
नवभारत स्पेशल डेस्क: सर्जिकल स्ट्राइक की स्क्रिप्ट उरी अटैक के बाद लिखनी शुरू हो गई थी और उसके 10 दिन भीतर यानी 28 सितंबर 2016 को अंजाम दिया गया। सर्जिकल स्ट्राइक को आज 7 साल हो गए। सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी कहानी जानने से पहले हम उरी अटैक के बारे में संक्षेप में जान लेते हैं। आज की तारीख के 10 दिन और सात साल पहले यानी 18 सितंबर, 2016 को जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर पर आतंकियों ने पाकिस्तान की मदद से कायराना हमला करके भारतीय सैनिकों के 18 जवानों को हमेशा के लिए छीन लिया था। इस आतंकी हमले के 10 दिनों के भीतर सेना ने एलओसी पार करके आतंकियों को करारा जवाब दिया। सर्जिकल स्ट्राइक से सेना ने उनके घर में घुसकर 40 आतंकियों को ढेर कर दिया।
उस वक्त के कश्मीर कोर कमांडर के जनरल ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने अपनी किताब India’s Bravehearts: Untold Stories from the Indian Army में उरी आतंकी हमले और इस हमले के बाद के ऑपरेशन का जिक्र किया है। वो बताते हैं कि उरी आतंकी हमले के बाद हम घायल जरूर थे लेकिन, बदला लेने के लिए तड़प रहे थे। उन शहीदों के परिवारों के दुखों को कम भले ही नहीं किया जा सकता लेकिन, आतंकियों को उसी की भाषा में जवाब देकर साथी अपना दुख कम करना चाहते थे।
भारतीय सेना जवान आराम कर रहे थे और उन पर बम वर्षा कर दी गई
सतीश दुआ अपनी किताब में बताते हैं कि सुबह के पांच बजे का वक्त था, जब मुझे सूचना मिली कि चार आतंकी एलओसी के बाद उरी स्थित सेना के शिविर में हैंड ग्रेनेड के साथ एके-47 रायफल से गोलियां बरसा रहे थे। यह कश्मीर का बारामूला जिला पड़ता है। उरी के चारों ओर पश्चिम में झेलम नदी और उत्तर में पीर पंजाल की पहाड़ियां पड़ती हैं। यह लाइन ऑफ कंट्रोल से बिल्कुल सटा हुआ है। यहां शिविर में भारतीय सेना के जवान आराम कर रहे थे, तभी उन पर बम वर्षा हुई। जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी पूरी तैयारी के साथ आए थे। उनके पास हथियारों का पूरा जखीरा था। साथ ही उन्होंने हमले के लिए दिन भी जानबूझकर चुना ताकि, अधिक से अधिक नुकसान किया जाए।
आतंकियों ने इसलिए ये दिन चुना
आतंकी हमले के वक्त उरी में दो बटालियन मौजूद थी। सेना में यह नियम है कि हर दो साल में ऊंचाई वाली जगह पर बटालियन बदली जाती हैं। डोगरा रेजिमेंट के दो साल खत्म हो रहे थे और बिहार रेजिमेंट की छठी बटालियन उसकी जगह लेने वाली थी। कुछ दिन दोनों रेजिमेंट साथ में रहकर एक-दूसरे को अपना काम समझाती हैं, जगहों की पहचान कराती है। इस बात की जानकारी आतंकियों को लग चुकी थी। रातों-रात आतंकियों ने शिविर में घुसकर अपनी जगह ले ली थी और सुबह चार बजे तक चारों आतंकी अपनी पोजिशन बना चुके थे। पहले उन्होंने रसोई की तरफ गैस से भरे सिलेंडरों और ईंधन-रसद वाले टेंटों पर बम फेंके। जब तक सेना के जवान संभल पाते तब तक 18 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और 30 से अधिक गंभीर रूप से घायल। हालांकि घंटों चले ऑपरेशन में सेना ने चारों आतंकियों को मार गिराया। आतंकियों के इस कायराने हमले में घायल सेना के जवान गुस्से की आग में थी और वे बदला लेने के लिए उतारू थे।
मनोहर परिकर ने कहा बरोबर और तैयारी शुरू
सतीश दुआ अपनी किताब में बताते हैं कि तत्कालीन रक्षामंत्री और दिवंगत मनोहर परिकर उरी में सेना के जवानों से मिलना चाहते थे और मिले भी। परिकर ने दुआ से पूछा – अब क्या करना है? जवाब में दुआ ने कहा कि जवान एलओसी पार करके बदला लेना चाहते हैं। परिकर ने सिर्फ दो सवाल पूछे। पहला- किसी आम आदमी को नुकसान नहीं होना चाहिए। दूसरा- अपना कोई भी जवान नहीं खोना है। जवाब में दुआ ने कहा- ये युद्ध है, पहले की गारंटी जरूर लेता हूं लेकिन दूसरे की नहीं। परिकर काफी देर सोचते रहे और उन्होंने एक शब्द कहा- बरोबर। दुआ अपनी किताब में बताते हैं कि हमारे लिए यह एक ही शब्द काफी था। इसके बाद ऑपरेशन की तैयारी शुरू की गई।
बदले की तारीख 28 सितंबर इसलिए चुनी
सतीश दुआ के लिखे गए किताब के मुताबिक, उन दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक चल रही थी। 22 सितंबर को पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ का भाषण हुआ। 25 सितंबर को दिवंगत और तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भाषण होना था। सेना के जवान तब तक कुछ नहीं करना चाहते थे। इसके बाद भी भारतीय सेना तीन दिन और शांत रहने का फैसला लिया। वे चाहते थे कि दुश्मन पूरी तरह से आश्वस्त रहे कि कुछ होने वाला नहीं है। इसलिए 28 सितंबर की आधी रात को ऑपरेशन शुरू हुआ।
सर्जिकल स्ट्राइक को ऐसे दिया अंजाम
25 और 150 कमाडो की दो टीमें बनाई गई। ऑपरेशन को अंजाम 25 कमांडो ने पूरा किया, जबकि 150 बैकअप पर थे। ताकि कोई जरूरत पड़े तो तुरंत आकर कार्रवाई की जा सके। एक टीम ने कुपवाड़ा के नौगाम से सीमा पार किया, जबकि दूसरी टीम पुंछ से सीमा पार गई। एलओसी के पास तीन आतंकी शिविरों की पहचान पहले ही कर ली गई थी। भारतीय सैनिक उसी को निशाना बनाने जा रहे थे। आतंकियों तक पहुंचने के लिए दो रास्ते थे। हमने लंबा वाला रास्ता चुना क्योंकि छोटा रास्ता गांव से होकर गुजरता और अगर कुत्ता भी भौंक जाता तो आतंकी अलर्ट हो सकते थे। कुछ ही घटों में सेना के जवानों ने 35 से 40 आतंकियों को घर पर घुसकर ढेर कर दिया और सवेरा होने से पहले ही सेना की टुकड़ी अपने क्षेत्र में वापस भी आ चुकी थी।
सतीश दुआ अपनी किताब में लिखते हैं कि हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि सर्जिकल स्ट्राइक में हमारा एक भी जवान शहीद नहीं हुआ। हां दो जवान बारूदी सुरंग की चपेट में आने से घायल जरूर हुए। लेकिन, सर्जिकल स्ट्राइक पाकिस्तानी आतंकियों पर भारत का कड़ा प्रहार था।
ऑपरेशन का कोई कोड नेम नहीं रखा था
सतीश दुआ बताते हैं कि उरी आतंकी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई के लिए हमने उस ऑपरेशन का कोई कोड नेम नहीं रखा था। ताकि कोई भी ऑपरेशन से पहले इसका जिक्र न करे। ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए किसी तरह के मैप या ग्राफ का इस्तेमाल नहीं किया गया। जो भी जवानों को मैपिंग करके समझाया जाता, उसे तुरंत ही मिटा भी दिया जाता। इस ऑपरेशन के सफल होने के बाद जब खबर मीडिया को लगी तो उन्होंने इसका नाम सर्जिकल स्ट्राइक दिया।