फसल बीमा: केवल 25 प्रश किसानों को राहत, किसानों का शोषण, कंपनियों का पोषण

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    अमरावती. आसमानी व सुलतानी संकट की चपेट में आने से फसल चौपट हो जाने पर किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई, लेकिन किसानों को फसल बीमा की राशि सही समय पर नुकसान के अनुपात में नहीं मिल पाती. जिसके कारण इस योजना का मूल उद्देश्य ही पूर्ण नहीं हो पा रहा है.

    प्रति वर्ष किसानों को अपनी हक की फसल बीमा राशि प्राप्त करने के लिए कृषि विभाग, जिला प्रशासन और बीमा कंपनी कार्यालय के चक्कर लगाने विवश होना पड़ता हैं. बीमा की किश्त नियमित अदा करने वाले किसानों में से केवल 25 प्रतिशत कृषकों को ही फसल बीमा का लाभ मिलता है. इसके विपरित कंपनी करोड़ों रुपयों का मुनाफा कमाती है. इसमें किसानों का शोषण तथा बीमा कंपनियों को पोषण साफ झलकता है. 

    कुल उत्पादन पर तय होती दरें

    पिछले वर्ष तक प्रति वर्ष फसलों का बीमा निकाला जाता था. लेकिन राज्य सरकार ने खरीफ-2020 व रबी 2021 से तीन वर्षों के लिए फसल बीमा पालिसी अमल में लाई है. जिसमें शासन ने निर्धारित बीमा क्षेत्र के घटक अंतर्गत फसल कटाई पर उपलब्ध आय के औसतन आंकड़ों पर आधारित की है. यदि किसी निर्धारित क्षेत्र में बीमा कवच वाली फसल उस वर्ष की दरों के हिसाब से प्रति हेक्टेयर औसतन आय कुल उत्पादन से कम हुई तो उस क्षेत्र के सभी बीमा धारक किसानों का नुकसान होने की बात दर्ज की जाती है.

    एक बीमा घटक में कुल उत्पादन यह सभी फसलों के लिए इस मौसम के पिछले 7 वर्षों में से सर्वोत्तम 5 वर्षों की औसतन आय जोखिम स्तर पर ग्राह्य मानी जाती है. जिसमें योजना अंतर्गत सभी फसलों के लिए तीन वर्षों हेतु 70 प्रतिशत जोखिम स्तर तय किया जाता है. वास्तविकता में किसी किसान को एक हेक्टेयर में 2 से 2.50 क्विंटल कुल आय होगी तो उस किसान को अत्यंत कम बीमा राशि मिलती है. यही कारण है कि फसल बीमा के प्रति किसानों में निराशा का वातावरण है. 

    क्या है बीड पैटर्न

    केंद्र सरकार ने मंत्रियों की उपसमिति स्थापित की थी. उस उपसमिति ने एक मसौदा तैयार कर केंद्र सरकार को पेश किया है. जिसके अनुसार यदि किसान, राज्य सरकार व केंद्र सरकार मिलकर 100 करोड़ रुपए बीमा कंपनी के पास जमा करती है तो नुकसान भरपाई के तौर पर कंपनी को 150 करोड़ की बजाय 110 करोड़ रुपये नुकसान भरपाई देनी होगी. शेष नुकसान भरपाई राज्य शासन वहन करेंगी.

    यदि 100 करोड़ रुपए कंपनी के पास जमा हुए और फसल नुकसान नहीं हुआ तो बीमा कंपनियों को 80 करोड़ रुपए राज्य सरकार को लौटाने होंगे. शेष 20 करोड़ रुपए की रकम बीमा कंपनी रखेंगी. वापस मिलने वाली यह राशि राज्य सरकार किसानों के हित में खर्च करेंगी. इस तरह मुनाफे और नुकसान की जिम्मेदारी की सीमा तय कर दी गई है. वर्तमान में बीड़ जिले में यह माडेल बीमा कंपनियां प्रायोगिक तौर पर अमल में ला रही है.  

    किसानों के साथ धोखा 

    बीमा में बीड पैटर्न, नुकसान भरपाई देने का सूत्र और तीन वर्षों का बीमा राज्य सरकार की किसानों के साथ सीधे धोखाधड़ी हैं. बीड पैटर्न केवल राज्य सरकार व बीमा कंपनियों के फायदे का है. किसानों को इस पैटर्न से कोई लाभ नहीं होंगा. किसानों को बीमा का लाभ देने के लिए कुल उत्पादन पर 90 प्रतिशत जोखिम स्तर ग्राह्य मानना होंगा. कुल उत्पादन निकालते समय योग्य मौसम में अधिकतम उत्पादकता कृषि विश्वविद्यालय से मंगवाए.

    जिसके आधार पर कुल उत्पादकता तय करें. आपत्ति, बुआई उत्तर, मौसम पूर्व बीमा के लिए सूचना देने की अवधि 72 घंटे की बजाय 10 दिन करें. फसल कटाई के लिए किसान को सभी कटाई प्रयोग के दौरान विश्वास में लिया जाना चाहिए. फसल कटाई उत्पादकता किसानों की आंखों के सामने होनी चाहिए. -डा. अनिल बोंडे, पूर्व कृषि मंत्री

    49 हजार किसानों को लाभ

    पिछले वर्ष जिले में 1 लाख 85 हजार किसानों का इफको टोकियो जनरल इंश्योरेन्स कंपनी ने फसल बीमा निकाला था. जिसके बाद नैसर्गीक आपदा के कारण फसल नुकसान होने पर बीमा कंपनी से जिले के 49 हजार किसानों को लाभ मिला. -विजय चव्हाले, जिला कृषि अधीक्षक

    योग्य नियोजन होना जरूरी 

    बीमा कंपनियां गब्बर होती जा रही है. क्योंकि राज्य सरकार का फसल बीमा को लेकर योग्य नियोजन ही नहीं है. यदि शासन योग्य नियोजन करती है तो किसानों को बड़े पैमाने पर बीमा का लाभ मिल सकता है. -अजय टाले, किसान कासमपुर

    फसल बीमा योजना एक तरह से किसानों के हितों की है, लेकिन राज्य व केंद्र सरकार का योग्य नियोजन नहीं होने के कारण किसानों को फसल बीमा का पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता. जिसके कारण किसान भी हताश है. -सुधीर रसे, किसान, पथ्रोट

    कार्यालय के चक्कर काटने विवश

    फसल बीमा योजना किसानों के हित की है, लेकिन नुकसान भरपाई पाने के लिए कृषि कार्यालय व बीमा कंपनियों के कार्यालयों के चक्कर काटने विवश होना पड़ता है. पिछले वर्ष संतरा फसल की नुकसान भरपाई आज तक नहीं मिली है. इसी कारण किसानों का फसल बीमा योजना पर भरोसा नहीं है. -अनूप अरबट, युवा किसान, पथ्रोट