भगवान गणेश के ‘स्वास्तिक रूप’ की महिमा जानिए, वास्तुदोष में इस रूप का महत्व जानें

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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म में स्वास्तिक चिन्ह का बड़ा महत्व है। स्वास्तिक चिन्ह  को  देवशक्तियों, शुभ और मंगल भावों का प्रतीक माना जाता है। यह ‘सु’ और ‘अस्ति’ दोनों से मिलकर बना है। ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्तिका का अर्थ होता है होना यानी जिससे ‘शुभ हो’,‘कल्याण हो वही स्‍वास्तिक है। सनातन धर्म में हर शुभ कार्य और पूजा-पाठ की शुरुआत स्‍वास्तिक का चिह्न बनाकर ही की जाती है। तो आइए जानें स्‍वास्तिक का गणपतिजी से कैसा नाता है और ये क‍िस तरह से वास्‍तुदोष दूर करता है।

    ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, स्वास्तिक देवताओं का प्रतीक होने से वास्तु दोष दूर करने में भी  मदद करता है। अगर  लाख कोशिशों के बाद भी सफलता हाथ नहीं लग रही है तो 7 गुरुवार को ईशान कोण में सूखी हल्दी से स्वास्तिक चिह्न बना कर पूजा करनी चाहिए। इसी तरह अपने कार्यस्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वास्तिक चिह्न बनाना शुभ होता  है।

    वास्‍तुशास्‍त्र के अनुसार, घर के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश का चित्र या स्वास्तिक बनाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। मान्‍यता है क‍ि, ऐसे घर में हमेशा गणेशजी की कृपा रहती है और कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती। स्वास्तिक को सकारात्‍मक ऊर्जा का भी प्रतीक माना जाता है। यही वजह है क‍ि इसे कहीं भी बनाया जाए ये आसपास की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर कर देता है।

    वास्‍तुदोष के चलते कई बार नींद न आने की समस्‍या भी हो जाती है। या कई बार रात को बुरे सपने भी परेशान करते हैं तो ऐसे में स्वास्तिक की मदद लें। इसके ल‍िए सोने से पहले तर्जनी अंगुली से स्वास्तिक का निर्माण करना चाहिए और उसके बाद सोना चाहिए। ऐसा करने से जातक की नींद संबंधी सभी समस्‍याएं दूर हो जाती हैं। साथ ही बुरे सपने भी नहीं आते।