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सांकेतिक तस्वीर

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नई दिल्ली: जहाँ एक तरफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) ने इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल (Indraprastha Apollo Hospital) के खिलाफ ‘किडनी के बदले नकदी’ (Kidney For Cash) घोटाले के आरोपों की जांच के आदेश दे दिए हैं।

वहीं इस बाबत NOTTO के निदेशक डॉ. अनिल कुमार ने दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) को पत्र लिखकर मामले की जांच कराने, मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओटीए) 1994 के प्रावधानों के अनुसार उचित कार्रवाई करने और एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

जानकारी दें कि एक प्रमुख निजी मीडिया और ‘बहुचर्चित’ अखबार द्वारा की गई एक जांच से पता चलाकि अपोलो हॉस्पिटल्स श्रृंखला कथित तौर पर एक अंतरराष्ट्रीय ‘कैश फॉर किडनी’ रैकेट में संलिप्त है, जिसमें म्यांमार के गरीब लोगों को लाभ के लिए अपनी किडनी बेचने का लालच दिया जाता है।

इस अस्पताल समूह ने बीते मंगलवार 5 दिसंबर को आरोपों का जोरदार खंडन किया और कहा कि वे “बिल्कुल झूठे, गलत जानकारी वाले और भ्रामक” थे। इस रिपोर्ट की 5 बड़ी बातों पर डालें एक नजर 

क्या है ‘कैश फॉर किडनी’ रैकेट का मायाजाल?

इस रिपोर्ट से पता चला है कि म्यांमार के गरीब युवा ग्रामीणों को अपोलो के दिल्ली अस्पताल में ले जाया जाता है और दुनिया भर के अमीर मरीजों को इनके द्वारा किडनी दान करने के लिए भुगतान किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार रैकेट बाकायदा “पहचान पत्र और अन्य दस्तावेजों की कथित जालसाजी और दाताओं को भावी मरीजों के रिश्तेदारों के रूप में पेश करने के लिए झूठी ‘पारिवारिक’ तस्वीरों का भी इस्तेमाल कर रहा है। गौरतलब है कि भारतीय और म्यांमार के कानूनों के तहत, सामान्य परिस्थितियों में कोई मरीज किसी अजनबी से अंगदान प्राप्त नहीं कर सकता है।

मरीज़ों को कैसे मिलते हैं ‘किडनी डोनर’?

इस रिपोर्ट के अनुसार इस प्रमुख अखबार के एक रिपोर्टर ने यहां खुद को एक बीमार के रिश्तेदार के रूप में पेश किया, जिसे तत्काल किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता थी, लेकिन परिवार का कोई भी सदस्य दान करने में सक्षम नहीं था। बाद में इस रिपोर्टर ने अपोलो के म्यांमार ‘ऑफिस’ से संपर्क किया, और उसे बताया गया कि “उन्हें किडनी दान करने के लिए एक अजनबी को बुलाया जाएगा।” यह बात हैरान करने वाली थी

इसके बाद अपोलो एजेंट ने रिपोर्टर को 27 वर्षीय म्यांमार के व्यक्ति से संपर्क कराया, जिसने कहा कि उसे अपनी किडनी बेचने की जरूरत है क्योंकि उसके बुजुर्ग माता-पिता “अच्छी आर्थिक  स्थिति में नहीं हैं”। रिपोर्टर को ताया गया कि एक मरीज अपना दाता चुन सकता है और फिर उस व्यक्ति को भुगतान की व्यवस्था भी कर सकता है। इस प्रकार से ‘किडनी डोनर’ का स्वांग रचा गया.

‘किडनी’ के इस ‘गोरख धंधे’ में कितना होता है खर्चा?

बाद में अपोलो के म्यांमार ऑपरेशन के प्रमुख ने इस अंडरकवर रिपोर्टर को “अपोलो अस्पताल के ही दस्तावेज़” दिए। इसमें किडनी प्रत्यारोपण के संबंध में कई खर्चों का उल्लेख दिखा, जैसे एक पारिवारिक व्यक्ति या रिश्र्तेदार को तैयार करने (33,000 रुपये) से लेकर उड़ान (21,000 रुपये) और “मेडिकल बोर्ड के लिए पंजीकरण” (16,700 रुपये) तक शामिल था।

‘अपोलो’ के इस दस्तावेज़ के अनुसार किसी मरीज को कुल मिलाकर (1,79,500 रुपये) तक खर्च होने की उम्मीद हो सकती है। हालाँकि, इसमें दानकर्ता को दिया गया पैसा शामिल नहीं था, जो ज्यादातर मामलों में 70 या 80 लाख के आसपास भी जा सकता है।

कैसे हो रहा ‘सिस्टम’ की आड़ में पूरा खेल ?

इसके बाद एक बार अग्रिम ‘कैश’ भुगतान हो जाने पर, दानकर्ता को भारत भेजा जाता है। फिर व्यक्ति, रोगी के साथ, साक्षात्कार के लिए प्रत्यारोपण प्राधिकरण समिति के सामने भी पेश होता है।यह समिति फिर प्रस्तुत दस्तावेजों की जरुरी समीक्षा और किडनी प्राप्तकर्ता-दाता के बीच संबंधों की पुष्टि करने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है।

इसमें एक केंद्र सरकार का अधिकारी, एक राज्य सरकार का अधिकारी, दो सेवानिवृत्त IAS अधिकारी और दो अस्पताल सलाहकार भी शामिल हैं, जो अस्पताल के पेरोल पर नहीं होते हुए भी डॉक्टर के रूप में वहां नियमित अभ्यास करते हैं। हालाँकि, इस पर अपोलो के म्यांमार एजेंटों में से एक ने इस ‘रिपोर्टर’ को साफ़ बताया कि यह समिति दरअसल “सिर्फ एक दिखावा” है और रोगी और दाता के बीच संबंधों के बारे में केवल कुछ एक आसान और सतही प्रश्न पूछती है।

क्या इस रैकेट में कोई डॉक्टर भी है शामिल?

इस रिपोर्ट में भारत के एक बड़े डॉक्टर के नाम का जिक्र है, जिन्होंने अमेरिका में प्रशिक्षण लिया और वे भारत सरकार के सर्वोच्च सम्मान ‘पदमश्री’ के भी प्राप्तकर्ता हैं। मरीजों और एजेंटों ने अखबार को बताया कि यही वे ‘सर्जन’ थे जिन्होंने प्रत्यारोपण किया था।

क्या अपोलो अस्पताल पर पहले भी लगा है इस तरह के रैकेट में शामिल होने का आरोप?

दरअसल साल 2016 में, इंद्रप्रस्थ अस्पताल में अपोलो के दो सचिवीय कर्मचारियों को किडनी रैकेट में शामिल होने के आरोप में दलालों और दानदाताओं के एक गिरोह के साथ गिरफ्तार किया गया था। इन आरोपियों के बारे में अभी भी जांच पूरी नहीं हुई है।