चिकित्सा के जनक आयुर्वेद की क्षमता पर IMA को संदेह

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आयुष मंत्रालय के तहत आने वाली दि सेंट्रल काऊसिंल आफ इंडिया मेडिसिन (सीसीआईएम) (Central Council of Indian Medicine) की ओर से जारी अधिसूचना को केंद्र सरकार से हरी झंडी मिल गई है. इसके अनुसार आयुर्वेद (Ayurveda) के सर्जरी में स्नातकोत्तर (पीजी) करने वाले डाक्टरों को जनरल व आर्थोपीडिक सर्जरी के अलावा आंख, कान और गले की सर्जरी करने की भी अनुमति होगी. आयुर्वेद पीजी के छात्रों को ब्रेस्ट कैंसर की गांठों, अल्सर, मूत्र मार्ग के रोगों, ग्लूकोमां, मोतिया बिंद हटाने की सर्जरी का भी प्रशिक्षण व अधिकार दिया जाएगा.

एक ओर जहां सरकार के इस कदम की सराहना की जा रही है वहीं दूसरी ओर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन  Indian Medical Association (IMA) इस फैसले पर भड़क उठा है. उसने आयुर्वेदिक डाक्टरों को सर्जरी के लिए अयोग्य बताते हुए सीसीआईएम की कड़ी आलोचना की है तथा यह निर्णय वापस लेने की मांग की है. आईएमए ने कहा कि यह फैसला मेडिकल संस्थानों में चोर दरवाजे से एंट्री है. ऐसे में नीट जैसी परीक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाएगा. वास्तविकता यह है कि देश में मरीजों की बड़ी तादाद देखते हुए डाक्टरों की संख्या काफी कम है. एलोपैथी की तुलना में आयुर्वेद बहुत पुरानी चिकित्सा पद्धति है. इसमें भी सुश्रुत जैसे सर्जन हुए थे जो जटिलतम आपरेशन कर रोगी को स्वस्थ करते थे. सुश्रुत के पास ऐसे यंत्र थे जो खडे वाल के लंबाई में 3 टुकड़े कर सकते थे. एलोपेथी केवल तंत्र के लक्षणों को दबाती है लेकिन आयुर्वेद रोग या व्याधि का संपूर्ण उन्मूलन करता है.

धन्वंतरी, रिपोदाग, चरक जैसी विभूतियां आयुर्वेद का गौरव रही हैं. सर्जरी आयुर्वेद में भी है. बीएएमएस का अर्थ ही है बैचलर आफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी. जब वही छात्रा मेहनत से सर्जरी में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त कर लेगा तो आपरेशन क्यों नहीं कर सकता? आईएमए को लगता है कि ऐसी अनुमति दिए जाने से एमएस (मास्टर आफ सर्जरी) करने वाले एलोपैथ डाक्टरों के लिए प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो जाएगी. एलोपैथी वाले डाक्टर खुद को शुरु से ही अन्य चिकित्सा प्रणालियों से श्रेष्ठ बताते रहे हैं जबकि अनेक रोगों का इलाज एलोपैथी में भी नहीं है. आयुर्वेद वात, पित्त कफ जैसे लक्षणों व नाड़ी परीक्षा से रोगों का निदान करता है तथा एलोपैथी की तुलना में किफायती है. आयुर्वेद की क्षमता में संदेह करने की बजाय आईएमएम को समन्वय व सहयोग का रवैया अपनाना चाहिए क्योंकि मरीजों की बड़ी संख्या देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार आवश्यक है.