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नयी दिल्ली. भारत (India) आगामी 26 जनवरी को अपना 72वाँ गणतंत्र दिवस (Republic Day) बनाएगा। यूँ तो हम सबने गणतंत्र दिवस की परेड (Republic Day Parade) हम लोगो ने देखी है लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि कैसा रहा होगा हमारे देश का पहला गणतंत्र दिवस और क्या है हमारे देश के गणतंत्र की कहानी। आइये जानते हैं इन सबके बारे में।

वैसे तो भारत की आजादी की लड़ाई तो काफी सालों पहले से ही शुरू थी लेकिन भारत की गणतंत्र की कहानी शुरू होती है 31 दिसंबर 1929 से जब मध्‍य रात्रि में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र में गणतंत्र राष्‍ट्र के लिए बीजारोपण किये गए थे। यह ख़ास सत्र पंडित जवाहर लाल नेहरु की अध्‍यक्षता में आयोजि‍त हुआ था। उस बैठक में उपस्थित सभी लोगों ने 26 जनवरी को “स्‍वतंत्रता दिवस” के रूप में अंकित करने की बड़ी शपथ ली थी ताकि ब्रिटिश राज से पूर्ण स्‍वतंत्रता के महान सपने को साकार किया जा सके। इससत्र में नागरिक अवज्ञा आंदोलन का मार्ग प्रशस्‍त हुआ। यहाँ यह ऐतिहासिक निर्णय लिया गया कि 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्‍वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। पूरे भारत से अनेक भारतीय राजनैतिक दलों और भारतीय क्रांतिकारियों ने सम्‍मान और गर्व सहित इस दिन को मनाने के प्रति अपनी एकता दर्शायी थी।

इसके बाद अगर हम इतिहास को देखें तो भारतीय संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को की गई थी, जिसका गठन भारतीय नेताओं और ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के बीच हुई बातचीत और चर्चा के परिणाम स्‍वरूप ही हुआ था। इस सभा का मुख्य उद्देश्‍य भारत को एक संविधान प्रदान करना था जो दीर्घ अवधि प्रयोजन पूरे करेगा और इसलिए प्रस्‍तावित संविधान के विभिन्‍न पक्षों पर गहराई से अनुसंधान करने के लिए अनेक समितियों की नियुक्ति भी की गई थी। इसके बाद अनेक सिफारिशों पर चर्चा, वादविवाद और भारतीय संविधान पर अंतिम रूप देने से पहले कई बार संशोधन के 3 वर्ष बाद यानी 26 नवंबर 1949 को इसे आधिकारिक रूप से अपना लिया गया।

जब भारत 15 अगस्‍त 1947 को एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र बना। इसके बाद 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान प्रभावी हुआ। यही संविधान भारत के नागरिकों को अपनी सरकार चुनकर स्‍वयं अपना शासन चलाने का अधिकार देता है। इसके लिए डॉ। राजेन्‍द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति के रूप में शपथ ली थी  और इसके बाद राष्‍ट्रपति का काफिला 5 मील की दूरी पर स्थित इर्विन स्‍टेडियम पहुंचा जहां उन्‍होंने राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया था।

तब से ही हर वर्ष इस ऐतिहासिक दिवस, 26 जनवरी को पूरे देश में एक त्‍यौहार की तरह और राष्‍ट्रीय भावना से ओतप्रोत होकर मनाया जाता है। इस दिन का एक अपना अलग किन्तु बड़ा महत्‍व है जब भारतीय संविधान को अपनाया गया था। इस पावन अवसर पर स्‍वतंत्र भारत के प्रथम राष्‍ट्रपति डॉ। राजेन्‍द्र प्रसाद ने भारत के नागरिकों को अपने विशेष सन्देश में कहा कि, “हमें स्‍वयं को आज के दिन एक शांतिपूर्ण किंतु एक ऐसे सपने को साकार करने के प्रति पुन: समर्पित करना चाहिए, जिसने हमारे राष्‍ट्र पिता और स्‍वतंत्रता संग्राम के अनेक नेताओं और सैनिकों को अपने देश में एक वर्गहीन, सहकारी, मुक्‍त और प्रसन्‍नचित्त समाज की स्‍थापना के सपने को साकार करने की प्रेरणा दी। हमें इसे दिन यह याद रखना चाहिए कि आज का दिन आनन्‍द मनाने की तुलना में समर्पण का दिन है – श्रमिकों और कामगारों परिश्रमियों और विचारकों को पूरी तरह से स्‍वतंत्र, प्रसन्‍न और सांस्‍कृतिक बनाने के भव्‍य कार्य के प्रति समर्पण करने का दिन है।”

क्या हैं संविधान की वो खास बातें, जो हर भारतीय को पता होनी चाहिए:

  • 395 अनुच्‍छेदों और 8 अनुसूचियों के साथ भारतीय संविधान आज भी दुनिया में सबसे बड़ा लिखित संविधान है।
  • हमारे संविधान में 465 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं। ये 22 भागों में विभाजित है।
  • हमारे संविधान में साफ निहित है कि भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा। यह न किसी धर्म को बढ़ावा देता है और ना ही किसी से भेदभाव करता है।
  • संविधान हस्ताक्षर वाले दिन बारिश हो रही थी। इसे सदन में बैठे सदस्यों ने इसे बहुत ही शुभ शगुन माना था।
  • हमारे भारतीय संविधान की वास्तविक प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा अपने हाथों से लिखी गई थी। इसे इटैलिक स्टाइल में काफी खूबसूरती से लिखा गया था जबकि हर पन्ने को शांतिनिकेतन के कलाकारों ने सजाया भी था।
  • हाथों से लिखे इस संविधान पर 284 संसद सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर किये थी। जिसमे 15 महिला सदस्य भी थीं।
  • संविधान की आत्मा कहे जाने वाले Preamble यानी प्रस्तावना को अमेरिकी संविधान से लिया गया था। अगर हमे पढ़ें तो हम पाएंगे कि संविधान में प्रस्तावना की शुरुआत ‘We the people’ से ही होती है।
  • 26 जनवरी 1950 को ही अशोक चक्र को बतौर राष्ट्रीय चिन्ह स्वीकार किया गया था।
  • PM नरेंद्र मोदी ने अधिसूचना जारी कर 19 नवंबर 2015 को ये घोषित किया था कि 26 नवंबर को देश संविधान दिवस मनाएगा। 

क्या है मौलिक अधिकार और उनका चरित्र: 

गौरतलब है कि मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को स्वयं ही प्रदान किए जाते हैं। इनमें कोई भी राज्य किसी भी तरह का द्वारा हस्तक्षेप कर सकता। वहीं इन अधिकारों को मौलिक भी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्हे हमारे देश के संविधान में स्थान दिया गया है। इसमें ख़ास बात यह है कि संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें और कोई भी बदलाव नहीं हो सकता है। ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के प्रत्यक्ष या परोक्ष विकास हेतु मूलरूप मेंही  आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। इन अधिकारों का उल्लंघन किसी भी कीमत नही किया जा सकता। यही नहीं हमारे मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं।

देखा  जाए तो एक ब्रिटिश उप निवेश से एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में हमारे देश भारत का निर्माण होना एक बड़ी ऐतिहासिक घटना थी। इस महान राष्ट्र के लिए साल 1930 में भारतीय गणतंत्र एक सपने के रूप में निरुपित हुआ और फिर साल 1950 में यह महान स्वप्न साकार भी हुआ। आज इस पथ पर आगे बढ़ते हुए देश अपना 72वाँ गणतंत्र दिवस मनाने वाला है और एक प्रकार से यह सन्देश देने वाला है कि, विश्व के इस धरातल पर भारत रूपी सूर्य हमेशा ही दीप्तमान रहेगा।

                                                           “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”