सिनेमा का यह दौर वास्तव में एक क्रांतिकारी युग है जहां दर्शक सिर्फ मसाला मनोरंजन से ऊपर उठकर सामाजिक मुद्दों वाली फिल्मों को भी देखना पसन्द कर रहे हैं. इस सप्ताह 13 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ यूवी फिल्म्स के बैनर तले प्रदीप रंगवानी द्वारा निर्मित फिल्म ‘गुठली लड्डू’ जातपात, भेदभाव जैसे गंभीर सामाजिक विषय पर आधारित है जो सबके लिए शिक्षा के समान अधिकार के मुद्दे को भी मनोरंजक ढंग से दर्शकों के रूबरू प्रस्तुत करती है.
फिल्म: गुठली लड्डू
कास्ट: संजय मिश्रा, धनय सेठ , सुब्रत दत्ता, कल्याणी मुले , मास्टर हीत, कंचन पगारे, अर्चना पटेल, आरिफ शहडोली, संजय सोनू
निर्माता: प्रदीप रंगवानी
निर्देशक: इशरत आर खान
रनटाइम: 1 घन्टा 46 मिनट
रेटिंग: 3 स्टार्स
कहानी: फिल्म की कहानी एक गरीब सफाईकर्मी के बेटे गुठली के इर्दगिर्द घूमती है जिसका एक ही सपना है स्कूल जा कर खूब पढ़ाई करना. लेकिन इस रास्ते मे उसकी सबसे बड़ी मुश्किल बन जाती है उनकी जाति. ‘गुठली लडडू’ दरअसल दो करीबी दोस्त रहते हैं जो निचली जाति के हैं. लड्डू जहां अपने साधारण जीवन से संतुष्ट है और अपने पिता की इस बात को मानता है कि वे अपना मुकद्दर नहीं बदल सकते. लेकिन गुठली चीज़ों को अलग ढंग से देखता है. गुठली का मानना है कि शिक्षा बेहतर भविष्य की कुंजी है. उसके पिता मंगरू की भी यही सोच है, और इस दिशा में उससे भी जो हो सकता है वह करता है ताकि गुठली को अपने सपनों को साकार करने का अवसर मिले. फिल्म की स्टोरीलाइन गुठली के स्कूल जाने की इच्छा के चारों ओर घूमती है. स्कूल के प्रिंसिपल (संजय मिश्रा) गुठली के संकल्प और उसके ख्वाबों को देखते हैं और उसके सपनों को समझते हैं. वह गुठली के सपनों में अपनी झलक देखते हैं. वे एक खास बेनाम से रिश्ता साझा करते हैं, लेकिन समाज का भेदभाव आड़े आ जाता है. तमाम परेशानियों के बावजूद, गुठली को आशा की एक किरण दिखाई देती है. गुठली के साथ आगे क्या होगा, दर्शक उसके भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाते हैं.
अभिनय: एक्टिंग की बात करें तो अभिनेता संजय मिश्रा अपने किरदार में पूरी तरह से ढले हुए नज़र आते हैं. मास्टर धनय ने भी अपनी अदाकारी से प्रभावित किया है. फिल्म के धनय बहुत ही मासूमियत से बड़ी बात बड़ी सामजिक बातें कहते हैं . फिल्म का यह नाटकीय दृश्य बहुत ही सहज और स्वाभाविक लगता हैं . गुठली के पिता के रूप में मंगरू की भूमिका में सुब्रत दत्ता ने बहुत ही सराहनीय अभिनय किया हैं. अपने बच्चे के सपने को एक असहाय पिता अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा उद्देश्य बना लेता हैं यह मंगरू के किरदार में सुब्रत दत्ता बहुत शानदार तरीके से करते हैं . गुठली की माँ की भूमिका में कल्याणी मुले और लड्डू के पिता के रूप में कंचन पगारें का अभिनय भी सराहनीय हैं।
फाइनल टेक: फिल्म काफी गंभीर सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती है और शिक्षा के अधिकार के महत्व पर जोर देती है।दरअसल यह केवल एक सिनेमा या एक कथा नहीं है; यह एक आईना है जो हमें उन लोगों की चुनौतियों और सपनों को दिखाता है जो बेहतर जीवन के लिए लगातार कोशिश करते हैं। जहां तक निर्देशन की बात है इशरत आर खान ने एक असरदार सिनेमा बनाया है। फिल्म आपको झिंझोड़ कर रख देती है कि क्या इस युग मे भी जातपात, भेदभाव जैसी बीमारियों का वजूद है? और सबके लिए समान शिक्षा का मौका मात्र एक नारा है। निर्माता प्रदीप रंगवानी की साहस सराहनीय है कि समाज के ऐसे गंभीर विषय पर उन्होंने सिनेमा बनाने की बहादुरी दिखाई है।