कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के विचारों में स्पष्टता नहीं है. राजनीति में पार्टी लाइन साफ और सधी हुई होनी चाहिए अन्यथा कार्यकर्ता भ्रमित और परेशान हो जाते हैं. केरल में लेफ्ट पार्टियों (Kerala Left Parties) के साथ गठबंधन बनाकर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. लेकिन वाम दलों के साथ रिश्तों को लेकर राहुल गांधी का कथन काफी विचित्र है. उन्होंने कहा कि हम वाम दलों से सहमत नहीं हैं लेकिन हम उनसे निश्चित रूप से घृणा नहीं करते. वे हमारे भाई हैं, मैं उनके साथ वादविवाद करूंगा, बहस करूंगा, उनसे असहमत भी होऊंगा फिर भी आखिर में उन्हें देखकर मुस्कुराऊंगा क्योंकि वे हमारे भाई हैं.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं. केरल में उनकी उपस्थिति को लेकर वामपंथी दल और बीजेपी दोनों सवाल उठा रहे हैं. राहुल को कांग्रेस कार्यकर्ताओं (Congress Leaders) को साफ संदेश देना था कि वे केरल में लेफ्ट के प्रत्याशियों का समर्थन करें या न करें. इसी तरह राहुल ने बीजेपी (BJP)को निशाना बनाने के लिए अमेरिका के कंधे का सहारा लिया. उन्होंने हार्वर्ड केनेडी स्कूल के एम्बेसडर निकोलस बर्न्स से वर्चुअल बातचीत में आरोप लगाया कि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं या संस्थागत ढांचे पर बीजेपी ने कब्जा कर रखा है. लोकतांत्रिक संस्थाओं की नाकामी से देश में जनआंदोलन तेजी से बढ़ रहे हैं.
भारत और अमेरिका के बीच लोकतांत्रिक साझेदारी है लेकिन फिर भी अमेरिका चुप है. बीजेपी आर्थिक तौर पर बहुत मजबूत हुई है और मीडिया पर उसका प्रभाव बढ़ा है. इस वजह से विपक्षी पार्टियां चुनाव नहीं जीत पातीं. राहुल गांधी ने अपना दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि यदि वह प्रधानमंत्री बने तो 10 से 15 वर्ष तक देश में रोजगार पर जोर देंगे. यदि देश में बेरोजगारों की फौज हो तो जीडीपी के 9 प्रतिशत होने का कोई अर्थ नहीं है. हमारी वृद्धि और रोजगार सृजन के बीच संबंध होना चाहिए.