जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा, UP के समान केंद्र भी कानून लाएगा

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    केंद्र सरकार भी यूपी के समान ही जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने के पक्ष में है लेकिन इसके लिए सरकार स्वयं विधेयक नहीं लाएगी, बल्कि इस मुद्दे पर 6 अगस्त को राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पर चर्चा हो सकती है. यह विधेयक बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, हरनाथसिंह यादव व अनिल अग्रवाल ने पेश किया है. सरकार की योजना राज्यसभा में इस विधेयक को पास कराने की है तथा इसके लिए विपक्षी दलों से भी समर्थन जुटाने का प्रयास चल रहा है. यूपी की जनसंख्या नियंत्रण नीति को एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने समर्थन दिया है, इसलिए उम्मीद है कि केंद्र को भी ऐसा ही विधेयक लाने पर समर्थन देंगे.

    देश की आबादी ज्यादा होने से जीडीपी में भारत दुनिया में 5वें नंबर पर होने के बावजूद प्रति व्यक्ति आय के मामले में पिछड़कर 144वें स्थान पर चला जाता है. मानव विकास सूचकांक में भी हमारा देश 129वें स्थान पर है. विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत की आबादी तेजी से बढ़ी है. आजादी के समय 40 करोड़ भारतीय थे जो आज 130 करोड़ से भी ज्यादा हैं. जन्म दर तो बढ़ी है, साथ ही आयुसीमा बढ़ने से भी बुजुर्गों की तादाद काफी है. जनसंख्या नियंत्रण के लिए लोगों को समझा-बुझाकर राजी करने के प्रयास विफल रहे हैं. आबादी नियंत्रण का मुद्दा संविधान की समवर्ती सूची में है अर्थात केंद्र और राज्य दोनों को ही इस विषय में कानून बनाने का अधिकार है.

    अल्पसंख्यक विरोधी बताया जा रहा

    यूपी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण विधेयक प्रस्तावित करते समय अपनी ओर से हिंदू-मुस्लिम में कोई भेद नहीं किया परंतु फिर भी इस बिल को मुस्लिम विरोधी बता कर आलोचना की जा रही है. इस विधेयक में कुछ बातें बहुत साफ हैं, जैसे कि जिनके 2 से ज्यादा बच्चे होंगे, उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी और सरकारी सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी. ऐसे लोग चुनाव में उम्मीदवार नहीं बन सकेंगे. जिसकी सिर्फ 1 संतान है, उसे विशेष सुविधाएं मिलेंगी. नसबंदी कराने वाले स्त्री-पुरुषों को 80,000 से 1 लाख रुपए मिलेंगे. यह प्रावधान ऐसे हैं जिनका लाभ शहरी व मध्यम वर्ग के तथा पढ़े-लिखे लोग अवश्य ही उठाना चाहेंगे. इसके विपरीत जिन लोगों को सरकारी नौकरियों या चुनाव से सरोकार नहीं है और जो किसी की सुनना ही नहीं चाहते, वे अपने रास्ते पर चलेंगे. यह जरूर कहा गया है कि राशन कार्ड पर पति-पत्नी और 2 बच्चों के अलावा कोई नाम नहीं रहेगा. इसलिए उस वर्ग के लोगों को भी सोचना पड़ेगा जो परिवार नियोजन का विरोध करते आए हैं. यूपी की योगी सरकार समझ गई है कि उसे मुस्लिम समुदाय के वोट वैसे भी मिलने वाले नहीं हैं, इसलिए वह किसी का तुष्टीकरण करना नहीं चाहती. यह महसूस किया गया है कि असम जैसे राज्य में बंगाल व बांग्लादेश से हुई घुसपैठ के अलावा जनसंख्या नियंत्रण नीति नहीं रहने से मुस्लिम आबादी बढ़ती चली गई और स्थानीय लोगों की तादाद कम हो गई.

    अन्य तरीके भी हो सकते हैं

    आबादी नियंत्रण के और भी तरीके हो सकते हैं, जैसे कि शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाई जाए. लड़की की शादी भी 21 वर्ष की उम्र के बाद की जाए. लड़कियों की पढ़ाई व नौकरी को प्रोत्साहन दिया जाए, जिससे कम आयु में उनका विवाह नहीं होगा. पढ़े-लिखे लोग खुद ही इस बारे में सजग हैं. उन्हें पता है कि आज एक बच्चे की परवरिश व पढ़ाई पर हर साल लाखों का खर्च आता है, इसलिए वे 2 संतानों तक ही परिवार को सीमित रखते हैं. इसके अलावा स्त्री शिक्षा, आर्थिक विकास से भी लोगों की सोच में बदलाव आता है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं कम और बाल मृत्यु दर ज्यादा होने से लोग अधिक संतानों को जन्म देने के लिए प्रेरित होते हैं, ताकि वंश चलता रहे. यदि वर्ग विशेष की बहुविवाह प्रथा को इस विधेयक के जरिए निशाना बनाया जाता है तो विधानसभा चुनाव में उसका विपरीत नतीजा सामने आ सकता है.