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    विश्व में विभिन्न चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं. सभी की अपनी-अपनी विशेषताएं हो सकती हैं परंतु अपनी पद्धति को सर्वश्रेष्ठ बताकर दूसरी पद्धति को नाकारा बताना कदापि उचित नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन की आपत्ति के बाद योग गुरु बाबा रामदेव ने एलोपैथी पर दिया गया अपना बयान वापस ले लिया. इसके पहले कोरोना महामारी के इस दौर में रामदेव ने दावा किया था कि ‘एलोपैथी मूर्खतापूर्ण विज्ञान है. भारत के औषधि महानियंत्रक से मंजूरी प्राप्त रेमडेसिविर, फेविफ्लू और अन्य दवाएं कोरोना के इलाज में नाकाम रही हैं.

    एलोपैथिक दवाओं के सेवन से लाखों मरीजों की मौत हो गई है.’ इस बयान से नाराज होकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने रामदेव को कानूनी नोटिस भिजवा दिया था. आईएमए ने कहा था कि रामदेव का बयान देश के सभी चिकित्सकों और उनके पेशे का अपमान है. स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसे गंभीरता से लेते हुए बाबा के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया और उन्हें इसे वापस लेने और आइंदा ऐसे बयानों से बचने को कहा. रामदेव को समझना चाहिए कि आयुर्वेद की बुनियाद नाड़ी शास्त्र तथा त्रिदोष अर्थात वात, पित्त, कफ से जुड़ी है जबकि इसमें बैक्टीरिया, वायरस आदि का कोई उल्लेख नहीं है जिन्हें कि एलोपैथी ने खोजा है. चेचक, पोलियो और टीबी के टीके एलोपैथी ने ही ईजाद किए हैं. एंटीबायोटिक दवाएं भी एलोपैथी की देन हैं. शल्यक्रिया में एलोपैथी बहुत आगे है. ईसीजी, एक्सरे, सीटी स्कैन, एमआरआई से रोगनिदान एलोपैथी में ही संभव है. लगभग 200 वर्ष के अनुसंधान से एलोपैथी अधिक प्रभावी साबित हुई है.

    इतने पर भी बिना सोचे-समझे एलोपैथी की आलोचना करना सर्वथा गलत है. संभव है कि आयुर्वेद, नेचुरोपैथी, होम्योपैथी, यूनानी चिकित्सा पद्धतियों की अपनी विशेषताएं हों लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि एलोपैथी को मूर्खतापूर्ण विज्ञान कह दिया जाए. जबसे बीजेपी केंद्र की सत्ता में आई है, हिंदूवादी ताकतें भोली-भाली अशिक्षित जनता को यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि भारत ही विश्वगुरु है और यहां की चिकित्सा पद्धति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रही है. गाय के गोबर व गोमूत्र से असाध्य रोगों की चिकित्सा की बात की जा रही है. ऐसे माहौल में ही रामदेव ने एलोपैथी के खिलाफ टिप्पणी कर डाली.