- राज्य सरकार ने दी मंजूरी
- महीने के आखिरी में होगी सदन की बैठक
मुंबई. मनपा की 4 वैधानिक समितियों सहित विशेष समितियों और प्रभाग समितियों का चुनाव वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कराने की अनुमति राज्य सरकार ने दी है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब बीएमसी सभागृह की बैठक आयोजित होगी. फिलहाल महापौर किशोरी पेडणेकर कोरोना संक्रमित हैं. उन्होंने मनपा सभागृह की नियमित बैठक 28 सितंबर को कराने का निश्चय किया है. मनपा की नियमित कार्रवाई भले ही वीडियो कांफ्रेंसिंग से ही क्यों न हो, अप्रैल से लंबित चल रही समितियों का चुनाव होना तय हो गया है.
बीएमसी की चार वैधानिक समितियों, जिसमेंं स्थायी समिति, सुधार समिति, शिक्षा समिति और बेस्ट समिति के अलावा चार अन्य समिति स्वास्थ्य, विधि, महिला एवं बाल कल्याण, बाजार उद्यान समिति का भी चुनाव होना है. इन समितियों के सदस्य हर दो साल के बाद रिटायर हो जाते हैंं.
नए सदस्यों के नामों की घोषणा करना जरूरी
समिति के सदस्यों की नियुक्ति करने के लिए पहले मनपा सदन में रिटायर सदस्यों के स्थान पर नए सदस्यों के नामोंं की घोषणा करना जरूरी होता है. मनपा सदन में समिति सदस्यों की घोषणा होने के बाद समिति के अध्यक्ष का चुनाव कराया जा सकता है. समिति अध्यक्ष के चुनाव की तारीख मार्च महीने में शुरू हुए लॉकडाउन के पूर्व घोषित हो चुकी थी. अप्रैल महीने में चुनाव प्रक्रिया पूरा करना था, लेकिन लॉकडाउन लग जाने के कारण पूरी प्रक्रिया ठप्प पड़ गई थी. राज्य सरकार ने अब वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए समिति के अध्यक्ष का चुनाव कराने की अनुमति दी है.
महापौर के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव बड़ा पेंच
भारतीय जनता पार्टी ने महापौर किशोरी पेडणेकर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है. अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए स्थायी समिति के 4 सदस्यों ने अपनी अनुमति दी है. महापौर किशोरी पेडणेकर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराती भी हैं या नहींं यह देखना होगा.
कांग्रेस का रुख मायने रखता है
मनपा सदन में सबसे पहले विरोधी पक्ष नेता को बोलने का अधिकार होता है. विरोधी पक्ष नेता अभी कांग्रेस के रवि राजा हैंं. इससे यह कहना मुश्किल होगा कि महापौर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराने की अनुमति भाजपा को देंगी जो कि उनके ही खिलाफ है. कांग्रेस राज्य की महा विकास अघाड़ी सरकार में शिवसेना के साथ हैंं, ऐसे में भाजपा के अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस का रुख मायने रखता है.
कांग्रेस को साथ में रखना शिवसेना की मजबूरी
शिवसेना- भाजपा के सदस्यों में संख्या का ज्यादा अंतर नहीं है. इसलिए कांग्रेस को साथ में रखना शिवसेना की मजबूरी बन गई है. यदि कांग्रेस ने अलग रुख अपनाया तो प्रमुख समितियों का अध्यक्ष पद उसके हाथ से खिसक सकता है. शिवसेना के इसी मजबूरी का फायदा कांग्रेस उठा कर किसी समिति का अध्यक्ष पद हासिल कर सकती है.