Indian Economy
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नई दिल्ली. कोविड के पहले से अभी तक सभी बाजारों की तुलना में भारत और भारतीय छोटे शेयरों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसा इसके बावजूद है कि भारत ने दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे कम आर्थिक और वित्तीय प्रोत्साहन दिया है। भारतीय स्टॉक 1.5 से 2 गुना ऊपर हैं जबकि चीन 33% नीचे है। पिछले 25 वर्षों से भारत दुनिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला बड़ा बाजार है, भले ही वह अमेरिकी डॉलर के लिहाज से ही क्यों न हो। भारत के निकटतम रिटर्न वाला एकमात्र इंडेक्स नैस्डैक है, जो तकनीक और नवाचार वाली कंपनियों के साथ एक हाई रिस्क वाला इंडेक्स है।

भारत में हमेशा तीन डी की संरचनात्मक सकारात्मकता रही है: डेमोक्रेसी, डेमोग्राफिक्स और उद्योग का डी-रेगुलराइजेशन। इससे भारतीय सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय का स्तर 500 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2600 अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जो कि 30 वर्षों में अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में 450% की वृद्धि है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में, ये विश्व के बाकी देशों की तुलना में भारत के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण और मजबूत हो गए हैं। आइये देखते हैं कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ है?

कई तरह से कमजोर किया गया ‘डेमोक्रेसी’ को

पिछले 20 वर्षों में, हमने देखा है कि कई देश अधिक कट्टरपंथी बन गए हैं, जबकि कई देश तानाशाही में बदल गए हैं। चीन में सत्तावादी ज्यादा है और पारदर्शिता कम। डेमोक्रेसी को कई तरह से कमजोर किया गया है। इस पृष्ठभूमि में, भारत सही मायने में काम कर रहे लोकतंत्रों में से एक है जो विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपने मूल्यों को साझा करता है। ट्रस्ट म्युचुअल फंड के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर मिहिर वोरा के अनुसार हाल ही में कोविड और गैर-लोकतांत्रिक देशों में युद्ध की स्थिति बनने के बाद, वैश्विक निवेशक ब्राजील और इंडोनेशिया के साथ केवल भारत को एक बड़े उभरते बाजार के रूप में देख रहे हैं। 

डेमोग्राफिक्स : जीडीपी में 20% का योगदान 

जनसंख्या के मामले में भी भारत विश्व का सबसे मजबूत देश है। भारत अगले 10 वर्षों में दुनिया की कामकाजी उम्र की आबादी का 20% जोड़ेगा और दुनिया की वृद्धिशील जीडीपी में भी इसका 20% का योगदान रहेगा। कामकाजी उम्र की आबादी के मामले में चीन, यूरोप, जापान में कमी देखी जाएगी जबकि अमेरिका में कोई वृद्धि नहीं होगी। चीन की कामकाजी उम्र की आबादी चरम पर पहुंच गई है। 

डी-रेगुलराइजेशन : बेहतर बिज़नेस का बन रहा माहौल

1991 में लाइसेंस-परमिट राज को समाप्त करने वाले सुधार अभी भी जारी हैं और तब से बिज़नेस को मजबूती देने वाले कई और कदम उठाए गए हैं। नए निवेश के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में कमी, जीएसटी की शुरूआत, रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया को सरल बनाने आदि से  व्यवस्थित क्षेत्र को काफी मदद मिली है। कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं की शुरूआत विनिर्माण क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश को बढ़ावा दे रही है। दिवालियापन संहिता और एनसीएलटी प्रक्रिया, आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, लॉजिस्टिक्स के लिए गति शक्ति, ये सभी बेहतर बिज़नेस माहौल बनाए रखने के लिए व्यापक कदम हैं। स्थानीय और विदेशी निवेशक और कॉर्पोरेशन इसकी सराहना करते हैं, और हम डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फ्लो में निरंतर सुधार देख रहे हैं। जबकि तीन डी में सुधार जारी है, पिछले कुछ वर्षों ने हमें प्रतिस्पर्धात्मक लाभ में चार और डी दिए हैं, जो विकास की कहानी को आगे बढ़ाते हैं: डिजिटलीकरण, डायवर्सिफिकेशन, (कम) डेब्ट और डायनामिस्म।

डिजिटलीकरण, डायवर्सिफिकेशन, डेब्ट और डायनामिस्म 

डिजिटलीकरण के अंतर्गत यूपीआई के साथ जेएएम (जनधन आधार मोबाइल) इकोसिस्टम पूरी तरह से भारतीय नवाचार हैं जो वित्तीय लेनदेन लागत को कम करने और वित्तीय समावेशन में क्रांति लाने में मदद कर रहे हैं। वहीं डायवर्सिफिकेशन के अंतर्गत सरकार के पीएलआई और अन्य इन्सेन्टिव्स के साथ मिलकर पहले ही कई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्थानीय कंपनियों को भारत में निर्माण की महत्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा करते देखना शुरू कर दिया है। भारत के पास असीमित अवसर हैं। भारत ने फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) को आकर्षित करना जारी रखा है। डेब्ट के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के सभी धुरंधरों के पास आवश्यकतानुसार निवेश और विस्तार करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने अपनी बैलेंस शीट को साफ करने का सराहनीय काम किया है और बैंकों के साथ-साथ वित्त कंपनियों को भी पर्याप्त पूंजी दी गई है। लम्बे समय तक विकास में पूंजी लगाने के वित्तीय प्रणाली के लिए यह एक मजबूत आधार तैयार करता है।  वहीं डायनामिस्म के जरिये स्टार्ट-अप इकोसिस्टम फल-फूल रहा है और आइडियास और कॉन्सेप्ट्स को पूँजी मिल रही है। इससे युवाओं की मानसिकता में निर्णायक बदलाव आया है और असफलता को अब टैबू नहीं माना जाता है। हम भारत में पहले की तुलना में कहीं अधिक इनोवेशन देखेंगे और हमें उम्मीद है कि भारत में वैश्विक स्तर की इनोवेटिव कंपनियों का उदय होगा। हालाँकि, अगर हम लम्बे समय तक के लिए देखें तो कुल मिलाकर, भारत एक अच्छी स्थिति में है।