sift kaur kamra

Loading

  • डॉक्टरी छोड़कर निशानेबाज बनी सिफ्त कौर सामरा
  • दिलचस्प है गोल्ड मेडल जीतने वाली सामरा की कहानी
हांगझोउ: सिफ्त कौर सामरा (Sift Kaur Samra) का नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। निशानेबाजी (Shooting) में दुनिया के सामने देश का नाम सामरा ने स्वर्ण अक्षरों में अंकित कर दिया है। उन्होंने हांगझोउ में एशिया की महिला 50 मीटर थ्री पोजीशन स्पर्धा में स्वर्ण पदक (Gold Medal) जीत लिया। MBBS जैसा कोर्स छोड़कर खेल की दुनिया को चुनना आसान फैसला नहीं होता।
 
सामरा ने क्यों लिया MBBS छोड़ने का फैसला
एमबीबीएस कोर्स छोड़ने का फैसला क्यों लिया पूछे जाने पर सामरा ने कहा, ‘‘मैं नहीं जानती। यह मेरे माता-पिता का फैसला था। यह मेरे हाथ में नहीं है। मैं कुछ नहीं कर सकती। मैं लोकसेवा में भी जा सकती हूं। ” उन्होंने कहा, ‘‘मैं दुर्घटनावश निशानेबाज बनी। मेरे ‘कजन’ ने मुझे निशानेबाजी शुरु करायी जो एक शॉटगन निशानेबाज है। मेरी राज्यस्तरीय प्रतियोगिता अच्छी रही और मेरी सभी रिश्तेदारों ने मेरे माता-पिता से कहा कि मुझे निशानेबाजी करनी चाहिए। मैं भाग्यशाली रही कि यह कारगर रहा और अब मैं निशानेबाज हूं। ‘ 
 
 
धैर्य ने दिया सामरा का साथ
डॉक्टरी और निशानेबाजी दोनों ही क्षेत्र में बेहद धैर्य की जरूरत होती है लेकिन इस साल मार्च में सिफ्त कौर सामरा ने चिकित्सकीय उपकरणों के बजाय राइफल को करियर विकल्प चुनने का फैसला किया। सामरा (23 वर्ष) ने निशानेबाजी पर ध्यान लगाने के लिए अपनी चिकित्सीय पढ़ाई (एमबीबीएस कोर्स) छोड़ने का फैसला किया। बुधवार को यह फैसला बिलकुल सही साबित हुआ। 
 
सामरा ने पूरा किया माता-पिता का सपना
सामरा फरीदकोट में जीजीएस मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई और निशानेबाजी दोनों के बीच जूझ रही थीं लेकिन अंत में उन्होंने अपना कोर्स बदलने का फैसला किया। विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतने वाली सामरा ने कहा, ‘‘मैंने मार्च में एमबीबीएस छोड़ दिया। मैं अभी अमृतसर से जीएनडीयू से ‘बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स’ कर रही हूं।” भारत में मध्यमवर्गीय और उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों ने माता-पिता सामान्यत: अपने बच्चों को पढ़ाई में अच्छा करने के लिए बढ़ावा देते हैं लेकिन सामरा के माता-पिता उन्हें निशानेबाजी रेंज में रिकॉर्ड तोड़ते हुए देखना चाहते थे।