नई दिल्ली : जब-जब चुनाव आते हैं तो फिर से काले धन का मुद्दा जनता के बीच उछलने लगता है। मामले में चर्चा है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा काले धन के मामले में जांच करने के लिए बनाया गया विशेष जांच दल (एसआईटी) जल्द ही अपनी अंतरिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपेने वाला है। एसआईटी के उपाध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरिजीत पसायत ने कटक में यह जानकारी देते हुए एक बार फिर काले धन के मामले को लोगों के बीच ला दिया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के बाद अपनी पहली कैबिनेट बैठक में उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार एसआईटी के गठन को मंजूरी दी थी। पिछले 9 साल में एसआईटी ने 7 अंतरिम रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी हैं। न्यायमूर्ति पसायत ने देश में काले धन का पता लगाने और उस पर रोकथाम के सिलसिले में केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों के साथ मंगलवार को यहां अपने आवास पर बैठक की थी और उसके बाद बुधवार को जानकारी साझा की।
‘‘आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, सीमाशुल्क और उत्पाद शुल्क विभाग और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर विभाग के अधिकारियों की बैठक दो घंटे से अधिक समय तक चली जिसमें भारत और विदेशों में काले धन का पता लगाने और इस पर रोकथाम के लिए लागू होने वाले तरीकों के बारे में चर्चा की गई।''
SIT के उपाध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरिजीत पसायत
देश में काला धन
कहा जाता है कि हमारे देश में काले धन के तीन प्रमुख स्रोत हैं, जिसमें अपराध, भ्रष्टाचार और कारोबार जैसे कारणों को गिनाया जाता है। काले धन का इस्तेमाल भी गैर कानूनी कार्यों के लिए होता है। लोगों का कहना है कि कालेधन के कारोबार को बढ़ाने में राजनेताओं की भूमिका अहम रही है। इसके लिए देश की मौजूदा और अत्यधिक खर्चीली चुनाव प्रक्रिया को सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। काले धन को बढ़ावा देने वाली है। कई लोगों ने यह राय दी है कि राजनीतिक दलों को चंदा देने की परंपरा बंद होते ही कालेधन पर लगाम लगनी शुरू हो जाएगी। चुनावी व पार्टी की गतिविधियों व कार्यक्रमों के नाम पर नेता अपनी जेब भरते हैं और ऐसा करने के लिए काला धन जमा करने वालों का संरक्षण करते हैं। इसी के चलते गलत तरीके से पैसे कमाने वाले लोगों और राजनेताओं का गठजोड़ बनता है।
ऐसे बनी थी एसआईटी
कालाधन की जांच व रोक के लिए विशेष जांच दल की नियुक्ति भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 4 जुलाई, 2011 को की गई थी। इसका नेतृत्व सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमबी शाह और न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत कर रहे हैं। एसआईटी विशेष जांच दल है, जिसे 4 जुलाई, 2011 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया गया था।
मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई तो कालाधन खत्म करने का संकल्प लिया था और इसीलिए केंद्र सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट में भी चर्चा की। हालांकि ये प्रयास कहां तक पहुंचे व कितने सार्थक हुए यह देखने वाली बात होगी। हालांकि आर्थिक मामलों के जानकार प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि काले धन की अर्थव्यवस्था को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने बहुत सारे प्रयत्न किए थे. इनमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर SIT गठन से लेकर, ब्लैक मनी बिल, बेनामी संपत्ति बिल, बैंकरप्सी कोड, इनकम डिक्लेरेशन स्कीम-2016 प्रमुख रुप से शामिल थे। लेकिन इन सबका कोई फायदा मिलता नहीं दिखा तो मोदी सरकार ने नवंबर 2016 में नोटबंदी का एक बड़ा फैसला लिया, जिसकी आलोचना भी हुयी, लेकिन लोगों ने इसका समर्थन किया।
एसआईटी ने जताया था अंदेशा
काले धन पर बनी जांच समिति एसआईटी ने इस बात का एक अंदेशा जताया था कि हमारे देश से साल 2004 से 2013 के बीच 505 बिलियन डॉलर के आसपास काला धन विदेशों में भेजा गया था। इसके लिए एसआईटी ने राजस्व विभाग से जांच करने करने के लिए कहा था। साथ ही एसआईटी ने काला धन विदेशों में भेजने से रोकने के लिए एक तरीका भी इजाद करने का सुझाव दिया था। अमेरिका के एक शोध संस्थान ग्लोबल फाइनेंस इंटेग्रिटी ने एक रिपोर्ट जारी करके इस बात की जानकारी दी थी कि काला धन बाहर भेजे जाने के लिहाज से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश रहा है, जहां से 2004 से 2013 के बीच हर साल 51 अरब डॉलर धन बाहर गया है। आपको याद होगा इस दौरान केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार सत्ता में थी।
अर्थशास्त्री अरुण कुमार का दावा
भारतीय अर्थशास्त्री अरुण कुमार की पुस्तक “अंडरस्टैंडिंग द ब्लैक इकॉनमी एंड ब्लैक मनी इन इंडिया” में छपी जानकारी के अनुसार, भारत की ब्लैक इकॉनमी का कुल मूल्य देश की GDP के 62 प्रतिशत के बराबर है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि विगत कुछ वर्षों में काला धन या ब्लैक मनी भारत में राजनीतिक और आर्थिक रूप से सर्वाधिक चर्चित मुद्दा रहा है। …हालाँकि सरकार ने वर्ष 2016 में काला धन समाप्त करने के उद्देश्य से ‘नोटबंदी’ जैसा बड़ा कदम उठाया था, परंतु जब RBI ने वर्ष 2017-18 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की तो यह तथ्य सामने आया कि प्रतिबंधित नोटों में लगभग 99.3 प्रतिशत नोट बैंकों के वापस आ गए हैं।
जानकार मानते हैं कि अब तक भारतीय अर्थव्यवस्था को काला धन से अत्यधिक नुकसान पहुँचा है। प्रो. अरुण कुमार का मानना है कि नोटबंदी का नतीजा यह हुआ कि बाजार से सारा कैश बैंक में वापस आ गया। नोटबंदी से कैश की कमी तो आई लेकिन इससे सरकार यह पता नहीं लगा पाई कि देश के अंदर कितना काला धन मौजूद है। माना जाता है कि काले धन का मात्र 1 फीसदी कैश में है। बाकी सारा अलग अलग रूपों में है, जिसको खोजना और पकड़ना इतना आसान नहीं है।
सरकार ने किए हैं ये प्रयास
सरकार ने 2.5 लाख रुपए से अधिक के लेन-देन के लिये पैन (PAN) को अनिवार्य बना दिया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य कर अधिकारियों से छुपाए जाने वाले लेन-देन को नियंत्रित करना है।
आम लोगों के सुझाव
- चुनाव सरकारी खर्चे से होने चाहिए, जिससे यह पूंजीपतियों व काला धन वालों के हाथ की कठपुतली न बने।
- आयकर विभाग को आय के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में व्यय की सीमा भी निर्धारित करनी चाहिये ताकि इससे अधिक व्यय करने वाले अपने आप जांच के दायरे में आएंगे।
- स्कूलों-कॉलेजों की कैपिटेशन फीस पर नज़र रखनी चाहिये।
- धर्मार्थ संस्थाओं के लिये वार्षिक रिटर्न अनिवार्य बनाना चाहिए, ताकि वहां पैसे डालकर फिर से निकालने की प्रथा बंद हो।
- चुनावों में काले धन का प्रयोग रोकने के लिये व्यापक कार्य योजना बनायी जाए, क्योंकि यहां अक्सर काला धन ही खपाया जाता है।
- हवाला करोबार पर अंकुश लगाने की जरूरत है।