New Education Policy 2020: 6% of GDP will be spent on education, the maximum limit for fees will be fixed

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नई दिल्ली: देश के आधा दर्जन से अधिक राज्यों में माध्यमिक स्तर पर छात्रों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने यानी ‘ड्रॉपआउट’ की दर राष्ट्रीय औसत 12.6 प्रतिशत से अधिक है। इन राज्यों में बिहार, आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, कर्नाटक, मेघालय, पंजाब आदि शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इन राज्यों को ‘ड्रॉपआउट’ दर को कम करने के लिए विशेष कदम उठाने का सुझाव दिया है। समग्र शिक्षा कार्यक्रम पर शिक्षा मंत्रालय के तहत परियोजना मंजूरी बोर्ड (पीएबी) की वर्ष 2023-24 की कार्य योजना संबंधी बैठकों के कार्यवृति दस्तावेजों (मिनट्स) से यह जानकारी मिली है। ये बैठकें अलग-अलग राज्यों के साथ मार्च से मई 2023 के दौरान हुईं। 

सरकार नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लक्षित साल 2030 तक स्कूली शिक्षा के स्तर पर 100 प्रतिशत सकल नामांकन दर (जीईआर) हासिल करना चाहती है और बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ने को इसमें बाधा मान रही है। पीएबी की बैठक के दस्तावेज के अनुसार, वर्ष 2021-22 में बिहार में स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 20.46 प्रतिशत, गुजरात में 17.85 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 16.7 प्रतिशत, असम में 20.3 प्रतिशत, कर्नाटक 14.6 प्रतिशत, पंजाब में 17.2 प्रतिशत, मेघालय में 21.7 प्रतिशत दर्ज की गई। वहीं, इस अवधि में मध्य प्रदेश में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर 10.1 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 12.5 प्रतिशत और त्रिपुरा में 8.34 प्रतिशत दर्ज की गई । 

दस्तावेज के मुताबिक, संबंधित अवधि में दिल्ली में स्कूलों में प्राथमिक स्तर पर नामांकन में तीन प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जबकि माध्यमिक स्तर पर नामांकन में करीब पांच प्रतिशत की गिरावट आई। इसमें कहा गया कि दिल्ली में स्कूली शिक्षा के दायरे से बाहर काफी संख्या में छात्र हैं, ऐसे में शिक्षा की मुख्यधारा में वापस लाए गए छात्रों की संख्या के बारे में प्रदेश को ‘प्रबंध पोर्टल’ पर जानकारी अपलोड करनी चाहिए। बैठक में मंत्रालय ने कहा कि पश्चिम बंगाल में माध्यमिक स्कूली स्तर पर वर्ष 2020-21 की तुलना में 2021-22 में ड्रापआउट दर में काफी सुधार दर्ज किया गया, हालांकि राज्य को छात्रों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर को और कम करने के लिए पर्याप्त कदम उठाने चाहिए। दस्तावेज के अनुसार, महाराष्ट्र में माध्यमिक स्तर पर ड्रापआउट दर वर्ष 2020-21 के 11.2 प्रतिशत से बेहतर होकर वर्ष 2021-22 में 10.7 प्रतिशत दर्ज की गई। 

हालांकि यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि राज्य के पांच जिलों में ड्रापआउट दर 15 प्रतिशत या उससे अधिक है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में वार्षिक औसत ड्रापआउट दर 15 प्रतिशत से अधिक रही जिसमें बस्ती में 23.3 प्रतिशत, बदायूं (19.1) , इटावा (16.9), गाजीपुर (16.6) , एटा (16.2), महोबा (15.6), हरदोई (15.6) और आजमगढ़ में यह 15 प्रतिशत दर्ज की गई। दस्तावेज के अनुसार, राजस्थान में ड्रापआउट दर में सतत रूप से गिरावट दर्ज की गई। हालांकि, अनुसूचित जनजाति से संबंधित ड्रापआउट दर नौ प्रतिशत और मुस्लिम बच्चों (18 प्रतिशत) में माध्यमिक स्कूली स्तर पर यह अभी भी अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के पिछले वर्ष के एक सर्वेक्षण में लड़कियों के बीच में स्कूल छोड़ने के कारणों में कहा गया था कि 33 प्रतिशत लड़कियों की पढ़ाई घरेलू कार्य करने के कारण छूट गई। इसके अनुसार, कई जगहों पर यह भी पाया गया कि बच्चों ने स्कूल छोड़ने के बाद परिजनों के साथ मजदूरी या लोगों के घरों में सफाई करने का काम शुरू कर दिया।(एजेंसी)