Supreme Court
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    नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक हम सुनवाई में आज मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी लगाने से साफ़ इनकार कर दिया है। आज यानी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने इस बाबत कहा कि, इसके लिए पहले ही संविधान के आर्टिकल 19(2) में जरूरी प्रावधान मौजूद हैं। 

    इसके साथ ही आज कोर्ट ने कहा कि, किसी भी आपत्तिजनक बयान के लिए उसे जारी करने वाले मंत्री को ही इसके लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए। इसके लिए किसी सरकार को जिम्मेदार नहीं मानना चाहिए। पता हो कि, सुप्रीम कोर्ट ने 15 नवंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। 

    क्या था मामला 

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए बोलने की आजादी पर एक गाइडलाइन बनाने की पुरजोर मांग की गई थी। बता दें कि नेताओं के लिए बयानबाजी की सीमा तय करने का यह मामला साल 2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे आजम खान की बेतकल्लुफ बयानबाजी से शुरू हुआ था। बता दें कि, आजम ने जुलाई, 2016 के बुलंदशहर गैंग रेप को एक राजनीतिक साजिश करार दिया था। जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

    SC ने किया साफ़- अपने बयान के लिए मंत्री ही जिम्मेदार

    इसी मामले पर आज 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि किसी मंत्री के बयान पर सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इसके लिए मंत्री ही जिम्मेदार है। हालांकि, इस मामले में जस्टिस नागरत्ना की राय संविधान पीठ से अलग रही। उन्होंने कहा कि,  अनुच्छेद 19(2) के अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ज्यादा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। हालांकि, कोई मंत्री अपनी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक बयान देता है, तो ऐसे बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। लेकिन, अगर मंत्रियों के बयान छिटपुट हैं, जो सरकार के रुख के अनुरूप नहीं हैं, तो इसे व्यक्तिगत टिप्पणी ही माना जाएगा।