लकीरें (Photo Credits: Instagram)
लकीरें (Photo Credits: Instagram)

क्या वैवाहिक जीवन में पत्नी से जबर्दस्ती या उसकी मर्जी के बिना संबंध बनाना रेप या बलात्कार कहा जाएगा? लंबे समय से इसे अपराध घोषित करने की मांग की जा रही है। इसी मैरिटल रेप और घरेलू हिंसा जैसे संवेदनशील विषय पर इस सप्ताह एक कोर्ट रूम ड्रामा रिलीज हुई है जिसका नाम है ‘लकीरें।‘ फिल्म में आशुतोष राणा, गौरव चोपड़ा, बिदिता बाग और टिया बाजपेयी मुख्य भूमिका में हैं।

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फिल्म: लकीरें

कास्ट: आशुतोष राणा, बिदिता बाग, गौरव चोपड़ा, टिया बाजपेयी, मुकेश भट्ट, राजेश जैस, अदिति दीक्षित, कासिम, अमन वर्मा, मीनाक्षी आर्या, सहर्ष शुक्ला

डायरेक्टर: दुर्गेश पाठक

प्रोड्यूसर: नवल के टण्डन, कविता पाठक, दिनेश कुमार

रनटाइम: 123 मिनट

रेटिंग्स: 3 स्टार्स

कहानी: ये फिल्म कहानी है काव्या नाम की एक किरदार की जिसका दर्द इन संवादों में झलकता है ‘सबकुछ होता चला गया और हमने होने दिया, हमने यही मान लिया यही सही है इसे हो जाने दो।‘ लकीरें टिया बाजपेयी द्वारा अभिनीत काव्या की कहानी कहती है, जो अपने पति प्रोफेसर विवेक अग्निहोत्री (गौरव चोपड़ा) पर बलात्कार का मुकदमा दायर करती है और न्याय की मांग करती है। यह फिल्म काव्या की दर्द भरी दास्तान, उसकी भावनात्मक यात्रा को उजागर करती है। बिदिता बाग ने वकील गीता विश्वास का किरदार मज़बूती के साथ जिया है जो बलात्कार की पीड़िता ठहराते समय विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कानूनी भेदभाव को चुनौती देती है। उधर अदालत में अभिनेता आशुतोष राणा वकील दुधारी सिंह का किरदार निभा रहे हैं, जो काव्या के पति की वकालत करते हैं। शुद्ध हिंदी में उनके संवाद बोलने का अंदाज़ प्रभावित करता है। देखा जाए  तो फिल्म इन्हीं चार किरदारों के इर्दगिर्द घूमती है काव्या, उसके पति विवेक दामोदर अग्निहोत्री, वकील गीता और दुधारी सिंह।

अभिनय: काव्या के रोल को टिया बाजपेयी ने बेहतरीन ढंग से निभाया है। विवेक अग्निहोत्री की भूमिका में गौरव चोपड़ा ने खुद को बखूबी चरित्र में उतारा है। अभिनेत्री बिदिता बाग ने एडवोकेट गीता विश्वास के किरदार को जीवंत कर दिया है। आशुतोष राणा ने भी अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है। दरअसल यह सिनेमा वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता देने की वकालत करती नज़र आती है।

फाइनल टेक: फिल्म में एक बेहद परेशान करने वाला मुद्दा उठाया गया है जिसे अक्सर नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। शादी के बाद सहमति से सम्बंध बनाने की बात सही है लेकिन पति अगर पत्नी की मर्जी के बिना सम्बंध बनाता है तो वह ज़ुल्म है, अपराध है और औरत इस बारे में आवाज़ उठा सकती है। हालांकि इस मामले में फैली सामाजिक गलत धारणाओं के कारण इस बात को नजरअंदाज कर दिया जाता है। अदालत के कई सीन वास्तव मे बहुत ही अच्छे हैं। फिल्म का विषय बहुत ही भावनात्मक और दर्द भरा है। निर्देशक ने अपने कुशल निर्देशन से फिल्म को दिल को छू लेने वाली बना दिया है। फिल्म का वितरण रिलायंस एंटरटेनमेंट द्वारा किया जा रहा है, जो अच्छी बात है और इस प्रकार यह सिनेमा अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचेगा और सबसे बड़ी बात वो बात पहुंचेगी जो हर व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। जब काव्या अपने पिताजी से यह बात कहती है ‘जितना दर्द है चेहरा उतना बता नहीं पा रहा है पापा।‘ तो सिनेमा देखने वालों की पलकें भी नम हो जाती हैं।