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यद्यपि बीजेपी खुद को बेफिक्र बताती है परंतु एनडीए में जिस तरह की दरार आ रही है, वह कोई शुभ संकेत नहीं है.

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यद्यपि बीजेपी खुद को बेफिक्र बताती है परंतु एनडीए में जिस तरह की दरार आ रही है, वह कोई शुभ संकेत नहीं है. एक के बाद एक सहयोगी पार्टियां बीजेपी का दामन छोड़ती चली जा रही हैं. अटलबिहारी वाजपेयी ने 24 छोटे-बड़े दलों वाले एनडीए की एकजुट सरकार पूरे तालमेल के साथ चलाई थी, किंतु मोदी सरकार से सहयोगी दल लगातार छिटकते चले जा रहे हैं. पहले शिवसेना ने बीजेपी से वर्षों पुरानी युति तोड़ी और महाराष्ट्र में एनसीपी व कांग्रेस के सहयोग से महाविकास आघाड़ी सरकार बना ली. इसके बाद केंद्र सरकार के किसान बिलों से नाराज होकर शिरोमणि अकाली दल एनडीए से अलग हुआ. बिहार चुनाव की बेला में पासवान की पार्टी लोजपा भी एनडीए से बाहर हो गई है और नीतीश कुमार की जदयू के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. कुछ समय बाद बंगाल के भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. वहां भी बीजेपी को गहरा राजनीतिक झटका लगा है. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है. जीजेएम के प्रमुख बिमल गुरुंग ने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में गठबंधन की घोषणा की है. जीजेएम का उत्तरी बंगाल, खासतौर पर दार्जिलिंग क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव है. इतने दिनों तक खामोशी बरतने वाले बिमल गुरुंग ने बंगाल का चुनाव निकट आते देख बीजेपी पर आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए. इसके विपरीत ममता बनर्जी सारे वादे पूरे कर रही हैं, इसलिए गोरखा जनमुक्ति मोर्चा एनडीए से अलग हो रहा है. वे 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर बीजेपी को करारा जवाब देंगे. इतना ही नहीं, गुरुंग ने यह भी कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वे उसी पार्टी को समर्थन देंगे जो उनकी पृथक गोरखालैंड राज्य की मांग मानेगी तथा उनकी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. गोरखालैंड की मांग को लेकर किए गए आंदोलन के दौरान झड़प में एक पुलिसकर्मी की मौत के बाद सितंबर 2017 में बिमल गुरुंग भूमिगत हो गए थे. तब उन पर आतंकवाद विरोधी कानून लगाया गया था. गोरखालैंड के लिए स्वायत्त परिषद की मांग तो ममता बनर्जी ने भी नहीं मानी थी, फिर भी गुरुंग उनसे हाथ मिलाने की बात कर रहे हैं. यह राजनीतिक अवसरवाद नहीं तो और क्या है?