Cauvery water dispute
Cauvery water dispute

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कर्नाटक/तमिलनाड: कावेरी नदी के जल बंटवारे का मुद्दा फिर से तूल पकड‍़ लिया है। तमिलनाडु और कर्नाटक में लोग पानी के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। कावेरी जल विवाद की वजह से मंगलवार को बेंगलुरु बंद रहा। दोनों राज्यों के बीच यह विवाद लगभग 140 साल पुरानी है। मामला निचली अदालतों से लेकर देश की सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन इसका प्रॉपर समाधान नहीं निकल पाया। यही वजह है कि अब तक यह  विवाद खत्म नहीं हो सका। आइए आज जानते हैं कावेरी जल विवाद क्या है? इसकी शुरुआत कब हुई? उसके बाद से मामला कैसे चला? हालिया दिनों में किस बात को लेकर लड़ाई है? विरोध करने वालों की क्या मांग है?

कावेरी नदी की जियोग्राफिकल स्थिति

कावेरी नदी एक अंतरराज्‍जीय बेसिन है। यह कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु और पुडुचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी नदी का बंगाल की खाड़ी में गिरने से  पहले तमिलनाडु और पांडिचेरी से होकर गुजरता है। कावेरी बेसिन का कुल जलसंभरण यानी वाटर शेड 81,155 वर्ग किलोमीटर है जिनमें से कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर है। केरल में कुल जल संभरण क्षेत्र 2,866 वर्ग किलोमीटर है तथा तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है।

तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है। जब कावेरी तमिलनाडु की ओर आती है तो यहां नदी की मुख्यधारा में मेटुर बांध बनाया गया है। कावेरी के साथ कबिनी और मेटूर बांध के संगम के बीच केन्द्रीय जल आयोग ने मुख्य कावेरी नदी पर दो जीएंडडी स्थलों यानी कोलेगल और बिलीगुंडलू की स्थापना की है. बिलीगुंडुलू जीएंडडी स्थल मेटूर बांध के तहत लगभग 60 किलोमीटर है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा बनाती है।

कावेरी नदी जल विवाद का इतिहास

1. कावेरी जल बंटवारा विवाद लंबे समय से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच एक अहम मुद्दा बना हुआ है। यह विवाद सबसे पहले 1881 में शुरू हुआ था, जब तत्कालीन मैसूर राज्य यानी अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बांध बनाने का फैसला किया। लेकिन मद्रास राज्य यानी अब तमिलनाडु इस पर आपत्ति जताई।

2. फिर 1924 में ब्रिटिशर्स की मदद से एक समझौता हुआ। समझौते के तहत कर्नाटक को कावेरी नदी का 177 टीएमसी और तमिलनाडु को 556 टीएमसी पानी मिला। टीएमसी यानी, हजार मिलियन क्यूबिक फीट।  इसके बाद भी विवाद पूरी तरह नहीं सुलझ सका।

3. आजादी के बाद 1972 में केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कावेरी नदी के पानी के चारों दावेदारों यानी तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी के बीच 1976 में एक समझौता हुआ। लेकिन इस समझौते का पालन नहीं हुआ और विवाद चलता रहा। 90 के दशक में विवाद बढ़ता चला गया। तो 2 जून 1990 को कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (CWDT) का गठन किया गया।

4. कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल के 2007 में दिए गए फैसले से पहले कर्नाटक 465 टीएमसी पानी मांग रहा था, जबकि तमिलनाडु को 562 टीएमसी चाहिए था।

ट्रिब्यूनल ने कहा कि कर्नाटक को सालाना 270 टीएमसी और तमिलनाडु को 419 टीएमसी पानी मिलेगा। केरल को 30 टीएमसी और पुडुचेरी को 7 टीएमसी पानी देने को कहा गया। जल शक्ति मंत्रालय के जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के मुताबिक, किसी विशेष महीने के संदर्भ में चार बराबर किस्तों में चार सप्ताहों में पानी छोड़ा जाना होता है। अगर किसी सप्ताह में पानी की अपेक्षित मात्रा को जारी करना संभव नहीं हो तो उस कमी को पूरा करने के लिए बाद के सप्ताह में छोड़ा जाएगा। वहीं विनियमित तरीके से तमिलनाडु द्वारा पुडुचेरी के काराइकेल क्षेत्र के लिए जल दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

CWDT बनने के बाद भी तमिलनाडु और कर्नाटक में कई मुद्दों को लेकर विवाद जारी है। कोई भी राज्य खुश नहीं  था। तमिलनाडु ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती  दी। बाद में कर्नाटक सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई।

फरवरी, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक को जून से मई के बीच तमिलनाडु के लिए 177 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया था। कोर्ट ने अंतिम अदालती आदेशों के ढांचे के भीतर राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWDT) और कावेरी जल नियामक समीति यानी सीडब्ल्यूआरसी के गठन का भी आदेश दिया था। 

अभी क्यों है विवाद

इस बार तमिलनाडु के कर्नाटक से 15 हजार क्यूसेक और पानी छोड़ने की मांग की। इस पर कर्नाटक के विरोध के बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कर्नाटक को कहा, लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है।

कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इसलिए कर दिया इनकार

कर्नाटक का कहना है कि इस बार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के कमजोर रहने के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों में पर्याप्त जल भंडार नहीं है। ऐसे में कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया। जिससे यह मुद्दा गरमा गया।

दोबारा पैदा हुए विवाद के बाद 18 सितंबर 2023 को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया कि वह तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी जारी करे। आदेश के तहत कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी देना था। कर्नाटक सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका हालांकि सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे कर्नाटक ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां से कर्नाटक सरकार को झटका लगा।

सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का निर्देश दिया। अब कर्नाटक के कई किसान और संगठन तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इस मामले में मंगलवार को बेंगलुरु में बंद बुलाया गया। साथ ही प्रदर्शनकारियों ने 29 सितंबर 2023 से पूरे राज्य में बंद का आह्वान किया है।

कर्नाटक और तमिलनाडु के ये हैं तर्क

कावेरी जल को लेकर कर्नाटक ब्रिटिश राज की दुहाई देते हुए कहता है कि उस वक्त तमिलनाडु ब्रिटिश शासन के अधीन था। ऐसे में 1924 में हुए समझौते के वक्त उसके साथ न्याय नहीं हुआ था। कर्नाटक का कहना है कि 1956 में नए राज्य बनने के बाद पुराने समझौतों को रद्द माना जाना चाहिए। 

इसके साथ ही कर्नाटक की खेती के विकास तमिलनाडु की अपेक्षा देर से होने और नदी पहले उसके पास आने की दुहाई देते हुए कहता है कि सारे पानी पर उसका अधिकार है। वहीं इस विवाद को लेकर तमिलनाडु 1924 के समझौते को सही ठहराता है। उसका कहना है कि उस वक्त हुए समझौते के तहत तय पानी उन्हें मिलना चाहिए। तमिलनाडु का कहना है कि उसे हर बार पानी के लिए कोर्ट में गुहार लगानी पड़ती है।