यूक्रेन-रूस संकट : क्या रूसी सैनिक सैनिक सच में मैदान छोड़कर रहे हैं भाग, जानें पूरा सच

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    लंदन.  हाल के दिनों में ऐसी खबरें आयी हैं कि यूक्रेन में आगे बढ़ने से रोक दी गयी और कई सैन्य नाकामियों का सामना कर रही रूसी सेना ने अपने खुद के उपकरण नष्ट कर दिए हैं, उसने युद्ध लड़ने और आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया है और एक खबर में यहां तक कहा गया है कि उन्होंने अपने ही कमांडर पर हमला कर दिया।

    उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का अनुमान है कि दो महीने से भी कम वक्त में इस संघर्ष के दौरान करीब 15,000 रूसी सैनिक मारे गए है, जो अफगानिस्तान में नौ वर्षों में मारे गए सोवियत संघ (अब विघटित हो चुके) के सैनिकों के बराबर है। ऐसा बताया जा रहा है कि सैनिकों का मनोबल गिर गया है। ऐसी स्थिति में रूसी सैनिकों के विद्रोह करने की संभावना है। लड़ाई छोड़कर भागने से सेना का शारीरिक और मनोवैज्ञानिक उत्साह कम हो जाएगा, जबकि पाला बदलने या दुश्मन की सेना में शामिल होने से यूक्रेन को मदद मिल सकती है।

    यह पहली बार नहीं है जब रूसी या सोवियत सैनिकों ने किसी संघर्ष में आदेशों को मानने से इनकार कर दिया है। रूस-जापान युद्ध के दौरान रूसी सैनिकों ने जून 1905 में विद्रोह कर दिया था जो इतिहास की प्रसिद्ध घटनाओं में से एक है। सुशिमा की लड़ाई में रूसी नौसेना का ज्यादातर बेड़ा नष्ट हो गया था और उसके पास कुछ गैर-अनुभव वाले लड़ाके बचे थे। बांसा मांस परोसे जाने समेत काम करने की खराब स्थितियों का सामना कर रहे 700 नाविकों ने अपने अधिकारियों के खिलाफ ही विद्रोह कर दिया था। द्वितीय विश्वयुद्ध में जोसेफ स्टालिन ने आत्मसमर्पण करने की ओर बिल्कुल बर्दाश्त न करने वाली नीति लागू करते हुए सैनिकों के बीच आज्ञाकारिता सुनिश्चित करने की कोशिश की थी। चेचन्या के साथ रूस के पहले संघर्ष (1994-96) में बड़ी संख्या में सैनिक जंग का मैदान छोड़कर भाग गए थे।

    यूक्रेन में सैनिक इतनी बड़ी संख्या में क्यों भाग रहे हैं?

    युद्ध में पाला बदलना और मैदान छोड़कर भागना आम है। युद्ध की मुश्किलें, लड़ाई में खराब प्रदर्शन और युद्ध की वजह की वैचारिक प्रतिबद्धता के कम होने से सैनिक जंग का मैदान छोड़कर भाग सकते हैं। लेकिन रूसी सैनिक पहले ही मनोबल गिरने और सहयोग न मिलने की स्थिति को महसूस कर रहे हैं। अध्ययन से पता चलता है कि सैनिकों का मनोबल कम है, खासतौर से जिन्हें आधुनिक तकनीक नहीं आती हैं। ऐसी खबरें हैं कि रूसी सेना अपनी संरचना में बदलाव लाने की कोशिश कर रही है लेकिन इसके बावजूद रूस की अपनी सेना ने 2014 में बताया कि उसके 25 प्रतिशत से अधिक कर्मी अपनी इंफेंट्री के उपकरण नहीं चला पाए।

    हालांकि, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बदलावों के नतीजन सेना का बजट बढ़ गया लेकिन सैनिकों की तनख्वाह नहीं बढ़ी। अनुबंधित सैनिकों को उनके अमेरिकी समकक्षों के मुकाबले 200 प्रतिशत कम वेतन दिया जाता है। इन सभी कारणों से सैनिकों का मनोबल गिरा है और पाला बदलने तथा मैदान छोड़कर भागने की आशंका भी बढ़ी है। इससे निपटने के लिए रूसी जनरल अग्रिम मोर्चे पर जाकर लड़ रहे हैं ताकि सैनिकों को प्रोत्साहित किया जाए। इसके कारण कम से कम सात जनरल की मौत हो गयी है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से रूसी सेना में जनरलों की सबसे अधिक मृत्यु दर है। रूस न केवल यूक्रेन के लोगों के दिल और दिमाग जीतने में नाकाम रहा है, बल्कि अब वह अपने सैनिकों का मन जीतने के लिए संघर्ष करता प्रतीत हो रहा है।