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भंडारा (का). पिछले कई वर्षों से जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग स्थापित न किए जाने बेरोजगारी चरम पर पहुंची है. उद्योगधंधों की अल्पता के कारण सुशिक्षित बेरोजगारों को भी रोजगार के लाले पड़ गए हैं. कोरोना काल में बहुत के युवाओं के हाथ का काम चले जाने की वजह से वे अपने मूल गांव वापस चले गए थे, लेकिन अब लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे फिर कामकाज शुरु हो रहा है तो बेरोजगार युवक काम की तलाश में इधर- उधर भटक रहे हैं.

जीवन जीने के लिए पहले रोटी, कपड़ा और मकान ये तीन मुख्य जरूरतें थीं, लेकिन अब जीवन जीने की मुख्य जरूरतों में और बहुत कुछ शामिल हो गया है. आज सामान्य रूप से जीने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा जल, बिजली और मोबाइल भी शामिल हो गया है. पिछले दो दशकों पर अगर नज़र दौड़ायी जाए तो हर क्षेत्र में बाजारीकरण बहुत बढ़ गया है. बाजारीकरण के कारण गरीब तथा असहाय लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. सुशिक्षित बेरोजगारों को रोजगार कैसे मिले, इसकी चिंता करने वाला कोई नहीं है.

शिक्षा के प्रति घटना रुझान तथा रोजगार के कम होते अवसर के कारण युवा वर्ग में जबर्दस्त निराशा देखी जा रही है. सामान्य तौर पर किसी सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में र्क्लक पर काम करने के लिए बीए न्यूनतम उपाधि होती है, लेकिन आज शिक्षा ग्रहण करना मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए भी बहुत मुश्किल हो गया है. जब सुशिक्षित बेरोजगार रोजगार पाने की गारंटी नहीं दे सकते तो फिर 10-12 तक किसी तरह पास होने वालों को रोजगार कैसे मिलेगा. कृषि कार्य करने में आज की युवा पीढ़ी रुचि नहीं दिखा रही है और बड़े शहरों का खर्च हर किसी के लिए वहन कर पाना संभव नहीं है, ऐसे में सुशिक्षित बेरोजगार की चाहत यही रहती है कि उसे शहरी क्षेत्रों मे रोजगार का अवसर मिले.

भंडारा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी बड़ी फैक्ट्री नहीं है, इसलिए जिले में रोजगार के अवसर बहुत कम हैं. 12 वीं किसी तरह पास करने के बाद सरकारी नौकरी की तलाश करने वाले लोगों को रोजगार इसलिए नहीं मिल पाता कि उन्हें पढ़ने लिखने में कोई रूचि नहीं रह जाती. सरकारी नौकरी मिलना आज के स्पर्धात्मक युग में संभव नहीं है. ग्रामीण क्षेत्र को कृषि प्रधान क्षेत्र भले ही कहा जाता हो, लेकिन यहां के युवकों में भी खेतीबाड़ी करने में अब रूचि नहीं रह गई है.

सुविधाजीवी जीवन युवाओं की शक्ति ही समाप्त कर रहा है. कृषि प्रधान देश भारत के किसी भी राज्य में आज कृषि कार्य से जुड़ा कोई भी व्यक्ति प्रसन्न नहीं है. किसानों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र राज्य अन्य राज्यों की तुलना में बहुत आगे हैं. न तो शहर में काम, न तो गांव में काम, न तो सरकारी नौकरी और न ही निजी कंपनी में नौकरी मिलने की संभावना, ऐसे में सुशिक्षित बेरोजगारों की समस्या लगातार बढ़ती जा रही हैं. सरकारें आती हैं, जाती हैं, लेकिन सुशिक्षित बेरोजगारों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. कोरोना महामारी के बाद बदले हालातों को देखते हुए आने वाले कुछ वर्षों तक भंडारा जिले में सुशिक्षित बेरोजगारों की स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं.