्तांतरण में विघ्न

पहली बार ऐसा हुआ कि सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण में गुंडागर्दी से विघ्न पैदा किया गया और शर्मनाक हरकतें की गईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाशिंगटन की इस हिंसा की निंदा करते हुए कहा कि गैरकानूनी विरोध प्रदर्शन के जरिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उलटफेर नहीं किया जा सकता. आबादी के लिहाज से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में कभी इस तरह की नौबत नहीं आई.

अपनों ने भी साथ छोड़ा

ट्रम्प के प्रति वफादार रहे उपराष्ट्रपति माइक पेन्स (Mike Pence) ने कहा कि वे जनादेश को नहीं पलट सकते. जार्जिया में चुनाव की देखरेख करने वाले ब्रैड रैफेन्सपर्गर भी चुनाव परिणाम बदलने के लिए ट्रम्प के दबाव में नहीं आए. ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के सीनेट में नेता मिच मैककॉनेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मतदाताओं, अदालतों और राज्यों सभी ने जो बाइडन को नया राष्ट्रपति करार दिया. यह फैसला कदापि नहीं बदला जाना चाहिए. अमेरिका के लोकतंत्र की गरिमा बनी रहनी चाहिए.

ट्रम्प को तत्काल हटाने की मांग

वाशिंगटन की हिंसा के बाद ट्रम्प की कैबिनेट के सदस्य ही चाहते हैं कि 25वां संविधान संशोधन लागू करते हुए ट्रम्प को अयोग्य करार देते हुए बर्खास्त कर दिया जाए. डेमोक्रेटिक सांसद भी ट्रम्प के खिलाफ पुन: महाभियोग लाने का विचार कर रहे हैं. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने कैपिटॉल पर हमले को ‘बगावत’ और राष्ट्र के इतिहास का काला अध्याय करार दिया. उन्होंने कहा कि इस तरह के कांड से अमेरिका की छवि दुनिया की आंखों में नीची हो गई है. इसका असर देश-विदेश दोनों में देखा जाएगा. अमेरिका को 4 पूर्व राष्ट्रपतियों जिमी कार्टर, जॉर्ज बुश, बिल क्लिंटन व बराक ओबामा ने भी ट्रम्प के ओछे रवैये की निंदा की. सुझाव यह भी आया है कि अमेरिका की राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली को और अधिक सरल, निरापद व पारदर्शी बनाया जाए ताकि भविष्य में भी कभी ट्रम्प जैसा कोई सिरफिरा चुनाव नतीजे आ जाने के बावजूद व्यर्थ का व्यवधान उत्पन्न न करे. किसी भी व्यक्ति की तुलना में देश हमेशा महान होता है.

राष्ट्र की गरिमा बनाए रखनी होगी

यद्यपि 6 जनवरी अमेरिका के लिए शर्म का दिन माना जाएगा लेकिन इस तरह के झटके से देश को उबरना और संभलना होगा. अभी भी ऐसी संस्थाएं हैं जो अमेरिका की गरिमा को बनाए रखने में सचेत हैं. गत माह अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट तथा राज्यों की अदालतों ने ऐसे मुकदमे ठुकरा दिए जिनमें राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे बदलने की मांग की गई थी. इससे यह साबित हो गया कि राजनेताओं के अधिकारों और उनके घमंड पर कहीं न कहीं अंकुश लगाना जरूरी है. जनता भी ऐसे नेता को चुने जो तानाशाही मिजाज का न हो और जवाबदेही की भावना रखता हो. ट्रम्प की हरकतों से उनकी रिपब्लिकन पार्टी को भी नुकसान पहुंचा है. चुनाव नतीजों को स्वीकार न करने की उद्दंडता एक ऐसी खतरनाक प्रवृत्ति है जो किसी भी लोकतंत्र में बर्दाश्त नहीं की जा सकती. अमेरिका की पुलिस ने ‘ब्लैक लाइव्ज मैटर’ आंदोलनकारियों के प्रति जैसी सख्ती दिखाई थी, वैसी संसद पर धावा बोलने वाले ट्रम्प समर्थकों के मामले में नहीं दिखाई.