Republic Day 2024, Andaman and Nicobar, Paramveer Chakra
परमवीरों को सम्मान

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नई दिल्ली: 26 जनवरी को 75वां गणतंत्र दिवस (75th Republic Day 2024) मनाया जाने वाला है वहीं पर इस मौके पर तैयारियों का दौर जारी है। ऐसे ही देश के नाम कई किस्से सामने आते रहे है क्या आपको पता है अंडमान-निकोबार द्वीप के 21 बड़े द्वीपों का नाम 21 परमवीरों पर रखा गया है। आखिर नाम को रखने के पीछे कौन सी कहानी आइए जानते हैं…

पहले नहीं था इन द्वीपों का नाम

अंडमान निकोबार के इन 21 बड़े द्वीपों के पहले कोई नाम नहीं थे लेकिन 21 परमवीरों पर द्वीप के नाम रखे गए है। ताकि देश को उन वीरों की गाथाएं और परामक्रम के बारे में जानकारी मिल सकें। यह नामकरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साल पहले किया था। इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “अंडमान की ये धरती वो धरती है जहां पहली बार तिरंगा फहराया गया था। जहां पहली बार स्वतंत्र भारत की सरकार बनी।

आज नेताजी सुभाष बोस की जयंती है। देश इस दिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाता है। वीर सावरकर और देश के लिए लड़ने वाले कई अन्य नायकों को अंडमान की इस भूमि में कैद कर दिया गया था। 4-5 साल पहले जब मैं पोर्ट ब्लेयर गया था, तब मैंने वहां के 3 मुख्य द्वीपों को भारतीय नाम समर्पित किए थे।”

जानिए इन वीरों की गाथाएं

21 द्वीपों के लिए 21 परमवीर चक्र विजेताओं के नामों को तय किया गया था। देश में इतिहास के पन्नों पर इन परमवीरों का साहस और पराक्रम दर्ज है जिसे हर कोई जानता है। आइए जानते है 21 वीरों की गाथाएं-

1.मेजर सोमनाथ शर्मा

इन परमवीरों में सबसे पहला नाम मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम का आता है। जिन्होंने जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान के घुसपैठियों को धूल चटाते हुए शहादत को प्राप्त किया था। मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपने साहस से मौत के कई घंटों बाद भी लड़ने के लिए प्रेरित किया। मेजर सोमनाथ शर्मा के पराक्रम को याद किया जाता है।

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मेजर सोमनाथ

 

2-नायक जदुनाथ सिंह

देश के परमवीरों में दूसरे विजेता नायक जदुनाथ सिंह का नाम आता है। जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद 1948 में दुश्मनों को जम्मू-कश्मीर में मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहादत को प्राप्त किया था। दुश्मन सैनिकों ने उनकी चौकी पर हमला बोल दिया। वह और उनकी टुकड़ी दुश्मन द्वारा लगातार किए गए तीन हमलों से अपनी चौकी को बचाने में कामयाब रहे। अपनी जान की परवाह किए बिना ही इस नायक ने अपना अदम्य साहस दिखाय़ा था जिसे आज हर कोई याद करता है।

3- सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे

देश के परवीरों में सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा का नाम आता है। जिन्हे लेकर 8 अप्रैल 1948 का दिन याद आता है जब बॉम्बे सैपर्स के सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे नौशेरा-राजौरी रोड के माइल 26 पर बारूदी सुरंगों और सड़क पर कमान संभाले हुए थे उसी दौरान दुश्मनों ने हमला कर दिया था। राघोबा ने अपना पराक्रम दिखाते हुए दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। उन्हें दुश्मनों के सामने वीरता के साथ लड़ने और अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र मिला।

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मेजर राघोबा

4- कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह

अंडमान द्वीपों के नामों में कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह का नाम गिना जाता है। जिन्होंने 18 जुलाई 1948 को जम्मू कश्मीर के तिथवाल में दुश्मनों के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया था। यहां पर गोलीबारी के दौरान घायल होने के बाद भी रेंगते हुए मेजर पीरू सिंह ने लड़ाई की। इसे लेकर ही उनके साहस के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया।

5- लांस नायक करम सिंह

परमवीरों में शामिल लांस नायक करम सिंह का साहस इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। 13 अक्टूबर 1948 को सिख रेजीमेंट के लांस नायक करम सिंह ने जम्मू-कश्मीर की रिचमर गली में हुए दुश्मनों के हमले का जवाब दिया। अपने साथियों को प्रोत्साहित करते हुए इस वीर ने दुश्मनों को मजबूर किया। कठिन परिस्थितियों में उनके साहस के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया।

6- कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया

अंडमान निकोबार के द्वीप समूहों में कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया का नाम आता है। जिनकी पीछे की कहानी है कि 5 दिसंबर 1961 को 3/1 गोरखा राइफल्स को संयुक्त राष्ट्र संघ मिशन कार्य में सड़क के अवरोधों को हटाया जा रहा था। उसी दौरान 40 दुश्मनों के हमले पर गोलीबारी करते हुए मुंहतोड़ जवाब दिया। अदम्य साहस के बल पर कैप्टन ने एलिजाबेथविले में स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय को बचा लिया लेकिन स्वयं वीर गति को प्राप्त हो गए।

7- मेजर धन सिंह थापा

परमवीरों में मेजर धन सिंह थापा का नाम आता है जो 1/8 गोरखा राइफल्स के वीर रहे। वे लद्दाख में अग्रिम चौकी की कमान संभाले रहे थे और 20 अक्तूबर 1962  की घटना में दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। तीन बार के हमले में मेजर धन सिंह नहीं रूके और उन्होंने साहस के बल पर जीत हासिल की।

8- सूबेदार जोगिंदर सिंह

परमवीर चक्र से सम्मानित वीरों में सूबेदार जोगिंदर सिंह का नाम सामने आता है। जिन्होंने 23 अक्टूबर 1962 को भारत-चीन के युद्ध के दौरान दुश्मनों का डटकर सामना किया। अपने साथियों को प्रेरित करते हुए पराक्रम दिखाया। 

9- मेजर शैतान सिंह

देश के परमवीरों में मेजर शैतान सिंह का नाम गिना जाता है वे जम्मू कश्मीर के लद्दाख सेक्टर में में लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर रेजांग ला में कुमाऊं रेजिमेंट की तेरहवीं बटालियन की एक कंपनी की कमान संभाले हुए थे। 18 नवंबर 1962 को चीन के दुश्मनों को छक्के छूटा दिए। इस अदम्य साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया था।

10- लेफ्टिनेंट कर्नल ए बी तारापोर

देश के परमवीरों में मेजर शैतान सिंह का नाम गिना जाता है।1965 में लेफ्टिनेंट कर्नल अर्देशीर बुरजोरजी तारापोर भारत-पाक युद्ध के दौरान स्यालकोट सेक्टर में पूना हॉर्स रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर थे। उसी दौरान 11 सितंबर 1965 को 17 पूना हॉर्स पर दुश्मनों के हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया।

11- सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद

सी क्यू एम एच अब्दुल हमीद 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान खेम करन सेक्टर में चौथी ग्रेनेडियर्स में सेवारत थे। 10 सितंबर 1965 को पाकिस्तानी सेना ने पैटन टैंकों के साथ खेम करन सेक्टर पर हमला कर दिया। बिना किसी डर के अपने स्थान पर डटे रहे और गोलाबारी करते रहे तथा अपनी टुकड़ी को प्रेरित करते रहे। उनके अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया।

12- लांस नायक अलबर्ट एक्का

लांस नायक अलबर्ट एक्का चौदहवीं गार्ड्स की अग्रिम कंपनी में तैनात थे। चार दिसंबर 1971 की बात है लांस नायक एक्का ने देखा कि दुश्मन की मशीनगन की गोलीबारी से उनकी कंपनी को बहुत नुकसान हो रहा है। इसके खिलाफ दुश्मनों पर हमला कर दिया। पराक्रम के बल पर अल्बर्ट एक्का ने दुश्मनों को धूल चटाई। 

13- फ्लाइंग अफसर निर्मल जीत सिंह सेखों

18वीं स्क्वाड्रन के फ्लाइंग अफसर निर्मल जीत सिंह सेखों, जो एक लड़ाकू विमान पायलट थे उनका नाम परमवीरों में गिना जाता है।14 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान दुश्मन के छह सेबर वायुयानों ने श्रीनगर एअरफील्ड पर भारी गोलाबारी की। जिसका मुंहतोड़ जवाब दिया था। 

14-  मेजर होशियार सिंह

मेजर होशियार सिंह का नाम परमवीरों में गिना जाता है। 15 दिसंबर 1971 को भारत-पाक युद्ध के दौरान मेजर होशियार सिंह तीसरी ग्रेनेडियर्स की कंपनी की कमान संभाले हुए थे। दुश्मन ने जवाबी कार्रवाई मे एक के बाद एक कई आक्रमण किए। घायल होने के बावजूद दुश्मनों का मुंहतोड़ जवाब दिया औऱ वीरगति को प्राप्त किया।

15- सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल

परमवीर चक्र के विजेताओं में सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का नाम सामने आता है। बात 16 दिसंबर 1971 की है जब भारत-पाक युद्ध के दौरान दुश्मनों के मजबूत ठिकानों को तोड़ते हुए जवाब दिया। इसमें वीरगति को प्राप्त करने से पहले शत्रुओं के टैंक को ध्वस्त किया था।

16-  नायब सूबेदार बाना सिंह

26 जून 1987 को जम्मू एवं कश्मीर लाइट इंफेंट्री की आठवीं बटालियन के नायब सूबेदार बाना सिंह स्वेच्छा से उस कार्यबल में शामिल हुए जिसे 21,000 फीट की ऊंचाई पर दुश्मन द्वारा सियाचिन ग्लेशियर में पाक सेना के कब्जे में कैद चौकी को छुड़ाने का कार्य सौंपा गया था। सियाचिन की भयंकर जलवायु के साथ तीव्र बर्फीले तूफान, -50 डिग्री सेल्सियस के लगभग तापमान और ऑक्सीजन की कमी जीवित रहने के लिए सबसे बड़ा खतरा थे।

नायब सूबेदार बाना सिंह और उनके जवानों ने शून्य दृश्यता की स्थितियों में जोखिमपूर्ण मार्ग से बर्फ की 457 मीटर ऊंची दीवार पर चढ़ाई की, चोटी पर पहुंचे और हथगोले फेंककर दुश्मन के बंकर को ध्वस्त कर दिया। वह और उनके दल ने संगीनों के साथ आक्रमण किया और कुछ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया जबकि बाकियों ने डर कर चोटी से छलांग लगा ली। 

17- मेजर रामास्वामी परमेश्वरन

25 नवंबर 1987 को ऑपरेशन पवन के दौरान जब महार रेजिमेंट की आठवीं बटालियन के मेजर रामास्वामी परमेश्वरन श्रीलंका में एक तलाशी अभियान से लौट रहे थे। इसी दौरान परमेश्वरन के सैन्य दल पर आतंकवादियों ने घात लगाकर आक्रमण किया। धैर्य और सूझ-बूझ से उन्होंने आतंकवादियों को पीछे से घेरा और उन पर हमला कर दिया जिससे आतंकी पूरी तरह से स्तब्ध रह गए।

आमने-सामने की लड़ाई में एक आतंकवादी ने उनके सीने में गोली मार दी। निडर होकर मेजर परमेश्वरन ने आतंकवादी से राइफल छीन ली और उसे मौत के घाट उतार दिया। गंभीर रूप से घायल अवस्था में भी वे निरंतर आदेश देते रहे और अपनी अंतिम सांस तक अपने साथियों को प्रेरित करते रहे। उनकी इस वीरतापूर्ण कार्रवाई के परिणाम स्वरूप पांच आतंकवादी मारे गए और भारी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद किए गए। 

18- लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे

आपरेशन विजय के दौरान 11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन के लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे को जम्मू कश्मीर के बटालिक में खालूबार रिज को दुश्मनों से खाली कराने का काम सौंपा गया। तीन जुलाई 1999 को कर चार सैनिकों को मार डाला और दो बंकर तबाह कर दिए। कंधे और पैरों में जख्म होने के बावजूद वे पहले बंकर के निकट पहुंचे और भीषण मुठभेड़ में दो अन्य सैनिकों को मारकर बंकर खाली करा दिया। मस्तक पर प्राणघातक जख्म लगने से पहले एक के बाद एक बंकर पर कब्जा करने में वह अपने दल का नेतृत्व करते रहे। उनके अदम्य साहस से प्रोत्साहित होकर उनके सैनिकों ने दुश्मन पर हमला जारी रखा और अंततः पोस्ट पर कब्जा कर लिया। 

19- ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव

आपरेशन विजय के दौरान अठारहवीं ग्रेनेडियर्स के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव घातक प्लाटून के सदस्य थे। इस प्लाटून को जम्मू कश्मीर के द्रास में टाइगर हिल टॉप पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था। तीन जुलाई 1999 को दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। उनके शौर्यपूर्ण कारनामे से प्रेरित होकर प्लाटून को नया साहस मिला तथा उसने अन्य ठिकानों पर हमला कर दिया और अंततः टाइगर हिल टॉप पर वापस कब्जा कर लिया। 

20- राइफलमैन संजय कुमार

राइफलमैन संजय कुमार ने ऑपरेशन विजय के दौरानजम्मू-कश्मीर की मुशकोह घाटी में खड़ी चट्टान क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए 13 JAK RIF की एक कंपनी के प्रमुख स्काउट थे। चार जुलाई 1999 को चट्टान पर चढ़ने के बाद, वह एक बंकर से दुश्मन की गोलाबारी राइफलमैन संजय कुमार ने यूएमजी को उठाया और भाग रहे दुश्मन को मार गिराया। उनकी बहादुरी भरी कार्रवाई ने उनके साथियों को दुश्मन पर हमला करने और ऊंची चोटी पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया। 

21-  कैप्टन विक्रम बत्रा

आपरेशन विजय के दौरान 13 जैक राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा को प्वाइंट 5140 पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। दस्ते का नेतृत्व करते हुए उन्होंने निडरतापूर्वक आमने-सामने की लड़ाई मे चार शत्रु सैनिकों को मार गिराया। सात जुलाई 1999 को उनकी कंपनी को प्वाइंट 4875 पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया। आमने-सामने की भीषण मुठभेड़ में उन्होंने पांच शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। गंभीर रूप से जख्मी हो जाने के बावजूद, उन्होंने जवाबी आक्रमण मे अपने सैनिकों का नेतृत्व किया।